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वीकली आफ नहीं मिलने से पुलिस कर्मी परेशान , बेलबाग थाने के एएसआई की मृत्यु ने वीकली आफ पर उठाए सवाल 

 

जबलपुर यश भारत।

पुलिस की नौकरी लगातार तनाव से भरी हुई रहती है। नकारात्मकता से भरी यह जिंदगी पुलिस कर्मियों के मन में भी नकारात्मकता का बीज बोती जाती है ना परिवार को समय दे पाना और ना खुद की स्वास्थ्य के लिए ध्यान दे पाना यह दोनों चुनौतियां सतत रूप से पुलिस कर्मियों के समक्ष बनी रहती हैं इसी कड़ी में पिछले 5 दिन पूर्व बेलबाग खाने के एक एएसआई दारा सिंह जो की बीपी और हार्ट के पेशेंट थे। ड्यूटी तनाव के चलते अपने परिवार को अलविदा कह गए अर्थात अटैक आने के उपरांत दुनिया को छोड़ गए और अपने पीछे कई सवाल छोड़ गए। ऐसे दारा सिंह हर थाने में मौजूद है जो सप्ताह भर में एक छुट्टी की आस में अपने दिन काट रहे हैं और इस प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हैं। ऐसा ही कुछ हाल थाना प्रभारी का भी है जो की इतने कम स्टाफ में मजबूर हैं कि कैसे इन कर्मियों को छुट्टी दें और कैसे इनसे काम करवाएं।

 

वीकली ऑफ नहीं हुआ सफल 

प्रदेश भर के पुलिस थानों में तैनात पुलिस के जवानों को पिछले कुछ माह से वीकली ऑफ देना चालू कर दिया गया था। सीएम के आदेश के बाद जबलपुर में भी पुलिस थानों में रोस्टर तैयार हुए थे और सप्ताह में एक-एक दिन आरक्षक से लेकर थानेदारों को ऑफ मिल रहा था, लेकिन यह ऑफ कुछ दिनों तक ही सीमित रहा। अब वीआईपी मूवमेंट, लॉ एण्ड आर्डर सहित अन्य कारण बताकर कुछ थानों में पुलिस जवानों को वीकली ऑफ देना बंद कर दिया गया है। वर्दीधारी जवान अनुशासन के कारण कुछ कह नहीं पा रहे हैं, उनकी पीड़ा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी नहीं समझ पा रहे हैं। गौरतलब है कि पुलिस जवानों को जब से सप्ताह में एक दिन की छुट्टी मिल रही थी, तब से वह अपना एक दिन परिवार के साथ बिताया करते थे। बच्चों को समय देते थे, लेकिन धीरे-धीरे वर्दीधारियों को छुट्टी से दूर किया जा रहा है।

 

 

पैरेंट्स मीटिंग भी नहीं कर सके अटैंड 

जब वीकली ऑफ चालू हुआ, तब किसी पुलिसकर्मी ने अपने पूरे परिवार के साथ मूवी देखी तो किसी ने शॉपिंग की। बच्चों को एन्जॉय कराया। तो किसी ने स्कूल में पैरेंट मीटिंग अटैंड की तो किसी ने अपने बीमार परिजनों को स्वास्थ्य लाभ दिलाया था। इस तरह उनकी हर सप्ताह की दिनचर्या बन चुकी थी, लेकिन जैसे ही थानो से ऑफ देना बंद किया गया वैसे ही यह सारे काम पेंडिंग चल पड़े और कहानी फिर आई गई हो गई।

 

 

नए थानेदारों से स्टाफ का नहीं खा रहा मेल 

पिछले दिनों शहर के अधिकांश पुलिस थानों का दायित्व दूसरे जिलों से ट्रांसफर होकर शहर आए थानेदारों को सौंप दिया गया। इसके बाद अब नए थानेदार अपने हिसाब से थाने में ‘फील्डिंग’ जमा रहे हैं, लेकिन उनकी इस कवायद के बीच वर्दीधारियों का हर सप्ताह बनने वाला छुट्टी का रोस्टर खटाई में पड़ गया है। कुछ थानेदार तो ऐसे भी हैं कि जो अपने इलाके में भ्रमण तक नहीं कर रहे हैं, वह सिर्फ थाने में ही दिखाई पड़ते हैं। यहाँ तक कि हर दिन थानेदार को अपने इलाके के संवदेनशील प्वॉइंटों पर गश्त करनी है, लेकिन वे थाने तक सीमित हैं। पूरी जिम्मेदारी बीट प्रभारी और चीता के जवानों पर छोड़ रखी हैं।शहर के थानों में क्या चल रहा है। क्या थाना आने वाले फरियादियों को उचित न्याय मिल पा रहा है। उनकी शिकायत दर्ज हो रही है। शिकायतों पर कार्रवाई हो रही है। इतना ही नहीं थाना में तैनात जवानों को कोई समस्या तो नहीं है। यह सब बड़े साहबों को उस वक्त पता चलता है जब वह थानों का दौरा करते हैं, लेकिन जबलपुर में पिछले कुछ दिनों ये दौरे बंद चल रहे हैं

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