डूरंड रेखा पर सुलगती आगः पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान एक विनाशकारी टकराव की ओर
यश भारत -- संपादकीय

एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य एक अप्रत्याशित और खतरनाक मोड़ ले रहा है, जहाँ पाकिस्तान और आरुगानिस्तान के बीच का तनाव अब केवल सीमावर्ती झड़पों तक सीमित न रहकर एक खुली जंग का रूप लेता दिख रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के आसमान में बारूद की गंध घुल चुकी है। कहीं बम गिराए जा रहे हैं तो कहीं मिसाइलें बागी जा रही है। यह टकराव दो पड़ोसी इस्लामी देशों के बीच है, जिनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने रहे हैं। हालिया तनाव की शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को आरुगानिस्तान की राजधानी काबुल पर मिसाइल हमला किया। इस हमले का कथित निष्ठाना तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का सरगना मुफ्ती दूर वली था, जो बच निकलने में कामयाब रहा। यह हमला टिहरी के तालिबान द्वारा पाकिस्तान में किए गए उन आत्मघाती हमलों का बदला था। जिनमें बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्चा में कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। पाकिस्तान की इस आक्रामक कार्रवाई का जवाब अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत ने पूरी ताकत से दिया। 11 अक्टूबर की रात, तालिबान लड़ाकों ने डूरंड रेखा पर स्थित पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर भीषण हमला बोल दिया। पाकिस्तान की इस कथित सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से परस्पर दावों और प्रतिदावों का दौर शुरू हो गया। तालिबान ने 58 पाकिस्तानी सैनिकों को मारने और 25 चौकियों पर कब्जा करने का दावा किया, जबकि पाकिस्तान ने अपने 23 सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि करते हुए जवाबी ड्रोन हमलों में 200 अफ़ग़ान लड़ाकों को ढेर करने और 19 चौकियों वापस छीनने का दावा किया है। इन परस्पर विरोधी बयानों से स्पष्ट है कि जमीनी हकीकत के साथ-साथ एक सूचना युद्ध भी लड़ा जा रहा है, जिसका उद्देश्य अपने घरेलू दर्शकों के सामने
अपनी सैन्य सफलता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है।
पाकिस्तान का भू-राजनीतिक अकेलापन
इस संघर्ष में पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी माने जाने वाले सऊदी अरब भी उससे किनारा कर लिया है। स्मरण हो कि हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक समझौता भी हुआ है बाबू बावजूद इसके सऊदी अरब की इस हमले को लेकर चुप्पी पाकिस्तान के लिए एक स्पष्ट संदेश है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने सऊदी विदेश मंत्री को फोन कर अफगानिस्तान द्वारा हमला किए जाने की शिकायत भी की, लेकिन सऊदी अरब ने सैन्य हस्तक्षेप से इनकार करते हुए केवल शांति और संवाद की सलाह दी। यह घटनाक्रम पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है, जो यह दर्शाता है कि उसके पारंपरिक सहयोगी अब उसके छद्म युद्धों का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान रणनीतिक गुरु करने वाला देश बन चुका है। एक भूल पाकिस्तान ने 2021 में भी की थी, जब काबुल पर तालिबान कब्जा कर लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसे ‘गुलामी की बेड़ियों से आजादी बताया था और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के प्रमुख ने काबुल में बैठकर अपनी जीत का जश्न मनाया था। पाकिस्तान की फौज और सरकार को लगता था कि तालिबान सत्ता में आने के बाद भारत के खिलाफ एक नया मोर्चा खोलेगा और पाकिस्तान का सहयोगी बनेगा। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत। 2025 में ही दोनों देशों के बीच 6 बड़े हमले हो चुके हैं, जो साबित करते हैं कि पाकिस्तान ने जिस तालिबान को पाला-पोसा, आज वही उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। विवाद की जड़ डूरंड रेखा जो 1893 में ब्रिटिश शासन द्वारा खींची गई 2640 किलोमीटर लंबी डूरंड रेखा है। इस रेखा ने पश्तून आबादी को दो देशों में विभाजित कर दिया, जिसे अफ़ग़ानिस्तान ने कभी भी एक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता नहीं दी। यह सीमा रेखा दशकों से दोनों देशों के बीच अविश्वास और झड़पों का कारण रही है। इसके अलावा, पाकिस्तान में मौजूद लगभग 30 लाख अफ़ग़ान शरणार्थियों का मुद्दा भी तनाव का एक प्रमुख कारण है। इनमें से केवल 14 लाख के पास ही वैध दस्तावेज हैं। पाकिस्तान सरकार बाकी शरणार्थियों को अवैध करार देकर देश से बाहर निकालने की मुहिम चला रही है, जिसे तालिबान हुकूमत एक ‘मानवीय संकट’ और अपने लोगों का अपमान मानती है।
इस पूरे घटनाक्रम में भारत एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका में उभरा है। एक ओर जहाँ पाकिस्तान और अफगानिस्तान युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं, वहीं तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर मुत्ताकी भारत का दौरा कर रहे हैं। इस दौरे में जारी संयुक्त घोषणा-पत्र में दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता, एकता और अखंडता का सम्मान करने का संकल्प लिया। जम्मू-कश्मीर पर भारत की संप्रभुता को तालिबान का समर्थन पाकिस्तान के लिए एक बड़ा राजनयिक झटका है।







