
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के परासिया स्थित सरकारी अस्पताल में एक महिला ने एक ऐसे बच्चे को जन्म दिया है, जिसे देखकर हर कोई हैरान है. इस नवजात की बनावट सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग है, जिसके कारण लोग इसे “एलियन जैसा” बता रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से फैल रही है और बच्चे को देखने के लिए अस्पताल के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी है.
डॉक्टरों ने बताया ‘हार्लेक्विन इचिथियोसिस’: एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी
जहां आम लोग इसे एलियन मानकर कौतूहल में हैं, वहीं डॉक्टरों ने इस मामले पर स्पष्टीकरण दिया है. परासिया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. शशि अतुलकर ने बताया कि यह बच्चा कोई एलियन नहीं, बल्कि ‘हार्लेक्विन इचिथियोसिस’ (Harlequin Ichthyosis) नामक एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी से पीड़ित है.
क्या हैं इस बीमारी के लक्षण?
हार्लेक्विन इचिथियोसिस एक गंभीर त्वचा विकार है जो नवजात शिशुओं को प्रभावित करता है. इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे के शरीर पर कई असामान्य लक्षण दिखते हैं:
- कठोर और मोटी त्वचा: बच्चे का पूरा शरीर एक सफेद, कठोर और मोटी परत से ढका होता है, जो हीरे के आकार की प्लेटों जैसी दिखती है और गहरी दरारों से अलग होती है.
- सूजे हुए अंग: नवजात के होंठ सूजे हुए होते हैं और पलकें भी सूजी तथा मुड़ी हुई होती हैं, जिससे बच्चे का चेहरा काफी विचित्र लगता है.
ABCA12 जीन में गड़बड़ी है वजह
चर्म रोग विशेषज्ञ डॉ. एनके विश्वास ने बताया कि हार्लेक्विन इचिथियोसिस ABCA12 जीन में आनुवंशिक भिन्नता के कारण होती है. यह जीन शरीर में स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं के विकास के लिए ज़रूरी प्रोटीन बनाता है. इस जीन में गड़बड़ी होने से त्वचा का सामान्य विकास बाधित होता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं.
कितनी दुर्लभ है यह बीमारी?
डॉ. अतुलकर के अनुसार, हार्लेक्विन इचिथियोसिस एक बेहद दुर्लभ बीमारी है. यह लगभग 5 लाख बच्चों में से किसी एक को होती है. उन्होंने बताया कि भारत में इस बीमारी का पहला मामला 2016 में महाराष्ट्र के नागपुर में सामने आया था. छिंदवाड़ा में पिछले दो सालों में ऐसे तीन मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें 3 नवंबर 2022 को चांदामेटा में और 26 जून 2024 को परासिया में जन्मे बच्चे शामिल हैं.
विरासत में मिलती है यह बीमारी
डॉ. एनके विश्वास ने बताया कि हार्लेक्विन इचिथियोसिस ऑटोसोमल रिसेसिव तरीके से विरासत में मिलती है. इसका अर्थ है कि यदि माता या पिता में से किसी के जीन में इस बीमारी के लक्षण मौजूद हैं, तो उनके बच्चों में यह बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड और ABCA12 परीक्षण के माध्यम से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है.
वर्तमान में, यह नवजात शिशु जीवित है और उसका अस्पताल में इलाज चल रहा है. डॉक्टरों का कहना है कि वे बच्चे की स्थिति पर लगातार नज़र रखे हुए हैं.