जबलपुर यश भारत। नगर निगम चुनाव को 2 साल से ज्यादा का समय बीत गया है लेकिन उसके बाद भी यहां स्थायित्व दिखाई नहीं दे रहा पहले जहां कांग्रेस के महापौर थे और भाजपा का बहुमत था फिर कांग्रेस के महापौर भाजपा के हो गए और फिर विपक्ष में बैठा भाजपा पार्षद दल अपने आप सत्ता पक्ष में आ गया ।लंबे इंतजार के बाद 10 एमआईसी पदों में से पांच पर ताजपोसी हुई और पांच खाली छोड़ दिए गए। अब उन पांच खाली पड़े पदों पर फिर से ताजपोसी होने की सुगबुगाहट है ऐसे में सत्ता की गलियों सह और मात का खेल शुरू हो गया है।
यह है समीकरण
नियमों के अनुसार जबलपुर नगर निगम में महापौर के अलावा उनकी कोर टीम में 10 सदस्यों की नियुक्ति हो सकती है वर्तमान में पांच सदस्य अभी पद पर मौजूद है। जिसमें राम सोनकर जो पूर्व विधानसभा से आते हैं सुभाष तिवारी जो पनागर विधानसभा के वार्ड से आते हैं श्रीमती रजनी साहू और श्रीमती अंशुल यादव जो मध्य विधानसभा से हैं और दामोदर सोनी जो कैंट विधानसभा से हैं। जबकि इस पूरी टीम में पश्चिम विधानसभा से एक भी नाम नहीं है ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि यहां से दो या तीन नाम सामने आ सकते हैं लेकिन उन नाम को लेकर अभी भी कोई स्थिति साफ नहीं है।
यहां फंसा है पेच
वर्तमान में जो एम आई सी है उसमें पांच सदस्य पहली बार पार्षद चुनकर आए हैं, जिसके चलते हुए एमआईसी मेंबर भी पहली बार ही बने हैं। वही सत्ता पक्ष से नगर निगम की सदन में ऐसे चेहरे भी बैठे हुए हैं जिन्हें दो से तीन बार एम आई सी में काम करने का अनुभव है और 4 से 5 बार वे सदन के सदस्य रह चुके हैं। लेकिन क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए उन्हें बाहर बैठाया गया था और अब वे नाम भी कहीं ना कहीं सदन में आने की इच्छा रखते हैं। लेकिन क्षेत्रीय राजनीति के चलते कुछ जनप्रतिनिधि उन्हें बाहर ही रखना चाह रहे हैं जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा मध्य और पूर्व विधानसभा क्षेत्र की है।
अनुभवी नेताओं को अनुभव से आपत्ति
एम आइ सी के इस गुणा भाग में जो सबसे बड़ी बात सामने आ रही है वो यह है की राजनीति का लंबा अनुभव रखने वाले कुछ नेता एम आई सी में अनुभवी सदस्यों को देखना नहीं चाह रहे हैं। जिसके चलते विवादों से बचने के लिए जो पांच सदस्यों की पहली टीम घोषित की गई थी उसमें पहली बार पार्षद बने चेहरों को मौका दे दिया गया। ताकि विवाद की स्थिति निर्मित ना हो और अब जो पांच सदस्य नियुक्त हो सकते हैं उनमें भी यही लड़ाई भीतर खाने चल रही है। एक ओर जहां पश्चिम विधानसभा से ज्यादातर पार्षद पहली बार चुनकर आए हैं या फिर उन्हें नगर सत्ता का अनुभव नहीं है। ऐसे में पश्चिम के कोटे से दो या तीन नाम नए ही हो सकते हैं। बाकी बचे नाम को लेकर भी भाजपा की अंदरूनी राजनीति में जमकर खीच तान चल रही है।