
यश भारत — संपादकीय
भारत में सड़क हादसों और उनसे हो रही मौतों का बढ़ता ग्राफ चिंताजनक है सड़क हादसों के मुख्य कारणों में तेज रफ्तार, यातायात नियमों का पालन न करना (जैसे हेलमेट और सीट बेल्ट न पहनना), मानवीय त्रुटि, और वाहनों की खराबी शामिल हैं। औसतन हर घंटे 55 सड़क हादसे होते हैं, जिनमें 20 मौतें होती हैं। 2024-25 में सड़क दुर्घटनाएँ बढ़ रही हैं, खासकर 2025 की शुरुआत में आई कमी के बाद अब यह आंकड़ा फिर बढ़ रहा है। इसका मुख्य कारण लापरवाही और तेज रफ्तार है। कुछ राज्यों, जैसे मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में, 2024 में दुर्घटनाओं और मौतों में वृद्धि दर्ज की गई है। तेज रफ्तार, बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाना और सरकारी निर्देशों के कारण पुलिस की ढीली कार्रवाई को भी इस वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण है लापरवाही और तेज रफ्तार। इसके अलावा लोग सड़क नियमों का पालन नहीं करते, जिससे दुर्घटनाएँ होती हैं। सरकारी निर्देशों के कारण पुलिस की कार्रवाई में कमी आई है, जिससे वाहन चालकों में डर कम हुआ है।
मध्य प्रदेश में 2024 में सड़क दुर्घटनाओं में 14,791 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 2023 में यह संख्या 13,798 थी। महाराष्ट्र में 2024 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या 2023 की तुलना में 28 से अधिक बढ़ गई। तमिलनाडु में जून 2024 तक पिछले वर्ष की तुलना में 637 दुर्घटनाएँ बढ़ी हैं। स्कूल और कॉलेज के आसपास भी सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं। 2024 में ऐसे लगभग 26,220 हादसे हुए। सड़क हादसों में 18-34 वर्ष के लोगों की मृत्यु दर अधिक है, और बिना हेलमेट के मरने वालों की संख्या भी काफी है। हालांकि सड़कों का डिज़ाइन बदला जा रहा है और सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी हादसों में कमी नहीं आ रही है। इन दुर्घटनाओं में अन्य कारणों के अलावा सबसे अधिक भूमिका तकनीकी व गुणवत्ता की खामियों वाली सड़कों की होती है।
यह भयावह है कि भारत में 2024 में 3.6 लाख से अधिक दुर्घटनाएँ और 1.78 लाख से अधिक मौतें हुई। उस पर सबसे दुखद यह है कि मरने वालों में एक लाख चौदह हजार लोग अट्ठारह से 45 वर्ष के बीच के युवा थे। जो परिवार के कमाने वाले व नई उम्मीद थे। इन हालात को देखते हुए ही केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक इन सड़क दुर्घटनाओं को आधा करने का लक्ष्य रखा है। यह विडंबना ही है कि दुर्घटनाएं रोकने के लिये सख्त कानून बनाने एवं तकनीक के जरिये चालकों की लापरवाही पर नजर रखने जैसे उपायों के बावजूद आशातीत परिणाम सामने नहीं आए हैं। ऐसे में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के बेबाक सुझाव से सहमत हुआ जा सकता है कि खराब सड़क निर्माण को गैर-जमानती अपराध बना दिया जाना चाहिए। इसके लिये ठेकेदार और इंजीनियर की जवाबदेही तय होनी चाहिए। हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ के एक कार्यक्रम में उन्होंने दुख जताया कि विदेशों में होने वाले कार्यक्रमों में जब भारत में विश्व की सर्वाधिक सड़क दुर्घटना वाले देश के रूप में चर्चा होती है, तो उन्हें शर्म महसूस होती है। आखिर तमाम प्रयासों के बावजूद सड़क हादसे क्यों नहीं थम रहे हैं।
यह बात तय है कि अगले पांच सालों में सड़क दुर्घटनाओं को यदि आधा करना है, तो युद्ध स्तर पर प्रयास करने होंगे। उन कारणों को तलाशना होगा, जिनकी वजह से हर साल सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है। आखिर क्या वजह है कि राजमागों के विस्तार और तेज गति के अनुकूल सड़कें बनने के बावजूद हादसे बड़े हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि राजमार्गों व विभिन्न तीव्र गति वाली सड़कों में साम्य का अभाव है, वहीं मोड़ों को दुर्घटना मुक्त बनाने हेतु तकनीक में बदलाव की जरूरत है। ऐसे में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय को उन कारणों की पड़ताल करनी होगी, जो पर्याप्त धन आवंटन के बावजूद सड़कों को दुर्घटनामुक्त बनाने में बाधक हैं। जरूरी है कि सड़कों की निर्माण सामग्री और डिजाइनों की निगरानी के लिये स्वतंत्र व सशक्त तंत्र बनाया जाए, जो बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के काम कर सके। साथ ही मंत्रालय का दायित्व बनता है कि इस बाबत स्पष्ट नीति को सख्ती से लागू किया जाए।







