जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

भाजपा के समर्पित सिपाही प्रहलाद पटेल

देश का ऐसा नेता जो अलग अलग जगह से लड़ा चुनाव

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तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित…
आंखों को, गर पढ़ सके तो, तुझको ये जीवन समर्पित…
ये पंक्तियां मां नर्मदा के अनन्य भक्त, केंद्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रहलाद पटेल पर सटिक बैठती हैं। उनका तन और मन दोनों अपनी पार्टी भाजपा, जनसेवा, नर्मदा सेवा, गाय, गांव, गरीब के लिए पूरी तरह समर्पित है। पारिवारिक विपदा के बाद भी उन्होंने अपनी कर्मठता को कम नहीं होने दिया। इसका ताजा उदाहरण यह है की युवा भतीजे के निधन से जब पटेल और उनका पूरा परिवार शोक में डूबा हुआ है तब पार्टी ने उन्हें नरसिंहपुर से विधानसभा चुनाव लडऩे की चुनौती दी और उन्होंने बिना ना-नुकुर के हामी भर दी। प्रहलाद ही नहीं उनका पूरा परिवार सेवा, समर्पण, सद्भाव, सादगी, शालिनता, सहनशीलता और सहजता का विराट आदर्श प्रस्तुत करता है। तभी तो पार्टी ने बड़े भाई प्रहलाद पटेल को जब छोटे भाई जालम सिंह की सीट से चुनाव लडऩे की जिम्मेदारी सौंपी तो जालम सिंह ने उसे सहज स्वीकार कर लिया।

 

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दशकों से उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वक्त के साथ भाई साहब नहीं बदलते। उन्होंने कई राजनैतिक उतार चढ़ाव देखे, लेकिन वे वैसे ही रहे,जैसे है। उनका यही व्यक्तित्व उनके साथ लोगों की गांठ बांधता है। अगर प्रहलाद पटेल की राजनीतिक यात्रा का आकलन करें तो हम पाते हैं कि भाजपा ने हमेशा उन्हें चुनौतियों के सामने खड़ा किया है और उन्होंने उसे सहर्ष स्वीकार किया है। दरअसल, चुनौतियों से लडऩे, धर्म और अध्यात्म की राह पर चलने की सीख उन्हें घर से और आध्यात्मिक गुरु से ही मिली है। राजनीति की धारा में बहते हुए धर्म और अध्यात्म को साधने वाले ग्रामीण परिवेश के नेता प्रहलाद सिंह पटेल की पुण्य सलिला रेवा में गहरी आस्था है। वह नर्मदा की परिक्रमा कर चुके हैं। राजनीति और धर्म के संगम वाले इस नेता की कबड्डी, वालीबाल और एथलेटिक्स में गहरी रुचि है। वकालत की पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी दी, जिसमें वे पास भी हुए। लोक सेवा आयोग की परीक्षा में मेरिट के आधार पर उन्हें डीएसपी का पद मिला, लेकिन प्रहलाद सिंह पटेल ने कार्यपालिका में सेवा देने की अपेक्षा व्यवस्थापिका के माध्यम से सेवा करने का मार्ग चुना। वह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की न्यायिक समिति के सदस्य हैं। पांच बार के सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री पटेल को उनके गृह जिले नरसिंहपुर से विधानसभा चुनाव के लिए मैदान पर उतारा गया है। यह पहली बार है जब वे अपने गृह नगर से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वरना पार्टी ने उन्हें जहां से भी चुनाव लडऩे की जिम्मेदारी दी, वे वहीं से चुनाव लड़े। पहली बार 1989 में नौवीं लोकसभा के लिए वे सिवनी से चुने गए, इसके बाद 1996 में 11वीं लोकसभा में उनका दूसरा कार्यकाल और फिर 1999 में बालाघाट से 13वीं लोकसभा में तीसरा कार्यकाल रहा। चौथे कार्यकाल 2014 में 16वीं लोकसभा और 2019 में पांचवें कार्यकाल के तहत उन्हें दमोह से 17वीं लोकसभा के लिए चुनाव मैदान में उतारा गया और वे चुने गए। प्रहलाद पटेल की पार्टी के प्रति समर्पण भाव को इससे भी समझा जा सकता है कि जब उन्हें भाजपा ने छिंदवाड़ा से कमलनाथ के खिलाफ चुनाव लडऩे के लिए उतारा तो वे बिना झिझक मैदान में उतर गए। पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने जन सेवा करने के लिए राज्य प्रशासनिक पद का छोड़ दिया था। प्रहलाद सिंह पटेल जितने राजनीति में सक्रिय उतने ही गंभीर परिजनों अपने सहयोगियों के प्रति भी दिखाई देते हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा था कि भले ही नरसिंहपुर से मुझे पार्टी ने टिकट दिया है, लेकिन जीता तो जीत मेरे छोटे भाई जालम सिंह पटेल की ही होगी। बता दे भाजपा प्रहलाद पटेल को किसी अन्य विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाना चाहती थी,लेकिन उनके अनुज ने नरसिंहपुर सीट से विधायक जालम सिंह पटेल संगठन से कहा कि उनका टिकट रोककर प्रहलाद जी को जन्म भूमि से चुनाव लड़ाया जाए। यह संदेश भी था । परिवारवाद को पनपने नहीं देने का । चुनावी संग्राम में प्रहलाद पटेल दूसरी विधानसभा सीटों पर जाकर भी भाजपा की प्रत्याशियों के लिए प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। दरअसल, बुंदेलखंड क्षेत्र में पटेल का अच्छा खासा प्रभाव है।
पटेल देश की राजनीति में एक मात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अभी तक चार लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा है। देश में जहां बड़े-बड़े नेता सुरक्षित सीट तलाश करते हैं या अपनी परंपरागत सीट से ही लड़ते हैं, ऐसे में प्रहलाद पटेल नए क्षेत्र से किस्मत आजमाते रहे। पटेल ने 2004 में छिंदवाड़ा से कमलनाथ के खिलाफ चुनाव लडकऱ खूब सुर्खियां बटोरी थी। हालांकि वे यह चुनाव हार गए थे, लेकिन मोटर साइकिल से प्रचार करने को लेकर पटेल चर्चा में रहे। प्रहलाद पटेल खुद कहते हैं कि इससे कार्यकर्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे क्या जिम्मेदारी दी गई है। पार्टी जहां से आदेश देती है, मैं चुनाव लड़ता हूं। वैसे मेरा मानना है कि अमूमन सभी जगह जनता की समस्याएं समान होती हैं। कई चीजों से उन्हें एलर्जी है। और कुछ ज्यादा ही है। वे नशे के विरोधी है। शराबियों से नशेलचियों से शराब के व्यापारियों से या किसी भी तरह के नशाखोरों से उनकी नहीं बनती। सिर्फ इतना ही नहीं वे नशे के खिलाफ लंबे समय तक नियमित रुप से उपवास करते रहे। वह भी जब भीषण गर्मी पड़ती है। यानि नौ तपा लगते हैं तब। आज भी नशा मुक्ति के लिए हमेशा कुछ न कुछ काम करते ही रहते है। हालांकि मुश्किल होता है लेकिन शराब के कारोबार से धन्ना सेठ हुए लोगों के धन से वे बचते रहते है। उनके कार्यक्रमों मे कभी भी कोई दारू ठेकेदार आपको आगे की सीट पर झक सफेद कपड़े पहने बैठा नहीं मिलेगा। न ही चंदा देने की धौंस जमाता हुआ दिखेगा। नशे के विरोध में और लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने हजारों किलोमीटर पैदल ही धरती नापी। उनका संकल्प है, नई पीढ़ी इस अजगर की पकड़ से छूट जाए। उनकी कोशिश इस तरफ चलती रहती है। प्रहलाद पटेल राजनीति करते हुए भी समाज सेवा करते हुए आपको मिल ही जाएंगे। वैसे आजकल लोग अक्सर समाज सेवा में राजनीति करते है। उत्तराखंड में जब भूकंप आया तो पूरा इलाका तहस नहस हो गया था। उस समय अपने पूरे दल बल के साथ वे उत्तराखंड पहुंच गए। और अपना खम्ब ठोककर वहीं डट गए। गरीब और जरूरतमंदों के लिए लगातार काम करते रहे। उनकी टीम ने उन दिनों में जो मकान बनाए वे आज भी मजबूती के साथ अपनी कहानी कहते आ रहे है। उनका कहना है कि मुसीबत में फंसे आदमी का साथ दो, वह खुद ब खुद खड़ा हो जाएगा। सिर्फ तरस खाना आदमी को निकम्मा बना देता है। लेकिन उसका साथ दो तो वह लडऩे के लिए खुद खड़ा हो जाता है। नर्मदा सफाई के लिए उनका लगातार काम करना बताता है कि समाज सेवा और जुनून एक ही सिक्के के दो पहलू है। वे लगातार नर्मदा सफाई करते आ रहे है। सालों से इस काम को लगातार करने पर भी कभी इसका राजनैतिक फायदा या किसी तमगे कि उन्होंने कोई कोशिश नहीं की। उनका दृष्टिकोण है सिर्फ नारा मत लगाओ। अगर बदलाव चाहते हो तो समाज के सामने विकल्प पैदा करो। यह सिर्फ रैलियों मे कही जाने वाली बात नहीं है। न ही कोई राजनैतिक भाषण है। यह उनका कर्म है जो दमोह में एक इतिहास बन रहा है। दमोह का गौ अभयारण जिसे बनते पनपते वहां के लोग देख रहे है। आज गौ अभयारण के कारण हजारों गौ धन की जान बचाई गई। इतना ही नहीं समाज को यह भी बताया गया कि सिर्फ नियत और एक ही दिशा में किया गया कर्म वह रच देता है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की हो। राजनीति में गुटबाजी या फिर लाबिंग खूब चलती है। लेकिन प्रहलाद पटेल से मिलकर लगता है कि वे सिर्फ संगठन के व्यक्ति है। वे संगठन की अगुंली पकडकऱ चलने वाले आदमी है। पार्टी लाइन और संगठन के निर्देश उनके लिए किसी गीता से कम नहीं है। यह बात भी सच है कि अगर आप उनका हाथ पकडऩे की कोशिश करोगे तो अमूमन साधकों की तरह आपको लगेगा कि वे झटक रहे है। लेकिन किसी मुसीबत में पडऩे पर आपको इस बात का पता ही नहीं चलेगा कि वह कब उन्होंने आपका हाथ पकड़ लिया। और बार बार आपके डममगाने पर उन्होंने संभाला। आजकल इस तरह के हमसफर कहां मिलते है। यही कारण है कि उन्होंने साथ निभाने की अपनी आदत के कारण कई बार नुक्सान भी सहन किया है। लेकिन रिश्तों में वे मुनाफा नहीं खोजते।
गीत दीक्षित,,,,

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