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यश भारत इनसाइड स्टोरी:-धान खरीदी में फर्जी उपार्जन केंद्रों का मामला-कमीशन के खेल में स्व सहायता समूहो को बनाया गया मोहरा

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जबलपुर यश भारत। जबलपुर जिले में धान उपार्जन को लेकर एक ओर जहां फर्जी उपार्जन केदो की जांच चल रही है वहीं दूसरी तरफ प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर ही मुख्य सचिव खाद्य के द्वारा जबलपुर जिले में एक भी एनआरएलएम याने स्व सहायता समूह को उपार्जन का काम न देने को लेकर आदेश जारी कर दिया गया है। यश भारत द्वारा एक सप्ताह पहले ही समाचार प्रकाशित किया गया था कि उपार्जन का आधा समय बीत जाने के बाद एनआरएलएम को उपार्जन का कार्य देने का क्या ओचित्य है। आदेश के मुताबिक जो उपार्जन का काम एनआरएलएम को देने की तैयारी थी अब वही काम सहकारी समितियां के माध्यम से किया जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जब जबलपुर जिले की सहकारी व विपणन समितियां इस कार्य को करने में सक्षम थी तो ऐसे में स्व सहायता समूहो को काम देने के लिए अधिकारियों द्वारा सारी अनियमितताओं देखते हुए भी क्यों प्रस्ताव बनाया गया। इसको लेकर यश भारत के पास एक महत्वपूर्ण जानकारी है जिसमें यह पूरा का पूरा खेल कमीसन का है। जहां करोड़ों रुपए की आर्थिक अनियमितताएं सामने आ रही है।

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यह है पूरा अर्थतंत्र

सरकार द्वारा जो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से उपज खरीदी जाती है उसके एवज में जो भी खर्च आता है उसका भुगतान सरकार खरीदी एजेंसी को करती है। इसके अलावा इस काम को करने के लिए एक मोटी कमीशन की राशि का भुगतान भी होता है। जो इस पूरे फसाद की जड़ है, जबकि उपार्जन का काम सहकारी समितियो के माध्यम से होता है तो ऐसे में पूरा पैसा सहकारी समितियां और उन्हें संचालित करने वाली जिला सहकारी बैंक के खाते में जाता है, और यदि यह काम स्व सहायता समूह या फार्मर प्रोड्यूसर कंपनियों के माध्यम से होता है तो यह पूरा पैसा उनके खाते में जाता है। जबकि मध्य प्रदेश में सहकारिता की एक व्यवस्था है उसको लेकर नियम कानून बनाए गए हैं तो वहां आर्थिक गोलमाल कम होता है। लेकिन स्व सहायता समूह में महिलाओं के नाम पर संगठन बना लिया जाता है लेकिन उसका संचालन पर्दे के पीछे से गोदाम संचालक और व्यापारी कर रहे हैं।

ऐसे समझे गणित

उपार्जन कार्य के लिए सरकार द्वारा 16 रुपए प्रासंगिक व्यय में दिया जाता है, जिसमें तुलाई और सिलाई का पैसा शामिल होता है। इसके बाद गोदाम के अंदर खाद्यान्न को व्यवस्थित रखने के लिए 8 रुपए दिए जाते हैं, जिसे स्टैकिंग कहते हैं । जबकि वास्तविकता में यह पूरा खर्च किसानों के द्वारा ही वहन किया जाता है। ऐसे में पूरा पैसा उपार्जन करने वाली संस्था के पास बच जाता है इसके अलावा उक्त संस्था को उपार्जन का कार्य करने के लिए 31रुपए संस्थागत कमीशन भी प्रति क्विंटल के हिसाब से दिया जाता है। ऐसे में यह पूरी राशि 55 रुपए होती है जो प्रति क्विंटल की दर से भुगतान की जाती है। यदि किसी गोदाम में 50 हजार क्विंटल की खरीदी की जाएगी तो उसे 27 लाख 50 हजार की राशि उपार्जन के लिए शासन द्वारा मिलेगी। यह पूरा खेल जो जिले में खेला गया है वह इसी करोड़ों रुपए की राशि को डकारने के लिए खेला गया है । क्योंकि 42 केद्रो का जब कमिश्नर जोड़ा जाता तो वह कई करोड़ होता है।

 

परिवार के सदस्य हैं पदाधिकारी

जिन 42 गोदाम में स्व सहायता समूह के उपार्जन केंद्र स्थापित करने के लिए जिला प्रशासन द्वारा प्रस्ताव भेजा गया था उन 42 स्व सहायता समूहों में से लगभग 20 ऐसे स्व सहायता समूह है जिन में उक्त गोदाम संचालकों के परिवार की महिलाएं प्रमुख पदाधिकारी हैं या फिर उन गोदाम संचालकों के द्वारा ही इन सब स्व सहायता समूह का गठन करवाया गया है और बैक डोर से उन स्व सहायता समूह का संचालन भी वही कर रहे हैं। उनका उद्देश्य खरीदी लेना होता है और उसका कमीशन खाना होता है । महिलाओं के उत्थान और सशक्तिकरण से उनका कोई भी लेना-देना नहीं होता। यदि इन समूह की जांच की जाए तो सारी चीज सामने आ जाएंगी साथ ही साथ पूर्व में जिन समूहों को उपार्जन का कार्य दिया गया था और उन्हें जो कमीशन की राशि दी गई है यदि उनके बैंक स्टेटमेंट निकाले जाएं तो सारा काला चिट्ठा सामने आ जाएगा।

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