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चाहे काली कहो या कहो लक्ष्मी, या कहो भवानी अंबे माई जगदंबे

नवरात्रि में गूंजा रहा एक ही स्वर जय माता दी!

जबलपुर यशभारत। शारदीय नवरात्रि के अवसर पर पूरे देश में भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है। इस बार की थीम – “चाहे काली कहो या कहो लक्ष्मी या कहो भवानी – अंबे माई ही हैं जगदंबे” – के अंतर्गत देवी के विविध स्वरूपों की एकता और उनकी शक्ति के एकमात्र स्रोत होने का भाव जनमानस में गहराई से समाया हुआ है। शहर और उपनगर क्षेत्र में स्थित देवी मंदिर क्या है वह दुर्गा मंदिर हो काली मंदिर हो या फिर लक्ष्मी मंदिर शीतला माता हो या त्रिपुर सुंदरी माता शारदा देवी हो या बूढीखेरमाई या बड़ी खेरमाई का मंदिर सभी देवी स्थान पर दर्शन पूजन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही है।

देवी दुर्गा के इन नौ रूपों की आराधना के साथ श्रद्धालु यह अनुभव कर रहे हैं कि माता का हर रूप – चाहे वह शक्ति का उग्र रूप काली हो, समृद्धि की देवी लक्ष्मी हों, या ज्ञान की अधिष्ठात्री सरस्वती – सभी में अंबे माई ही अंतर्निहित हैं। भक्तों ने इसे “जगदंबा की अखंड स्तुति” बताया है। सज उठा नगर, भक्ति मै लीन भक्तजन

शहर के तमाम मंदिरों से लेकर माता के पंडालों को इसी विषय-वस्तु के साथ सजाया गया है। रानीताल दुर्गा उत्सव पंडाल में माँ को त्रिदेवी स्वरूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें एक ही मूर्ति में काली, लक्ष्मी और सरस्वती के प्रतीक दिखाई दिए।
संस्कृति, आस्था और एकता का संदेश

रामलीला, गरबा, दुर्गा पूजा और देवी जागरण कार्यक्रमों में श्रद्धालुओं ने इस थीम को भावपूर्ण अभिनय, भक्ति गीत और नृत्य से जीवंत किया जा रहा है और माता की हर स्वरूप की पूर्ण भक्ति भाव और श्रद्धा से आराधना की जा रही है. नारी ही नारायणी है
कभी माँ अन्नपूर्णा बनकर घरों में अन्न देती है, कभी माँ काली बनकर संकटों का नाश करती है।
विशेष रूप से महिलाओं की भागीदारी

महिला मंडलों ने इस थीम को आत्म-गौरव और स्त्री-शक्ति से जोड़ा। “माँ के हर रूप में हम खुद को पहचानते हैं” – यह बात एक महिला शक्ति मंडल की संयोजिक ने कही। उन्होंने कहा कि यह विषय महिलाओं को न केवल धार्मिक रूप से जोड़ता है, बल्कि आत्म-बल भी प्रदान करता है।
क्या कहते हैं भक्त हमारी माँ कोई एक नहीं, वह सब कुछ हैं। कभी अन्नपूर्णा, कभी चंडी, कभी महालक्ष्मी – और हर रूप में वह हमारे लिए ‘अंबे माई’ ही हैं।

नाम अनेक, रूप अनेक – पर शक्ति एक, माँ अंबे ही सच्ची जगदंबे हैं।”
नवरात्रि केवल उत्सव नहीं, यह आत्मा से शक्ति की पुनर्स्थापना का पर्व है।

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