देशमध्य प्रदेश

आचार्य विद्यासागर के श्रीमुख से निकला था यह अंतिम शब्द, ऐसे समाधि में लीन हुए महामुनिराज

डोंगरगढ़, एजेंसी। 17 फरवरी रात 2ः35 बजे आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ने डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र में महासमाधि में प्रवेश करने से पहले सिर्फ ऊँ शब्द कहा। सिर हल्का सा झुका और महासमाधि में लीन हो गए। ये बात 20 साल से आखिरी क्षण तक आचार्यश्री के साथ रह रहे बाल ब्रह्मचारी विनय भैया ने बताई। उन्होंने कहा कि हमने कई मुनिश्री और आचार्य श्री की समाधि देखी, लेकिन ऊँ शब्द के साथ जागृत समाधि पहली बार देखी। उन्होंने आखिरी समय में कहा कि उनके गुरु इंतजार कर रहे हैं। उनके पास जाने का समय आ गया है।

विद्या सागर जी महाराज ने पिछले 3 दिन से उपवास और मौन धारण कर लिया था। इससे पहले 6 फरवरी को उन्होंने मुनि योग सागर जी से चर्चा करने के बाद आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा भी कर दी थी।आचार्य विद्या सागर महाराज की पार्थिव देह को रविवार शाम अग्निकुंड में पंच तत्व में विलीन किया गया। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु मौजूद थे।
श्रीफल रखकर किया गया अंतिम संस्कार
आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का अंतिम संस्कार रविवार को श्रीफल रखकर किया गया। दिगंबर जैन पंचायत ट्रस्ट कमेटी के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद जैन हिमांशु ने बताया कि जैन परंपरा में जैन संतों का अंतिम संस्कार श्रीफल और चंदन की लकड़ी से किया जाता है। जैन समाज में श्रीफल और चंदन को शुद्ध माना गया है। इनमें कीड़े नहीं लगते। जैन धर्म में अहिंसा का महत्व है। श्रीफल से अंतिम संस्कार का आध्यात्मिक महत्व है। श्रीफल एक ऐसा फल है, जिसकी शिखा ऊर्ध्वगामी होती है। यही वजह है कि मोक्ष उत्सव में इसका प्रयोग होता है। आचार्य विद्यासागर के पार्थिव शरीर को डोले में अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

Related Articles

Back to top button
WhatsApp Icon Join Youtube Channel