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डोरीलाल की चिन्ता:-तुम मुझे वोट दो, मै तुम्हें स्मारक दूंगा

 

 

ये मैं हूं और ये मेरी सरकार है। मैने तय कर लिया है कि तुम लोगों का भला करना है। रुपए पैसे नौकरी शिक्षा से तो कोई भी किसी का भला कर सकता है। पर मैं इतना स्वार्थी नहीं हूं। इसलिए मैं तुम लोगों के लिए भव्य स्मारक बनवाऊंगा। एक नहीं सौ स्मारक बनवाऊंगा। आखिर मध्य प्रदेश इक आदिवासी प्रदेश है। हम और क्या दे सकते हैं। मैने तय कर लिया है कि इतने स्मारक और मंदिर प्रदेश में बनवा दिए जाएं की वर्ष भर जनता स्मारकों और मंदिरों के ही चक्कर लगाती रहे। कुछ सोचने समझने का अवसर ही नहीं मिले।

ये घोषणा हुई है कि मदन महल की पहाड़ी पर 100 करोड़ का स्मारक बनाया जायेगा। 100 करोड़ का ही क्यों बनाया जायेगा? 1001 करोड़ का भी बनाया जा सकता है। राजा रघुनाथ शाह और शंकर शाह के बलिदान दिवस पर यह घोषणा हुई है। यह स्मारक रानी दुर्गावती के लिए बनाया जायेगा। यह एकदम वरदान टाइप का है। बिना मांगा। किसी ने इसे मांगा नहीं था। डोरीलाल का कहना है कि जबलपुर में ऑलरेडी कई स्मारक खड़े हुए हैं जो अपनी दुर्दशा पर रो रहे हैं। जबलपुर में आदिवासी छात्र छात्राओं के लिए जो छात्रावास बने हैं। उनमें गंदगी है। लाइट पंखे नहीं हैं । टॉयलेट इत्यादि दयनीय हालत में हैं। क्या शहीद दिवस के अवसर पर आदिवासी समाज के लड़के लड़कियों से नही पूछा जाना चाहिए कि बोलो तुम्हें क्या चाहिए?

मदन महल की पहाड़ी पर ही यह स्मारक क्यों बनेगा? यह पहाड़ी किसी भी निर्माण कार्य के लिए प्रतिबंधित है। अभी पिछले सालों में वहां बसे हजारों लोगों को हटा दिया गया क्योंकि ग्रीन बेल्ट की रक्षा करना है। इसलिए डोरीलाल का सोचना है कि मुख्यमंत्री को जोश जोश में गलत ब्रीफिंग दी गई हो। या सबने सोचा हो की जो चीज बनना ही नहीं है उसकी घोषणा ऐसी जगह के लिए कर दो जहां बाद में आपत्ति लग जाए। दोनो का काम बन जायेगा। तो इस तरह से आदिवासी समाज को खुश कर दिया गया । जय जबलपुर जय मध्य प्रदेश।

डोरीलाल को बहुत दिनों से ये बात खाए जा रही थी कि ये इतने बड़े बड़े साधु संत महात्मा का आखिर क्या महात्म है। ये लोग कौन हैं? भगवान और भक्तों के बीच इनकी क्या स्थिति है। डोरीलाल ऐसे अनेक कथावाचकों को जानता है जो नर्क देखकर आए हैं और उसका आखों देखा विवरण भक्तों को सुनाते हैं। कई बार लगता है कि साधारण आदमी तो भगवान के पास जा नहीं सकता, उनकी भक्ति कर नहीं सकता। तो ये महात्मा लोग आम जनता की बात भगवान तक पंहुचाते हैं और भगवान अपनी बात इन महात्माओं के माध्यम से जनता तक पंहुचाते हैं। जब ये लोग भगवान से इतना निकट का संपर्क रखते हैं तो निश्चय ही भगवान के मन की बात ये लोग जानते हैं। भगवान इन्हें बता देते होंगे कि अब ये होने वाला है। और आप लोगों को क्या करना है। यही कारण है कि सभी लोग एक सा वेश धारण करते है। एक सी बातें कहते हैं। और एकजुट होकर काम करते हैं।

अभी छिंदवाड़ा में रामकथा हुई। वहां बताया गया कि आगामी विधानसभी चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच नहीं है। यह चुनाव सत्य और असत्य के बीच है। यह धर्म और अधर्म के बीच है। ये भी बताया गया कि कमलनाथ अधर्म की तरफ हैं। यानी भाजपा धर्म की तरफ है। इतना सब कहने के बाद यह कह दिया गया कि हमें राजनीति से कोई मतलब नहीं। पूरी राजनीति कर लेने के बाद राजनीति से कोई मतलब नहीं यह भी कह दिया।

भारतीय राजनीति में अब हमला पलटवार और धर्मयुद्ध ही होता रहता है। कम से कम टी वी और अखबारों में यही दिखाई देता है। जनता के मुद्दे और उन पर चर्चा पूरी तरह नदारत है। अब हालत यह हो गई है कि जनता भी चुनावों में यह भूल गई है कि चुनाव उसके प्रतिनिधि चुनने के लिए हो रहे हैं। पूरी तरह से खेल भावना व्याप्त हो गई है। और इस खेल में जनता केवल दर्शक है। जबकि खेल उसके लिए हो रहा है उसके नाम पर हो रहा है। चुनाव भी अब आई पी एल जैसे खर्चीले हो गए हैं। रैलियां और सभाएं करोड़ों रूपयों की होती हैं। समर्थकों की ढुलाई होती है। उनका खान पान का खर्च होता है। उसके बाद हवाई जहाज से हाथ हिलाते नेता उतरते हैं और कुछ देर बाद उसी उड़नखटोले से हाथ हिलाते हुए अगली सभा के लिए हाथ हिलाते हुए रवाना हो जाते हैं। लाई गई जनता वापस अपनी बसों में बैठकर रवाना हो जाती है। वो जमाना और था जब लाखों लोग अपने नेता को सुनने के लिए जाया करते थे। और नेता उन्हें अपनी बातों और तर्कों से शिक्षित करते थे। राजनैतिक बहसें होती थीं। अब संसद में भी नहीं होतीं।

कहावत है कि तुम्हें वो मिलता है जिसके तुम लायक हो। यू गैट वाट यू डिजर्व।

डोरीलाल स्मारक प्रेमी

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