
उम्र कैद की सजा को लेकर चल रहे तमाम कन्फ्यूजन पर विराम लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ किया कि आजीवन कारावास की सजा का मतलब है दोषी की अंतिम सांस तक सजा। इसकी समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती है। दरअसल, कई मामलों में उम्र कैद की सजा मिलने पर इसे 14 साल की जेल की सजा मान लिया जाता है। इस पर कोर्ट ने कहा- हत्या की सजा अधिकतम मृत्युदंड और न्यूनतम उम्रकैद है, इसे कम नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह फैसला हत्या के दोषियों की उम्र कैद की सजा कम करने की याचिका पर सुनाया है। 1997 में हुई हत्या के इस मामले में महोबा की निचली अदालत ने 5 दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी।