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किसने बना लिया प्रेस्टीज इश्यू, जो रुक गई भाजपा की जिला कार्यकारिणी, दशहरे में भी नहीं हो पाई घोषणा, क्या दीवाली तक हो पाएगी ?

कटनी, यशभारत। भारतीय जनता पार्टी की जिला कार्यकारिणी कहां उलझ गई, यह सवाल अब हर पार्टी कार्यकर्ता को बेचैन कर रहा है। प्रदेश के 25 से ज्यादा जिलों की टीमें सामने आ चुकी हैं, लेकिन कटनी के मामले में ऐसा कौन सा बड़ा पेंच फंसा हुआ है, जिसको प्रदेश बीजेपी के मुखिया हेमंत खंडेलवाल और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा भी नहीं सुलझा पा रहे। ताज्जुब है एक तरफ भाजपा कड़े फैसलों और कड़क अनुशासन के लिए जानी जाती है, दूसरी तरफ समावेशी सियासत के नाम पर सूची ही अटका दी गई है। सूत्र बताते हैं कि कुछ नामों को जोड़ने और कुछ को जिला कार्यकारिणी से दूर रखने के लिए संसदीय क्षेत्र के दो नेताओं ने प्रेस्टीज इश्यू बनाया हुआ है, ऐसे में प्रदेश नेतृत्व दशहरा बीत जाने के बावजूद यह मसला हल नहीं कर पाया। पहले तय माना जा रहा था कि नवरात्रि के शुभ मुहुर्त में घोषणा कर दी जाएगी लेकिन जिन वजहों से घोषणा अटकी हुई है, अब तो लगता है दीवाली पर भी कार्यकर्ताओं को पदों का तोहफा नहीं मिल पाएगा।

भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए जिला कार्यकारिणी की घोषणा एक पेंचीदा विषय बनकर रह गया है। किसी नेता के पास इसका कोई जवाब नहीं। पहले भी पार्टी में संगठन के चुनाव होते थे लेकिन इस बार भाजपा के संगठन चुनावों की पूरी प्रक्रिया ने भी लेटलतीफी का रिकॉर्ड कायम कर लिया। प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा काफी विलंब से हुई। राष्ट्रीय अध्यक्ष का मसला राष्ट्रीय स्तर पर अब भी फंसा हुआ है और इधर कटनी जिले की भाजपा को अपने नए पदाधिकारी नहीं मिल पा रहे। प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने संगठन को लेकर चल रही शिकायतों के मद्देनजर नए तरीके से काम करना शुरू किया। संगठन में सबको साथ लेकर चलने के लिए किए गए प्रयोगों के बीच कुछ विवाद भी सामने आने लगे। कुछ जिलों में नेताओं के परिवार के सदस्य जिला कार्यकारिणी में स्थान पा गए तो उन्हें नियुक्ति के बाद हटा दिया गया। कटनी में स्थिति अलग है। इलाके के सांसद वीडी शर्मा ने प्रदेश अध्यक्ष रहते कटनी के संगठन के पत्ते अपने हिसाब से फेंटे। अध्यक्ष से लेकर जिला कार्यकारिणी में भी उनके लोगों का वर्चस्व रहा। जिलाध्यक्ष को दूसरा कार्यकाल भी वे जाते जाते दिला गए, लेकिन वीडी की अध्यक्ष पद से विदाई के बाद जिला कार्यकारिणी का मामला लटक गया। इसकी वजह यह है कि ऊपर बैठे बड़े नेता भी कटनी में अब एकतरफा संगठन नहीं चलने देना चाहते। जो अब तक होता आया है उसमें हर हाल में बदलाव लाने के लिए ऊपर लेवल पर मंथन चल रहा है, और सही मायने में जिला कार्यकारिणी की घोषणा में विलम्ब भी इसीलिए हो रहा है।

कहां फंसा है पेंच

पार्टी ने पर्यवेक्षक भेजकर जिले के चुनिंदा नेताओं से प्रपत्र में उनकी पसंद के नाम भरवा लिए। इस रायशुमारी की रिपोर्ट भोपाल जाकर पर्यवेक्षकों ने प्रदेश नेतृत्व को सौंप दी। इस बार विधायकों की भूमिका बड़ी कर दी गई। विधायकों ने भी अपनी पसंद के नाम बताए। अब पेंच यहीं फंस रहा है कि जिलाध्यक्ष की पसंद को अहमियत दी जाए या विधायकों के नाम एडजस्ट किए जाएं। विधायकों का तर्क अपनी जगह वाजिब है। चुनाव उन्होंने लड़ा है और आगे भी उन्हें पार्टी का काम करना है ऐसे में उनके समर्थकों को स्थान मिलना चाहिए। सूत्र बताते है कि महामंत्री पद को लेकर समीकरण उलझे हुए हैं। एक नेता के नाम पर जिलाध्यक्ष कतई तैयार नहीं। इस नाम को महामंत्री पद से दूर रखने के लिए सांसद भी सक्रिय हो गए हैं और उन्होंने प्रदेश नेतृत्व को अपनी मंशा से अवगत करा दिया है, जबकि विधायकों का प्रेशर उसी नाम को लेकर है। अब प्रदेश नेतृत्व अब तक बीच का रास्ता नहीं निकाल पाया। अन्य पदों पर भी विधायक और जिलाध्यक्ष अपनी पसंद के नेताओं की ताजपोशी चाह रहे हैं। अब देखना होगा कि प्रदेश नेतृत्व कब तक इस गुत्थी को सुलझाने में सफल होता है।

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