
भक्त – प्रभु
प्रभु – ज्यादा प्रभु प्रभु न कर। बता विष्णु का अवतार कौन है ?
भक्त – प्रभु आप
प्रभु – और ये चंपत राय कौन है ?
भक्त – मेरे समान आपका भक्त प्रभु
प्रभु – मगर वो तो कहता है कि तुम्हारा प्रधान सेवक विष्णु का अवतार है। तो मैं क्या हूं ?
भक्त – जम्बूद्वीप में हम सब भक्त यही कर रहे हैं। कोई भी कुछ भी कह सकता है। भक्ति अपने चरम पर है प्रभु।
प्रभु – जमीन घोटाले के धंधे में इसने कितना कमाया है ? इसका नाम आया था न उस घोटाले में ?
भक्त – आपसे क्या छुपा है। आपकी कृपा से सभी कमा रहे हैं। करोड़ों में। आप तो अन्तर्यामी हैं सब जानते हैं।
प्रभु – तू यहां क्यों आया है ?
भक्त – आप शिलान्यास में नहीं आए तो कोई बात नहीं प्राण प्रतिष्ठा में तो आ जाइये।
प्रभु – क्यों ? क्या मंदिर पूरा बन गया ?
भक्त – आपका गर्भगृह पूरा बन जाएगा एयरपोर्ट स्टेशन दुकानें होटल वगैरह सभी बन गये हैं।
प्रभु – पहले बता मंदिर पूरा बन गया जहां प्राण प्रतिष्ठा होना है ?
भक्त – भूतल – पहली मंजिल बन जाएगी, दिन रात काम चल रहा है।
प्रभु – जब घर पूरा बनता है तब गृहप्रवेश की पूजा होती है ? या अधूरे अधबने घर की पूजा हो जाती है। अभी रामनवमी आ रही है। जन्म के उत्सव पर प्राण प्रतिष्ठा होती तो अच्छा न होता ?
भक्त – पूरा बनता है तभी होती है प्रभु मगर पूरा मंदिर बनने में बहुत समय लगेगा। रामनवमी आते आते तो बहुत देर हो जाएगी।
प्रभु – तो ?
भक्त – प्रभु स्पष्ट संभाषण के लिये क्षमा करिये। कुल एक – दो माह का समय है। फिर चुनाव है। इसलिए जल्दी है।
प्रभु – किस बात की जल्दी है ? मुझे तो कोई जल्दी नहीं है।
भक्त – अब आपको कैसे समझाऊं प्रभु ? हमें जल्दी चुनाव के कारण है। आपके कारण नहीं। हमें भी मालूम है कि आप भक्तों के हृृदय में वास करते हैं। भव्य मंदिर, स्वर्ण रजत के आभूषण, स्वर्णजड़ित गुम्बद,कलश और द्वार उससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता। पर प्रभु हम भक्तों को भक्ति की भव्यता नहीं चाहिए। हमें मंदिर की भव्यता चाहिए। हम भक्त लोग हैं प्रभु। हम बुद्धि का तिरस्कार करते हैं। कोई बुद्धिमत्ता से बात करता है कोई तर्क करता है तो हम उसका मजाक उड़ाते हैं। हमने सोचने समझने की शक्ति का त्याग कर दिया है। बुद्धिहीनता -मूर्खता एक बहुत बड़ा सुख है प्रभु। उस सुख से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता। यदि कोई हमें बुद्धिमान बनाना चाहता है तो हम उसे मार मार कर भगा देते हैं। हम परमसुखी हैं प्रभु।
प्रभु – बस बस तू मूर्ख होने का अभिनय अच्छा करता है। मगर तू तो बड़ा ज्ञानी है। तू तो उल्टा मुझे ही ज्ञान दे रहा है। प्रभु होने के कारण मैं किसी भी जीव का बुरा नहीं कर सकता। मैं केवल भला कर सकता हूं। किसी को दंड नहीं दे सकता। इसीलिए पापी फलते फूलते हैं। भले लोग भुगतते रहते हैं। मेरे नाम का चमत्कार यही है कि मैं भले लोगों को अत्याचार सहकर भी भला बने रहने की हिम्मत देता हूं। मैं किसी पापी को दंड नहीं देता। उसे दंड मिलता है। जब गरीब अत्याचार सहते सहते किसी दिन उठ खड़ा होता है तो पापी को दंड मिलता है। तब भी श्रेय मुझे मिलता है मैंने पापी का नाश किया। मनुष्य ही पापी होता है और पापी का नाश करने वाला भी मनुष्य होता है। यह जीवन का चक्र है जो सदा चलता रहता है। इसीलिए कोई पापी सदैव पाप करता नहीं रह पाता। और न निरीह निष्पाप व्यक्ति सदैव दुख भोगता रहता है। जब तक मनुष्य अपनी शक्ति पहचान कर इकठ्ठे होकर अन्याय का विरोध नहीं करता तब तक अन्यायी राज करता रहता है।
भक्त – प्रभु आपको चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। हम भक्त लोग हैं न। आप पर कोई आंच नहीं आएगी। हमारे भगवान का कोई बाल बांका भी नहीं कर सकता। धर्मयुद्ध छिड़ जाएगा। बल्कि छिड़ चुका है। ये चुनाव निकल जाएं फिर एक एक को देख लेंगे। हम अपने भगवान का ऐसा भव्य मंदिर बनाएंगे कि पूरी दुनिया में कहीं नहीं होगा। हम अपने भगवान के लिए अपना जीवन अर्पित कर देंगे।
प्रभु – तुम जैसे भक्तों के कारण ही लोगों का ईश्वर से विश्वास उठ जाता है। जिस ईश्वर के भक्त तुम जैसे हों उस ईश्वर की भक्ति कौन करेगा। तुम मेरी क्या रक्षा करोगे ? क्या इतने बड़े हो गए कि ईश्वर की रक्षा तुम करोगे। अब तक तो ईश्वर ही भक्तों की रक्षा करता आया है। और आज ये दिन आ गया है कि जम्बूद्वीप में ईश्वर संकट में है। और भक्त लोग ईश्वर की रक्षा कर रहे हैं।
भक्त – प्रभु बस मार्च अप्रैल में चुनाव निपट जाएं फिर जैसा आप कहेंगे वैसा सब करवा देंगे। अपने पास युगपुरूष हैं। उनको चुनाव जिता दो प्रभु।
डोरीलाल भक्तप्रेमी