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जबलपुरमध्य प्रदेश

कृषि विश्वविद्यालय के नए सिलेबस में पढ़ाया जा रहा , ट्रैक्टर की बजाए करें हल से खेती

प्राकृतिक वातावरण में हो रहे बदलाव के बाद कृषि विशेषज्ञों ने निकाला बीच का रास्ता, प्राकृतिक खेती करने की नसीहत

 

जबलपुर, यश भारत। कहते हैं दुनिया गोल है लेकिन कृषि विश्वविद्यालय के सिलेबस में यह चरितार्थ भी हो गया l जलवायु परिवर्तन से हो रहे फसलों को नुकसान और खेती में बढ़ते रसायनिक खाद के उपयोग के दुष्परिणाम ने देश के कृषि शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है। इससे निपटने के लिए उन्होंने कृषि पाठ्यक्रम में बदलाव किए हैं। यह बदलाव 2023-24 के नए शिक्षा सत्र से दिखाई देंगे। अब कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को माडल खेती के साथ प्राकृतिक खेती का पाठ भी पढ़ाया जाएगा। जिसमें अब उन्हें ट्रैक्टर से खेती करने की बजाय हल से कैसे खेती की जाती है और उसके क्या फायदे हैं यह बताया जाएगाl

नए स्लेबस में प्राकृतिक खेती से जुड़े सभी विषयों को जोड़ा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आइसीएआर) ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर समेत देश के 60 से ज्यादा कृषि विश्वविद्यालयों के बैचलर आफ एग्रीकल्चर साइंस यानी बीएससी एग्रीकल्चर के पाठ्यक्रम में प्राकृतिक खेती के विषय को जोड़ा है। अब विद्यार्थी को प्राकृतिक खेती के बारे में पढ़ाया जाएगा। जनेकृविवि ने स्नातक का नया सत्र शुरू कर दिया है, जिसमें नए स्लेबस में प्राकृतिक खेती से जुड़े सभी विषयों को जोड़ा गया है।

कृषि शिक्षा का सिलेब्स बनाने वाले विशेषज्ञों ने गांव के किसानों और परंपरागत खेती करने वाले मालगुजारों से संपर्क किया। उनके खेती करने के गुर का अध्ययन किया। इससे होने वाले फायदों का डाटा तैयार किया। परंपरागत खेती से हो रहे फायदे और इस ओर से किसानों के दूरी के कारणों का पता लगाया। इसे माडल खेती से जोड़ने और इससे होने वाले फायदों के अध्ययन के बाद पूरा कोर्स तैयार किया गया है। इसमें हर वह जानकारी है, जो सालों से गांव में हो रही खेती के तरीकों में अपनाई जाती है।

प्राकृतिक खेती में यह बताएंगे
ट्रैक्टर की बजाए हल से खेती करने के फायदे
रसायनिक खाद की बजाए जैविक खाद का उपयोग
बीज-हाइब्रिड बीज की बजाए खुद बीज तैयार करना
मौसम का अनुमान करने का पुराना तरीका

इन्होंने कहा….
प्राकृतिक खेती को सिलेबस में शामिल किया गया है। ताकि मुहैया सुविधाओं के हिसाब से परंपरागत खेती की जा सके और प्रकृति के सभी संसाधनों का भी प्रयोग हो सके।

एसबी अग्रवाल , सीनियर साइंटिस्ट

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