कटनीमध्य प्रदेश

हरिराम नाईयों के लिए कटनी पुलिस के पास ऊंट के मुंह में जीरा जैसा बजट

कमजोर पड़ रहा मुखबिर तंत्र, नहीं मिल रही मुखबिरी

कटनी। अपराधियों के आगे पुलिस का मुखबिर तंत्र कमजोर पड़ रहा है। पुलिस मुख्यालय से मुखबिरों के लिए बजट का प्रावधान तो है, किन्तु यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा जैसी है। कटनी पुलिस के पास कुछ परमानेंट मुखबिर भी हैं, जो पैसे लेकर सूचनाएं देते रहते हैं, जबकि यह काम कोई और भी करता है तो उसे भी कुछ न कुछ राशि मिल जाती है। पुलिस हर हाल में इन हरिराम नाईयों के नाम सीक्रेट रखती है। नाम और पहचान गुप्त रखने के पीछे मुखबिरों की सुरक्षा भी अहम बात है। पिछले एक साल में पुलिस को मुखबिरों की सूचनाओं पर बड़ी सफलताएं हाथ लगी हैं। हालांकि बहुत मामले अब भी ऐसे हैं जो कमजोर मुखबिर तंत्र के चलते हल नही हो पा रहे।

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कटनी पुलिस अपने परम्परागत मुखबिर तंत्र को मजबूत करने के लिए प्रयास तो करती रहती है लेकिन पुलिस मुख्यालय से इसके लिए मिलने वाला बजट काफी कम है। अपराध की दृष्टि से कटनी काफी संवेदनशील जिला है। जिले के सभी थाने और चौकियां मिलाकर हर साल हजारों आपराधिक मामले पुलिस के रेकॉर्ड में दर्ज होते हैं। इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, डकैती, बलात्कार, अपहरण, फायरिंग और गैंगवार जैसे संगीन अपराधों की फेहरिस्त काफी लम्बी रहती है। काफी प्रयासों के बावजूद भी पुलिस अपराधों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। साथ ही अपराध घटित होने के बाद अपराधियों को पकड़ने में भी पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख वजह है कि पुलिस के पास सूचनाओं का अभाव। पुलिस और मुखबिरों ने आपस में दूरी बना ली है।
पुलिस को मुखबिरों के लिए बहुत कम बजट मिलता है। अपराधियों के बारे में सूचना देने पर पुलिस की ओर से मुखबिरों को ईनाम के रूप में राशि दी जाती है। पुलिस का मानना है कि मुखबिरों को किसी घटना के बारे में पता लगाने के लिए आना जाना पड़ता है, ऐसे में कुछ राशि उनकी भी खर्च हो जाती है। पुलिस इस राशि का इंतजाम कर देती है। कुछ पुलिसकर्मी अपने स्तर पर ही मुखबिरों को ईनाम राशि देकर उनसे अपराधियों के बारे में मुखबिरी कराते हैं। मुखबिर यदि अच्छा काम करता है तो उसे प्रोत्साहन स्वरूप अलग से राशि दे दी जाती है। कटनी में फिलहाल देखने में आ रहा है की पुलिस ने जिले के सभी थानों में काम्बिंग गश्त का अभियान शुरू किया है, किसके बेहतर नतीजे भी पुलिस को मिले। साथ ही जनता से संवाद करने के लिए भी पुलिस ने कार्यक्रम चलाए। इन माध्यमों से कुछ लोग पुलिस के मित्र बने हैं, पर सवाल वही है कि पुलिस की मदद के बदले उन्हें कोई बहुत बड़ी रकम नही मिलती। साथ में इस काम में खतरा भी बहुत उठाना पड़ता है। मुखबिरों को सबसे बड़ा खतरा अपराधियों से होता है। इसलिए हर हाल में पहचान गुप्त रखे जाने की जितनी जिम्मेदारी उनकी स्वयं की होती है, उतनी पुलिस की भी। बीट में पुलिस की पकड़ इसलिए कमजोर पड़ रही है क्योंकि नए मुखबिर तैयार नही हो पा रहे। पहले हर क्षेत्र में जगह-जगह दीवारों पर बीट कांस्टेबल और बीट अधिकारी के नाम व फोन नम्बर लिखे जाते थे। आज हालात यह है कि लोगों को पता ही नहीं होता कि उनके क्षेत्र का बीट कांस्टेबल और बीट अधिकारी कौन है? क्योंकि आज कहीं भी दीवारों या बोर्ड पर बीट कांस्टेबल और बीट अधिकारी का नाम व मोबाइल नम्बर लिखा लिखा नजर नहीं आता। वहीं, बीट कांस्टेबल और बीट अधिकारी भी अपने फील्ड में कम मौजूदगी रखते हैं।

◆ मंदी की मार झेल रहे ऐसे मुखबिर

जो मुखबिर बड़ी सूचनाएं देते हैं, उन्होंने अपनी फीस सीधे 5 से 10 गुणा बढ़ा दी है। बड़े गिरोह और हत्या, लूट-डकैती जैसे मामलों से संबंधित अपराध व अपराधियों के बारे में सटीक सूचनाएं देने वाले मुखबिर जो सूचनाएं पहले 2-4 हजार में दे देते थे, अब वही ज्यादा राशि की मांग करते है। शराब तस्करी, गांजा, सट्‌टेबाजी, आईपीएल मैच, वाहन चोर, घरों में चोरी करने वाले गिरोहों की जानकारी देने वाले मुखबिरों ने भी रेट में दो से तीन गुणा बढ़ोतरी की है। नोटबंदी के बाद मंदी की गिरफ्त में फंसे कई मुखबिर काम छोड़ गए तो कइयों ने फीस बढ़ाकर अपनी आर्थिक निर्भरता पूरी तरह पुलिस विभाग पर ही डाल दी है।

◆ परसेंटेज पर चलाना पड़ रहा काम

कुछ समय पहले पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर गांजा पकड़ा था। मुखबिर ने इस सूचना के बदले यूनिट इंचार्ज से पैसे मांगे। इतनी रकम नहीं होने के कारण परसेंटेज पर सौदा तय करना पड़ा। यूनिट इंचार्ज ने मुखबिर को पेशकश की, जितना माल पकड़ा जाएगा, उसका 30 फीसदी तुझे दे देंगे, बाकी हम रख लेंगे। पकड़े गए गांजा में से कुछ गांजा मुखबिर को देना पड़ा। मुखबिर ने यह गांजा बाद में किसी दूसरे तस्कर को बेचकर रुपया कमा लिए। यह मामला चर्चाओं में रहा।

◆ क्या है मुखबिर की परिभाषा

ब्रिटिश पुलिस अधिकारी अपने कार्य के दौरान जब कोई अपराध होते हुए देखता था, वह अपनी सीटी बजाने (व्हिसल ब्लोअर) लगते थे। सीटी बजाने की इस क्रिया के बाद तुरंत ही तत्कालीन कानून प्रवर्तन अधिकारी और जनता खतरे के संकेत से आगाह होते थे और आवश्यक कार्रवाई में जुट जाया करते थे। मौजूदा समय में व्हिसल ब्लोअर अर्थात मुखबिर के लिए प्रत्येक देश में अपना-अपना मुखबिर संरक्षण कानून भी है। भारत में मुखबिर को गोपनीय सूचक की संज्ञा दी गई है, जो सूचना देने के बदले अपनी इच्छा बगैर पारिश्रमिक या उचित पारिश्रमिक लेकर संबंधित अपराध या गतिविधियों की सूचनाएं संबंधित विभाग या व्यक्ति विशेष को उपलब्ध कराते हैं।

◆ अच्छा काम करने वालों को प्रोत्साहन राशि : एसपी

इस सिलसिले में एसपी अभिजीत रंजन ने कहा कि मुखबिरों को विभाग प्रोत्साहन राशि देता है। उपयोगी सूचनाएं देने वालों को अलग से राशि दी जाती है, क्योंकि सूचनाओं के संकलन में मुखबिरों का पैसा भी खर्च होता है। पुलिस हर हाल में उनके नाम और पहचान सीक्रेट रखती है। वे मानते हैं कि आवश्यकता के अनुरूप बजट कम है, फिर भी मुखबिरों के प्रोत्साहन के लिए जो सम्भव होता है,वह किया जाता है।Screenshot 20240801 153159 Drive

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