जबलपुरमध्य प्रदेश

भाई साहब की नैया भाभी जी के भरोसे

महिला सीटों पर नेताओं ने पत्नियों को उतारा मैदान में, पहले से काम कर रही महिला कार्यकर्ताओं की घर वापसी

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जबलपुर, यशभारत। चुनावों का शंखनाद होते हैं दावेदारों की रेलम पेल ऊंचे दरबारों में दिखने लगी है दरबार का हर दरबारी अपना चेहरा दिखा कर टिकट का जुगाड़ लगा रहा है। लेकिन सबसे ज्यादा मारामारी महिलाओं के लिए आरक्षित वार्डों में है यह दो तरह के चेहरे दिखाई दे रहे हैं। एक पुराना लेकिन थका हुआ, दूसरा नया लेकिन खिला हुआ।

हम बात करेंगे पहले दूसरे नंबर के चेहरे की, जो नया है और खिला हुआ है। ये वह नेता है जिनका नेतागिरी से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं रहा लेकिन अब वे टिकट की दौड़ में सारी दूरियों को मिटा कर टिकट के सबसे नजदीक आती दिख रही हैं। कारण यह नहीं है कि वह बहुत अच्छी संगठन करता है, लंबे समय से समाज सेवा कर रही हैं या फिर उनके अंदर कोई विशेष शक्ति है। कारण बस इतना है कि वह उन भाई साहब की धर्मपत्नी है जो लंबे समय से राजनीतिक दांव लगाते आ रहे हैं। भाई साहब का पुराना चेहरा और भाभी जी का नया चमकता चेहरा क्षेत्र में नई राजनीतिक बिसात बिछा रहे हैं। जिसकी बिसात पर पुराने चेहरे खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।

 

अब हम बात करते हैं पुराने चेहरों की जो लंबे समय से राजनीति में है पार्टी के लिए काम कर रहे हैं थोड़ा बहुत राजनीति के गुर भी जानते हैं उसके बाद भी बड़े दरबार में कहीं पीछे धकेल दिए गए है। यह हाल किसी एक पार्टी का नहीं है। यह स्थिति सभी दलों में निर्मित हो रही है चाहे विचारधारा की ध्वजा वाहक भाजपा हो या फिर गरीब की बात करने वाली कांग्रेसो सभी जगह भाभी जी का बोल वाला दिख रहा है, जो अपने पतियों की नैया को पार लगाने चौका चूल्हा छोड़कर बड़े दरबारों की हाजिर लगा रही है। लेकिन अचानक बाहर निकली इन देवियों ने पुरानी दीदियों की नैय्या को ऐन मौके पर डुबोने की पूरी व्यवस्था कर दी है।

 

चाहे भाजपा के आला नेता हो या कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व वे कार्यकर्ता को महत्व देने की बात करते है। कांग्रेस ने जहां टिकट देने को लेकर पूरा फॉर्मेट तैयार किया है वहीं भाजपा ने भी परिवारवाद और चाटुकारो को दूर रखने का फैसला किया है। लेकिन ऊंचे कार्यालयों में हुए बड़े फैसले नीचे जमीन पर अमर होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। बड़े दरबार का आदेश छोटे कार्यकर्ता के लिए सिर्फ एक जुमला बनकर रह गया है। जिसमें बात तो कार्यकर्ता की होती है लेकिन जो स्थिति वास्तविकता के धरातल पर दिख रही है उसमें पुरानी महिला कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रही हैं।

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