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‘न नमक, न महिलाएं और 41 दिन की कड़ी तपस्या’ — पानीपत में पुरुष कैसे बनते हैं हनुमान

पानीपत (हरियाणा): लाल लंगोटी पहने सात लोग पानीपत के राम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते हैं. सेवक उनके पैरों में घुंघरू बांधते हैं, उनके शरीर पर नारंगी रंग का सिंदूर लगाते हैं, उनकी पीठ पर बांस की ‘पूंछ’ लगाते हैं और उनके धड़ को मोटे सफेद कपड़े से बांधते हैं. अंत में, वे 15-20 किलो के नारंगी रंग के हनुमान मुकुट — विशाल, मुस्कुराते हुए चेहरे — को अपने सिर पर रखते हैं और बस ऐसे ही, वह पानीपत के हनुमान बन जाते हैं.

मान्यता है कि ये साधारण व्यक्ति अब भगवान का स्वरूप बन गए हैं. उनकी मुद्रा अधिक आज्ञाकारी हो गई है, पलक झपकते ही विनम्रता से प्रभुत्व में बदल गई है. वे गर्व से अपने पेट को सहलाते हैं और भक्त उनके पैर छूने के लिए दौड़ पड़ते हैं. ‘देवता’ उनकी पीठ थपथपाते हैं और भक्तों के माथे पर तिलक लगाते हैं. यह वह क्षण है जिसका सभी को इंतज़ार था. प्रांगण में जय श्री राम के नारे और हनुमान चालीसा बजाई जाती है.

पुजारियों, प्रतिभागियों और याचकों के लिए यह कोई ड्रेस-अप परेड नहीं है. हर दशहरे पर, हनुमान स्वरूप का यह प्रकरण पानीपत में होता है, जो साधारण लोगों को भक्ति और अवज्ञा के प्रतीक में बदल देती है. पानीपत की अधिकांश आबादी पंजाबी है, जिसकी परंपरा विभाजन के बाद पहचान की अभिव्यक्ति के रूप में शुरू हुई थी, लेकिन हालांकि, समुदाय अब ‘विस्थापित’ नहीं है, पिछले कुछ वर्षों में, इसमें शामिल होने वाले पुरुषों और लड़कों की संख्या में वृद्धि हुई है. हनुमान सेना की संख्या सैकड़ों में पहुंच गई है यह एक पंरपरा बन गई है.

पानीपत में दशहरा राम द्वारा रावण पर विजय पाने से ज़्यादा हनुमान की वीरता से जुड़ा है.

65-वर्षीय गणपत खुराना, जो आठवीं बार हनुमान स्वरूप धारण कर रहे हैं, ने कहा, “हम पाकिस्तान से आए पंजाबी हैं. यह परंपरा ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू हुई थी, जब अंग्रेज़ों ने हमें दशहरा मनाने की अनुमति नहीं दी थी. उस समय हमारे संतों ने इसे एक चुनौती की तरह लिया. उन्होंने हनुमान की तरह अपने शरीर पर सिंदूर लगाया और राम के प्रति अपने प्रेम को दर्शाया और विरोध किया.”

दहशरे से पहले नौ दिनों तक, पानीपत की सड़कें हनुमानों से भरी रहती हैं, जो सड़कों पर नंगे पैर चलते हैं. यह एक कार्निवल जैसा माहौल होता है — पुरुष और लड़के अपने विशाल मुकुटों में घूमते हैं, नाचते हैं और “राम, राम” का जाप करते हैं.

हर मोहल्ले में एक न एक व्यक्ति हनुमान बनने का आकांक्षी होता है, लेकिन इस बड़े क्षण तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है. यह प्रार्थना, अनुष्ठान और उपवास से भरी एक कठिन तपस्या है.

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