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अयोध्या के बाद बद्रीनाथ भी हार गई बीजेपी, पुरोहितों की नाराजगी या फिर विकास प्रोजेक्ट्स पड़ गए भारी?

उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। उसे कई अहम सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। इसमें सबसे करारी हार उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट पर मानी जा रही है। बद्रीनाथ चार धाम में आता है और विभिन्न पौराणिक स्थलों पर विकास कार्य के बावजूद मिल रही हार, भाजपा के लिए चिंता विषय बनती जा रही है। गौरतलब है कि हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा को अयोध्या में हार का सामना करना पड़ा था। भगवान राम की जन्मस्थली पर भाजपा की हार के बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। सिर्फ इतना ही नहीं, अयोध्या से सटे बस्ती के साथ राम वन गमन पथ पर आने वाले प्रयागराज, चित्रकूट, नासिक और रामेश्वरम की सीटें भी उसे गंवानी पड़ी थीं। अब कुछ ऐसा ही हाल बद्रीनाथ में हुआ है। इसके बाद सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा सरकार धार्मिक स्थलों का विकास करने के बावजूद स्थानीय वोटरों को लुभाने में विफल हो रही है?

भाजपा की हार से गहरे हुए सवाल
खासतौर पर बद्रीनाथ में भाजपा की हार के बाद यह सवाल और गहरे हो गए हैं। कुछ महीने पहले ही बद्रीनाथ में पुजारियों और स्थानीय लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। पंडा समुदाय भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल रहा। प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना था कि यहां पर वीआईपी दर्शन की सुविधा से आम दर्शनार्थियों को काफी परेशानी हो रही है। यहां के रहने वाले मांग कर रहे थे कि पहले की तरह मंदिर में प्रवेश की सुविधा दी जाए। इसको लेकर काफी ज्यादा हंगामा मचा था। बताया जा रहा है कि चारधाम को लेकर केंद्र सरकार के मास्टर प्लान से स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि बद्रीनाथ मास्टर प्लान को लेकर स्थानीय स्तर पर कोई स्टडी नहीं की गई है। यह जानने का प्रयास ही नहीं किया गया है कि इन निर्माण कार्यों से किस तरह का नुकसान पहुंचेगा।

बद्रीनाथ में मिली मात
बद्रीनाथ पर कांग्रेस परंपरागत तौर पर जीत हासिल करती आई है। राजेंद्र भंडारी ने 2022 में कांग्रेस के टिकट पर यहां जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पाला बदल लिया और भाजपा की तरफ चले गए। भाजपा ने उन्हें बद्रीनाथ सीट से उम्मीदवार भी बना दिया, लेकिन राजेंद्र भंडारी लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए। दलबदलू की उनकी छवि भारी पड़ गई और कांग्रेस उम्मीदवार लखपत बुटोला को जनता ने जिता दिया। इससे यह भी संदेश स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के वोटरों को अपनी तरफ नहीं खींच पाई। भाजपा को मंगलौर सीट पर भी नुकसान उठाना पड़ा है जहां कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन मात्र 449 वोटों से चुनाव जीत गए हैं। दोनों सीटों पर 10 जुलाई को उपचुनाव हुए थे।

पहले नहीं देखी अलकनंदा में बाढ़
बद्रीनाथ का पूरा अस्तित्व पर टिका है। अब इन शिलाओं को रिवरफ्रंट डेवलमेंट के नाम पर हटाया जा रहा है। इसकी जगह आरसीसी दीवार बन रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह दीवार कभी भी शिलाओं की जगह नहीं ले सकती। भविष्य में नदी का जलस्तर बढ़ा तो फिर यह दीवारें किसी काम की नहीं रहेंगी। वहीं, मॉनसून की पहली बारिश में ही जिस तरह से अलकनंदा नदी में पानी बढ़ा है, उसने भी यहां लोगों को चिंता में डाल दिया है। बद्रीनाथ के स्थानीय निवासियों का दावा है कि अब से पहले कभी भी उन्होंने अलकनंदा नदी में ऐसी बाढ़ नहीं देखी थी। लोगों का कहना है कि इस बाढ़ की वजह यहां पर हो रहा निर्माण कार्य है। पूरा मलबा नदी के तल में डाला जा रहा है, इससे तल ऊपर उठा है और बाढ़ का संकट है।

तीर्थपुरोहितों में भी नाराजगी
ऐसा भी माना जा रहा है कि यहां पर मनमाने ढंग से हो रहे विकास कार्यों को लेकर नाराजगी ने भी भाजपा की मुश्किल बढ़ाई। असल में इसको लेकर तीर्थपुरोहितों में भी नाराजगी है। उनका कहना है यहां हो रहे निर्माण कार्यों के चलते प्रहलाद धारा और नारायण धारा का रूप बदल गया है। स्थानीय लोगों का कहना है पारंपरिक रूप से इन धाराओं से ही रावल जी का पट्टाभिषेक होता है। इसके अलावा लोगों में अपने घरों और जगहों के पर्याप्त मुआवजे को लेकर भी गुस्सा रहा है। अब बद्रीनाथ के नतीजे बताते हैं कि यह सारी बातें चुनाव में भाजपा के खिलाफ चली गई हैं।

केदारनाथ में भी बड़ी परीक्षा
भाजपा की अगली परीक्षा केदारनाथ में हो सकती है। यहां पर विधायक रहीं, भाजपा की शैला रानी का हाल ही में निधन हुआ है। कुछ वक्त बाद यहां पर भी उपचुनाव का ऐलान होगा। अयोध्या, बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थलों पर स्थानीय लोगों की नाराजगी ने भाजपा का जो हाल किया, उसने पार्टी नेतृत्व के माथे पर बल तो ला ही दिया होगा। बता दें कि केदारनाथ में भी लोगों में कम नाराजगी नहीं है। हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिल्ली के बुराड़ी में केदारनाथ धाम के प्रतीकात्मक मंदिर का भूमि पूजन और शिलान्यास किया गया। इसके बाद से उत्तराखंड में संतों के साथ-साथ स्थानीय लोगों में नाराजगी है। केदारघाटी की जनता में भी आक्रोश है। चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों ने कहा कि क्या चारों धामों के दर्शन दिल्ली में करवाए जाएंगे? तीर्थ पुरोहितों ने इसे सनातन धर्म के साथ ही संस्कृति का अपमान बताया।

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