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ब्रिटिश शासन में राष्ट्रवाद की क्रांति का केंद्र बना कुंभ मेला, भारत छोड़ो आंदोलन’ की बढ़ती ताकत के कारण तीर्थयात्रियों पर लगा था प्रतिबंध, कभी अंग्रेजों को एक रुपए का कुंभ टैक्स देकर तीर्थयात्री कुंभ में लगाते थे डुबकी

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19वीं सदी में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रयागराज पर कब्जा किया, तो उन्हें इस शहर के बारे में एक अहम बात का एहसास हुआ—हर 12 साल में आयोजित होने वाला मेला. हालांकि, ब्रिटिशों को कुम्भ के धार्मिक महत्व से कोई खास मतलब नहीं था, वे इसे एक बिजनेस के रूप में देख रहे थे. ब्रिटिशों ने इस मेले में आने वाले हर व्यक्ति से एक रुपये का टैक्स लिया. यह ‘कुम्भ टैक्स’ था, जिसे हर भक्त को मेले में पवित्र संगम में स्नान करने के लिए देना पड़ता था.गौरतलब है कि तब के समय में एक रुपये बहुत बड़ी राशि थी क्योंकि उस समय औसत भारतीयों की मजदूरी दस रुपये से भी कम थी. उदाहरण के तौर पर, एक दर्जी को महज 8 रुपये महीना मिलता था और एक स्वीपर या वेटर को 4 रुपये महीना मिलता था. बावजूद इसके, कुम्भ टैक्स एक रुपया था. यह ब्रिटिशों का एक और तरीका था भारतीयों का शोषण करने का.बता दें कि कुम्भ मेले की बढ़ती वसूली ने स्थानीय समुदायों को नाराज कर दिया था, खासकर प्रयागवाल ब्राह्मणों को. ये लोग श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देते थे और इसके बदले में उन्हें दक्षिणा भी मिलता था, लेकिन कुम्भ टैक्स ने उनके कमाई में कटौती की थी. साथ ही, इस समय कई ईसाई मिशनरी भी प्रयागराज में आकर हिंदू भक्तों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहे थे, जिससे स्थानीय लोग और भी नाराज हो गए .20वीं सदी में भी कुम्भ मेला राष्ट्रवादियों का एक प्रमुख स्थल बना. 1918 में महात्मा गांधी ने कुम्भ मेले में पहुंचे और गंगा में स्नान किया. ब्रिटिश प्रशासन को इससे काफी चिंता हुई और उन्होंने गांधी जी की निगरानी के लिए खुफिया रिपोर्ट्स तैयार कीं. 1942 के कुम्भ मेला के दौरान ब्रिटिशों ने तीर्थयात्रियों पर प्रतिबंध लगा दिया. आधिकारिक रूप से तो ब्रिटिशों का कहना था कि वे जापानी हमले से बचने के लिए यह कदम उठा रहे थे, लेकिन कई इतिहासकार मानते हैं कि यह कदम ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की बढ़ती ताकत के कारण था.
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुम्भ मेला शुरू हो चुका है. इस बार कुम्भ में 60 करोड़ लोग शामिल होने का अनुमान है. जो कही भी लोगों का सबसे बड़ा जमावड़ा होगा. 144 वर्षों बाद पहली बार यह महाकुम्भ हो रहा है. इस बार कुम्भ मेले में हाई-टेक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें अंडरवॉटर ड्रोन, AI कैमरे और यहां तक की कि हवाई निगरानी भी शामिल हैं. हालांकि, दशकों पहले कुम्भ मेला बिल्कुल अलग था. यह मेला ब्रिटिश शासन के समय एक राजस्व स्रोत राष्ट्रवाद का केंद्र और क्रांति का आधार था

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