सनातन धर्म, दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है, सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान हैं..

सनातन और हिन्दू धर्म को अक्सर एक ही माना जाता है, लेकिन दोनों में अंतर हैं.
सनातन धर्म, दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है.
जबकि हिन्दू धर्म सिर्फ एक विचारधारा है। सनातन धर्म, हिन्दू धर्म के कुछ संप्रदायों के लिए एक उपनाम है। सनातन का मतलब है ‘शाश्वत’ या ‘सदा बना रहने वाला’. हिन्दू धर्म में मंदिर, पूजा-पाठ, और व्रतों को महत्व दिया जाता है। वहीं, सनातन धर्म में यज्ञ, साधना, तप, और ध्यान को प्राथमिकता दी जाती है। सनातन धर्म में सिख, जैन, बौद्ध जैसे धर्मों के लोग भी शामिल हैं. वहीं, हिन्दू धर्म में सिर्फ़ हिन्दू समुदाय शामिल है।
सनातन धर्म, शाश्वत सत्य है। सनातन शब्द सत् और तत् शब्द से मिलकर बना है। दोनों शब्दों का अर्थ यह और वह है। इसका व्यापक उल्लेख अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्म पूर्ण है।
वर्तमान समय में कलयुग चल रहा है।
दार्शनिक वेद को साक्षी मानकर सनातन धर्म की गणना करते हैं।
अनादि काल से सनातन धर्म चला आ रहा है।
सनातन धर्म में चार युगों का वर्णन किया गया है। ये क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हैं। वर्तमान समय में कलयुग चल रहा है। इस युग के समापन के पश्चात सतयुग प्रारंभ होगा। ये क्रम अनवरत जारी रहेगा। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल पैदा होता है कि आखिर सतयुग से पूर्व क्या था और सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई है ? इस विषय को लेकर दर्शन शास्त्र के जानकारों में मामूली मतभेद है। कई दार्शनिक वेद को साक्षी मानकर सनातन धर्म की गणना करते हैं। वहीं, कुछ जानकर शास्त्रों को आधार मनाते हैं। आधुनिक इतिहासकारों में सनातन धर्म की सटीक गणना को लेकर व्यापक मतभेद है। आधुनिक समय के इतिहासकार महज प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन कर सनातन धर्म को समझने की कोशिश करते हैं।
सनातन धर्म क्या है…
सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना है। दोनों शब्दों का अर्थ यह और वह है। इसका व्यापक उल्लेख ‘अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि’ श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। ब्रह्म पूर्ण है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्म पूर्ण है। इसे ही सनातन कहते हैं। आसान शब्दों में कहें तो सत्य ही सनातन है।
अब यह सवाल मन में उठता है कि सत्य क्या है? ईश्वर, आत्मा, मोक्ष ये सभी पूर्ण और ध्रुव सत्य हैं। अतः सनातन धर्म का न आदि है और न अंत है। कहने का अभिप्राय यह है कि अनादि काल से सनातन धर्म चला आ रहा है और अनंत काल तक रहेगा। इसका न आदि और न अंत है। सनातन अनंत है। इस सत्य को ही सनातन कहा जाता है। सनातन के माध्यम से ईश्वर,आत्मा और मोक्ष का ज्ञान होता है। विज्ञान के लिए भी मृत्यु पहेली बनी है। सनातन धर्म में ईश्वर, मोक्ष और आत्मा को तत्व और ध्यान से जाना जा सकता है। इस धर्म के प्रारंभ वर्ष की गणना करना कठिन है, किंतु वर्तमान साक्ष्य के आधार पर सनातन धर्म अनंत काल से चला आ रहा है। इस धर्म का मूल सार पूजा,जप-तप,दान,सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और यम-नियम हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवों, ऋषि-मुनियों और यहां तक कि साधारण मनुष्य ने भी इसी मार्ग पर चलकर अपना उत्थान किया है। सनातन में ॐ को प्रतीक चिह्न माना जाता है। इस धर्म में शिव-शक्ति, ब्रह्म और विष्णु को समान माना गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी संप्रदाय के लोग सनातन को मानते हैं। इस धर्म में शास्त्रों की रचना संस्कृत भाषा में की गई है।
प्रमुख आराध्य
सनातन धर्म में त्रिदेव- ब्रह्मा,विष्णु और महेश को प्रमुख आराध्य माना गया है। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि अरण्य संस्कृति में भी उनकी पूजा की जाती थी। यह वह समय था। जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हो पाया था। कालांतर में अरण्य संस्कृति ही आगे चलकर सनातन यानी जीने का आधार बनी। उस समय से भगवान शिव को सनातन का आधार माना गया है। विज्ञान वर्तमान समय तक आत्मा की गति को समझने में असफल रहा है। हालांकि,सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों ने ध्यान कर ब्रह्म,ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को उजागर किया। वेदों में सर्वप्रथम ‘मोक्ष’ का वर्णन मिला है। आत्मा की गति मोक्ष है। अतः सनातन धर्म में पुनर्जन्म का विधान है।
“सनातन धर्म में मंत्रों की शक्ति पर हैं विश्वास
मंत्र व्यक्ति के जीवन पर डालते है प्रभाव”
मंत्रो की ध्वनि, उनका अर्थ, उन पर आधारित विश्वास और ध्यान ही उनका आधार है। सनातन धर्म में हर एक कार्य के लिए मंत्र निर्धारित है। धर्म शास्त्रों में मंत्रो को काफी शक्तिशाली और प्रभावशाली बताया गया है। मंत्रो की ध्वनि, उनका अर्थ, उन पर आधारित विश्वास और ध्यान ही उनका आधार है। सनातन (हिंदू) धर्म शास्त्रों में मंत्र संस्कृत भाषा में लिखे गए है। ये मंत्र विशेष ध्वनियों और शब्दों का संयोजन होते है, जिन्हें किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाया गया होता है। इनके विभिन्न कारक है जिनके माध्यम से ये शक्ति प्रकट करते है।
संस्कृत में हर अक्षर और ध्वनि का एक विशेष कंपन होता है। यदि मंत्रों का उच्चारण सही ढंग से किया जाए तो उनमें से एक विशेष ध्वनि उत्पन्न होती है। ये ध्वनि तरंगे हमारे मन में सकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को डालने का काम करती है। इनसे हमें मानसिक शांति, ध्यान, और आत्म-साक्षात्कार होता है।
“मै मूढ़ मति हूँ सनातन धर्म की पूर्णतः व्याख्या नही कर सकता, क्योंकि सनातन अनंत है,जितना पूज्य गुरुदेव दद्दाश्री , साधु-संतो, वेद वक्ताओं, श्रेष्ठ विद्वान गुणी जनो से जो सुना समझा उसी को क़लम बध्य करने प्रयास किया हैं…।”