अभी तक नहीं चला पता करोड़ों की संपत्ति का मालिक कौन…!
न रेलवे को खबर, न टेलीकॉम फैक्ट्री को पता!

अभी तक नहीं चला पता करोड़ों की संपत्ति का मालिक कौन…!
न रेलवे को खबर, न टेलीकॉम फैक्ट्री को पता!
मदन महल स्टेशन से टेलीकॉम फैक्ट्री तक फैली रेलवे लाइन के किनारे अतिक्रमण की बाढ़,
विभागों की बेखबर लापरवाही से सरकारी संपत्ति पर संकट
जबलपुर यशभारत। मदन महल रेलवे स्टेशन से लेकर टेलीकॉम फैक्ट्री तक लगभग डेढ़ किलोमीटर तक फैली करोड़ों रुपये की संपत्ति का आखिर कौन मालिक है यह सवाल अब भी अनुत्तरित है। इस संबंध में जब रेलवे के अधिकारियों से पूछा गया तो उनके पास भी कोई जवाब नहीं था वही टेलीकॉम फैक्ट्री महाप्रबंधक भी इस मामले की जानकारी देने में कन्नी काट रहे हैं। बता दें कि वर्षों से इस क्षेत्र में रेलवे की पुरानी साइड लाइन पड़ी हुई है लेकिन अब उस पर धीरे-धीरे अतिक्रमण बढ़ने लगा है। अब स्थिति यह है कि न तो रेलवे विभाग को इस क्षेत्र के स्वामित्व की स्पष्ट जानकारी है और न ही टेलीकॉम फैक्ट्री के अधिकारी यह बता पा रहे हैं कि जमीन किस दायरे में आती है। दोनों विभागों की इस बेखबरी ने सरकारी संपत्ति को कब्जे के खतरे में डाल दिया है।

जब यशभारत ने मौके पर जाकर देखा तो रेलवे लाइन के आसपास तिक्रमण फैला हुआ है कुछ स्थानों पर तो निजी उपयोग के लिए पक्के निर्माण तक कर लिए गए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई वर्षों से यह क्षेत्र उपेक्षित पड़ा है। नियमित निगरानी या सीमा निर्धारण न होने से लोगों ने धीरे-धीरे जगह पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया है।
वर्ष 2012 से बंद होने की खबर
वहीं इस संबंध में यदि सूत्रों की माने तो यह साइड लाइन पहले टेलीकॉम फैक्ट्री में मालगाड़ियों के संचालन के लिए उपयोग में लाई जाती थी, परंतु पिछले 2012 से इसका प्रयोग बंद है। वहीं, टेलीकॉम फैक्ट्री के अधिकारी भी इस भूमि को अपने अधीन मानने से इंकार कर रहे हैं। दोनों विभागों की चुप्पी ने इस जमीन को विवादों के घेरे में ला खड़ा किया है।
पमरे के अधिकारी पुराने रिकॉर्ड खंगालने में जुटे
पमरे मुख्यालय में बैठे अधिकारी अब इस मामले की गंभीरता को समझते हुए पुराने रिकार्ड खंगालने में जुटे हैं। बताया जा रहा है कि जमीन से जुड़े नक्शे और स्वामित्व दस्तावेज कई दशकों पुराने हैं, जिन्हें ढूंढना और मिलान करना आसान नहीं है। रेलवे व टेलीकॉम फैक्ट्री अधिकारियों में इस खबर को लेकर काफी माथापच्ची करनी पड़ रही है लेकिन दोनों विभाग को यह तय करना मुश्किल हो गया है कि जमीन रेलवे की है या टेलीकॉम फैक्ट्री की।

जमीन निजी हाथों में जाने का खतरा
वहीं इस संबंध में जानकारों का कहना है कि अधिकारियों की लापरवाही से यह करोड़ों की सरकारी संपत्ति बर्बादी की कगार पर है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो अतिक्रमण और गहराएगा तथा आगे चलकर यह जमीन निजी हाथों में पूरी तरह चली जाएगी।
एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहेंगे…?
जनहित से जुड़ी इस भूमि पर सवाल उठता है कि आखिर कब तक यह स्थिति बनी रहेगी। क्या यह रेलवे लाइन यूं ही पड़ी रहेगी और विभाग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टालते रहेंगे? अब ज़रूरत है कि जिला प्रशासन, रेलवे और टेलीकॉम फैक्ट्री मिलकर संयुक्त रूप से इस भूमि का सीमांकन करें और असली स्वामित्व तय करें, ताकि करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति को बचाया जा सके।







