कटनीमध्य प्रदेश

198 सालों से भक्तों पर अपनी कृपा बरसा रहीं विजयराघवगढ़ की माता शारदा, 1826 में राजा प्रयागदास ने कराया था मंदिर का निर्माण

1857 के युद्ध में अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया था मंदिर, 1984 में फिर हुआ जीर्णोद्धार, विजयराघवगढ़ में विराजी मैहर की मां शारदा की बड़ी बहन के दर्शन के लिए उमड़ रही भक्तों की भीड़

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बताया जाता है कि विजयराघवगढ़ के राजा प्रयागदास के साथ मां शारदा विजयराघवगढ़ में वर्ष 1826 में पहुंचीं थी। विजयराघवगढ़ 1857 की क्रांति का प्रमुख हिस्सा रहा है। राजा प्रयागदास द्वारा नगर में किले का निर्माण कराने के साथ ही मां शारदा के मंदिर की स्थापना कराई गई और कुएं, बावली, तालाब, पंचमठा, बगीचों का आदि का निर्माण कराया गया था। चैत्र व शारदेय नवरात्र के साथ ही यहां वर्ष भर भक्तों की खासी भीड़ उमड़ती है। शारदा माता के मंदिर की महिमा दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। पत्रकार सुरेन्द्र दुबे के मुताबिक 1857 के युद्ध में अंग्रेजों ने मंदिर व किले को नष्ट कर दिया था। 1984 में एक बार फिर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया और मैहर के पंडा देवी प्रसाद ने पूजन व अभिषेक किया था। पत्रकार जागेश्वर प्रसाद मिश्रा ने बताया कि विजयराघवगढ़ की माता को शारदा का साक्षात स्वरूप माना जाता है। खास बात ये है कि जिस तरह से मैहर माता पहाड़ पर विराजी हैं, वैसे ही विगढ़ में भी मां शारदा पहाड़ी पर विराजी हैं। इन्हें माता सरस्वती का रूप माना जाता है। मां शारदा भक्तों की मन्नतों को पूरा करती हैं।
यहां विराजती हैं मैहर की महारानी शारदा की बड़ी बहन
मंदिर के प्रधान पुजारी जगदीश प्रसाद त्रिपाठी ने बताया कि विजयराघवगढ़ में हर नवरात्र में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यहां पर मां शारदा के मंदिर की महिमा दूर-दूर तक भक्तों के बीच प्रसिद्ध है। विजयराघवगढ़ की माता को शारदा का साक्षात स्वरूप माना जाता है। खास बात ये है कि जिस तरह से मैहर माता पहाड़ पर विराजी हैं, वैसे ही विगढ़ में भी मां शारदा पहाड़ी पर विराजी हैं। इन्हें माता सरस्वती का रूप माना जाता है। यहां की महारानी भक्तों के मन्नतों को पूरा करती हैं।
191 वर्ष से श्रद्धालुओं पर कृपा बरसा रही माता रानी
पत्रकार जागेश्वर प्रसाद मिश्रा ने बताया कि मैहर से लगी कटनी जिले में शारदा देवी विराजती है। विशेषकर नवरात्र में मां शारदा देवी की बड़ी बहन के मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 1857 की क्रांति में अपनी अमिट छाप छोडऩे वाले राजा सरयू प्रसाद की ऐतिहासिक नगरी विजयराघवगढ़ मां के धाम के कारण भी विशेष पहचान रखता है। बताया जाता है विजयराघवगढ़ में 1826 में राजा प्रयागदास ने इस मंदिर की स्थापना कराई थी। 198 वर्ष से श्रद्धालुओं पर वे अपनी कृपा बरसा रही हैं।
अंग्रेजों ने नष्ट किया था मंदिर
1857 के युद्ध में अंग्रेजों ने मंदिर व किले को नष्ट कर दिया था। 1984 में एक बार फिर मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और मैहर के पंडा देवी प्रसाद ने पूजन व अभिषेक कराया था। यहां पर मंदिर के सामने सुंदर बाग, भरत बाग, राम बाग अखाड़ा, राम जानकी मंदिर, चारों धाम कीमूर्तियां, राजा का किला आदि आकर्षक का केंद्र हैं।

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