
जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. राजेश कुमार वर्मा की विवादित नियुक्ति और उनके खिलाफ महिला अधिकारी से अभद्रता के मामले ने अब मध्यप्रदेश विधानसभा तक हलचल मचा दी है। वरिष्ठ विधायक लखन घनघोरिया ने विधानसभा में माननीय राज्यपाल महोदय के अभिभाषण के बाद इस संवेदनशील प्रकरण को उठाते हुए सरकार का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि एक ओर राज्य सरकार पारदर्शिता और योग्यता के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति की नियुक्ति में गंभीर अनियमितताओं की अनदेखी की जा रही है। यह विश्वविद्यालय प्रशासन, उच्च शिक्षा विभाग और शासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
एनएसयूआई का बड़ा आरोप – क्यों कुलगुरु के खिलाफ जांच लंबित?
गौरतलब है कि भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) के जिला अध्यक्ष सचिन रजक ने दिनांक 08/12/2024 को मध्यप्रदेश शासन को शिकायत सौंपी थी, जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया था कि प्रो. वर्मा की नियुक्ति में गंभीर अनियमितताएं हैं और वह अपने मूल पद के लिए भी अयोग्य थे। मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) द्वारा 19 जनवरी 2009 को जारी विज्ञापन के अनुसार प्राध्यापक पद के लिए पीएचडी के बाद 10 वर्षों का शिक्षण अनुभव अनिवार्य था, जबकि प्रो. वर्मा के पास यह अनुभव नहीं था।
इतना ही नहीं, लोक सेवा आयोग ने उच्च न्यायालय में स्पष्ट किया था कि शिक्षण अनुभव की गणना पीएचडी उपरांत ही की जाएगी, लेकिन प्रो. वर्मा के पास इस शर्त को पूरा करने का कोई प्रमाण नहीं था। इसके बावजूद प्रशासन ने नियमों को ताक पर रखकर उनकी नियुक्ति कर दी। इस पूरे मामले में यूजीसी के 2003 एवं 2018 के विनियमों का भी खुला उल्लंघन किया गया। यह साफ दर्शाता है कि किसी न किसी स्तर पर शासन-प्रशासन के भीतर मजबूत संरक्षण प्राप्त कर कुलगुरु ने यह पद हथियाया।
महिला अधिकारी से अभद्रता का मामला – चरम पर पहुंची मनमानी!
कुलगुरु प्रो. वर्मा के खिलाफ एक महिला अधिकारी से अभद्रता का मामला भी सुर्खियों में है। यह मामला और भी गंभीर हो जाता है जब एक विश्वविद्यालय का कुलगुरु नैतिकता और शुचिता की धज्जियां उड़ाते हुए अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है। क्या एक उच्च शिक्षण संस्थान के शीर्ष पद पर आसीन व्यक्ति से इस प्रकार के आचरण की अपेक्षा की जा सकती है? क्या यह हमारे शिक्षा तंत्र के पतन का संकेत नहीं देता?
शासन का मौन – आखिर किस दबाव में है उच्च शिक्षा विभाग?
मामले की गंभीरता को देखते हुए मध्यप्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने 19 फरवरी 2025 को इस प्रकरण की जांच के आदेश जारी किए और अतिरिक्त संचालक, उच्च शिक्षा, जबलपुर संभाग को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि 5 कार्यदिवसों के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपनी होगी, लेकिन आज दिनांक तक इस आदेश पर कोई अमल नहीं हुआ। सवाल यह उठता है कि आखिर कौन कुलगुरु को बचाने में लगा है? क्यों जांच अधिकारी मौन हैं? क्या यह पूरे शासन तंत्र पर एक गंभीर धब्बा नहीं है?