दिव्यांग वैभव के हुनर को सलाम! शह और मात के खेल में हौसले की बिसात पर रच रहे हैं कीर्तिमान
90 फीसदी दिव्यांगता के बावजूद 25 वर्षीय वैभव शतरंज की दुनिया में अपनी तेज बुद्धि और अटूट हौसले से रच रहे हैं नई इबारत।


नई दिल्ली: यह सच ही कहा गया है कि दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी बाधा सफलता के रास्ते में नहीं आ सकती। 90 प्रतिशत तक दिव्यांग 25 वर्षीय वैभव की कहानी इसी बात को चरितार्थ करती है। शारीरिक रूप से चलने और बोलने में असमर्थ होने के बावजूद, वैभव अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता के बल पर शतरंज के खेल में बड़े-बड़े दिग्गजों को मात दे रहे हैं।
वैभव का शतरंज के प्रति समर्पण और खेल कौशल देखकर हर कोई अचंभित है। उनका शरीर भले ही उनका साथ न दे रहा हो, लेकिन उनका तेज दिमाग शतरंज की बिसात पर अद्भुत चालें चलता है। सिर्फ एक हाथ में थोड़ी सी हरकत होने के बावजूद, इसी एक हाथ और अपनी तीव्र बुद्धि के सहारे वैभव शतरंज की दुनिया में एक उभरते हुए सितारे बन चुके हैं।
ऐसे शुरू हुआ वैभव के खेल का सफर:
सात साल पहले, जब वैभव अपने पिता मनोज गौतम के साथ घर पर समय बिताने के लिए शतरंज खेलते थे, तब किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि यह खेल वैभव के जीवन को एक नई दिशा देगा। वैभव के पिता मनोज बताते हैं कि वे नियमित रूप से वैभव के साथ शतरंज का अभ्यास करते हैं। शुरुआती दौर में उन्हें वैभव को हराने में आसानी होती थी, लेकिन अब उन्हें जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।
स्कूल में दिखी वैभव की प्रतिभा:
वैभव की असाधारण प्रतिभा पहली बार स्कूल में आयोजित एक प्रतियोगिता में सामने आई, जहाँ उन्होंने सामान्य बच्चों को हराकर पहला स्थान प्राप्त किया। इस जीत ने वैभव और उनके परिवार को एक नई राह दिखाई। तब से लेकर आज तक, वैभव ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंटों में भाग लिया और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उन्होंने इंटरनेशनल जीएम टूर्नामेंट में हिस्सा लेकर अच्छी रेटिंग हासिल की है, जिसे सामान्य खिलाड़ियों को पाने में वर्षों की मेहनत लगती है।
कोचिंग संभव नहीं, घर पर ही करते हैं अभ्यास:
अपनी शारीरिक limitaciones के कारण वैभव के लिए कोचिंग सेंटर जाना संभव नहीं है। हालांकि, उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और अपने पिता के साथ रोजाना 7 से 8 घंटे की कड़ी मेहनत से वे अपने खेल को लगातार बेहतर बना रहे हैं। उनका मोबाइल ही उनका सबसे बड़ा दोस्त है, जिस पर वे दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं और खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करते हैं। उनकी मां हर पल उनके साथ रहती हैं और उनकी हर जरूरत का ध्यान रखती हैं।
जीत चुके हैं कई प्रतियोगिताएं:

हाल ही में, उदयपुर में आयोजित एक प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में वैभव ने प्रथम स्थान हासिल कर 1.11 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र जीता। इसके अलावा, उन्होंने आगरा और दिल्ली की कई अन्य प्रतियोगिताओं में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए जीत दर्ज की है। अब उनकी निगाहें जून में आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में होने वाली राष्ट्रीय और जुलाई में गोवा में आयोजित होने वाली अंतरराष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताओं पर टिकी हैं, जिसके लिए वे अभी से ही தீவிரता से तैयारी कर रहे हैं।
वैभव के माता-पिता का संदेश:
वैभव के परिवार में उनकी दादी, माता-पिता और दो छोटी बहनें हैं। उनका परिवार दिल्ली से सटे शालीमार गार्डन में रहता है और सभी सदस्य वैभव के हर कार्य में पूरा सहयोग करते हैं। वैभव के माता-पिता ने उन सभी अभिभावकों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है जिनके घर में कोई दिव्यांग बच्चा है। उनका कहना है कि हर बच्चे में कोई न कोई विशेष हुनर होता है। यह जरूरी है कि हम उनका साथ दें, उन्हें समय दें, उनकी काबिलियत को पहचानें और उन्हें आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करें। थोड़ा सा प्रोत्साहन और समर्थन उन्हें सामान्य बच्चों से कहीं बेहतर बना सकता है। वैभव का जीवन एक प्रेरणादायक सबक और एक मिसाल है, जो यह साबित करता है कि कमजोरी केवल शरीर में हो सकती है, हौसलों में नहीं।