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अब भी फाइनल नहीं हो पाये शराब दुकानों के छह समूह

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जबलपुर। जिले की शराब दुकानों के लिए जारी निष्पादन की प्रक्रिया के चलते शनिवार को जिले के 12 समूह फाइनल हो गए लेकिन अभी भी 6 समूह फाइनल होना बाकी रह गए हैं और इन समूहों में शहर के महत्वपूर्ण समूह भी शामिल है। इन समूहों के निष्पादन के लिए विभाग आगे क्या प्रक्रिया अपनाएगा यह सोमवार को स्पष्ट हो सकेगा। शनिवार को संपन्न हुई प्रक्रिया में जिन समूह को फाइनल किया गया है उनमें बिलहरी विजयनगर मझौली बड़ा पत्थर व्हीकल मोड सदर गोरखपुर कांचघर घमापुर भानतलैया कोतवाली और बरेला शामिल है। इन समूह की निष्पादन की प्रक्रिया टेंडर और वीडिंग के जरिए संपन्न हुई। बाकी शेष बचे समूहों में रसल चौक मोटर स्टैंड बलदेव बाग शारदा चौक इंदिरा मार्केट और अधारताल शामिल है। और यह सभी समूह शहर के महत्वपूर्ण समूह माने जाते रहे हैं अब देखना यह है कि बाकी बचे इन समूहों के आबकारी विभाग क्या प्रक्रिया अपनाता हैं। अब तक हुई निष्पादन की प्रक्रिया में यदि नजर डाली जाए तो ग्रामीण के लगभग सभी समूह फाइनल हो चुके हैं और शहर के ज्यादातर समूह भी फाइनल करने में भले ही आबकारी विभाग सफल हो गया हो लेकिन इस वर्ष जिस तरह की कवायद विभाग को करनी पड़ी ऐसी शायद पूर्व में कभी नहीं हुई। नई शराबी नीति और नियमों के चलते दिल्ली की शराब ठेकेदारों ने शुरुआत में तो अपने आप को प्रक्रिया से ही दूर रखा जिसके कारण रेनूवल और लॉटरी सिस्टम में एक भी समूह नहीं उठ पाया इसके बाद ही टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई जिसका आखिरी चरण शनिवार को पूरा हुआ और स्थिति अभी भी 6 समूहों पर अटक गई है जिनका निष्पादन होना बाकी है।

बीच प्रक्रिया में सहायक आबकारी आयुक्त और बाबू का निलंबन

वर्ष 2025 26 के लिए शराब दुकानों के निष्पादन की प्रक्रिया के बीच में ही सहायक आबकारी आयुक्त रविंद्र मानिकपुरी को लापरवाही और आदेश और निर्देशों की अनदेखी के आरोपो के चलते हैं निलंबित कर दिया गया इसके बाद एक और बाबू विवेक शंकर उपाध्याय पर भी निलंबन की गाज गिरी कहीं ना कहीं इन दोनों को निष्पादन की प्रक्रिया में लेटलतीफे के लिए जिम्मेदार माना जा रहा था।

नये साहब ने आते ही कसी नकेल

शराब दुकानों के आवंटन की प्रक्रिया के बीच जिले के नये सहायक आबकारी आयुक्त संजीव कुमार दुबे ने आनन फानन मैं केवल पदभार ग्रहण किया बल्कि आते ही शराब दुकानों का संचालन कर रहे ठेकेदारों पर नकेल भी कसी जिसके चलते मनमाने दामों पर बेची जा रही शराब पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए ठेकेदारों को एमआरपी पर ही शराब बेचने की नसीहत दे डाली जिसके कारण शराब महंगी बिकने लगी। वहीं नए साहब ने अपने काम करने के तरीकों को भी ठेकेदारों के सामने रख दिया।

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