ऐतिहासिक फैसला: मोदी सरकार कराएगी जातिगत जनगणना

ऐतिहासिक फैसला: मोदी सरकार कराएगी जातिगत जनगणना
अगली जनगणना में जातीय आधार पर होगी लोगों की गणना, विपक्ष के आरोपों को किया खारिज
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आज (30 अप्रैल 2025) एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए अगली जनगणना में जातिगत आधार पर लोगों की गणना कराने का ऐलान किया है। केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट की बैठक के बाद इस निर्णय की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाए बिना यह जनगणना कराएगी।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस दौरान विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने हमेशा जातीय मुद्दों को केवल राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार का यह कदम सामाजिक न्याय और समावेश को बढ़ावा देगा।
गौरतलब है कि देश में लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग उठती रही है, जिसे केंद्र सरकार पहले टालती आई थी। हालांकि, अब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस फैसले के आने से राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है। यह आजाद भारत में पहली बार होगा जब मूल जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना भी कराई जाएगी।
जातिगत जनगणना: क्या, कैसे और क्यों?
जातिगत जनगणना का अर्थ है जनसंख्या की गणना करते समय प्रत्येक व्यक्ति की जाति का विवरण एकत्र करना। भारत में जनगणना की शुरुआत 1881 में हुई थी और 1931 तक हर जनगणना में जातिवार आंकड़े जारी किए गए थे। 1941 में आंकड़े तो जुटाए गए, लेकिन प्रकाशित नहीं किए गए। आजादी के बाद से केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के ही जाति आधारित आंकड़े प्रकाशित किए जाते रहे हैं।
पिछड़ी और अन्य जातियों की सटीक जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए जातिगत जनगणना की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी को आरक्षण दिया गया था, जिसका आधार 1931 की जनगणना थी। विशेषज्ञों का मानना है कि 90 साल पुराने आंकड़ों के आधार पर वर्तमान नीतियों का निर्धारण उचित नहीं है।
जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का तर्क है कि इससे पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों की सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का सही आकलन हो सकेगा और उनके कल्याण के लिए उचित नीतियां बनाई जा सकेंगी। वहीं, इसका विरोध करने वालों का मानना है कि इससे समाज में जातीय विभाजन और कटुता बढ़ सकती है।
केंद्र सरकार का पहले का रुख:
केंद्र सरकार पहले जातिगत जनगणना कराने से इनकार करती रही थी। 2021 और 2022 में संसद में पूछे गए सवालों के जवाब में गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है और पिछली जनगणनाओं की तरह इस बार भी केवल SC और ST की ही जातिगत जनगणना होगी। हालांकि, 2010 में जब भाजपा विपक्ष में थी, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे ने ओबीसी जनगणना की मांग की थी और इसे उनके साथ अन्याय बताया था। 2018 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी ओबीसी जनगणना पर विचार की खबरें आई थीं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया था।