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सत्ता दल के एजेंट की तरह कार्य कर रहे कलेक्टर, पद पर बने रहने का अधिकार नहीं : हाई कोर्ट

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जबलपुर । हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ओपन कोर्ट में बेहद तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि पन्ना के कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा राजनीतिक एजेंट की तरह कार्य कर रहे हैं। लिहाजा, उन्हें पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है। उनके रवैये से ऐसा जाहिर हुआ है कि उन्हें नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत पर भरोसा नहीं है और मनमानी ही उनका आचरण है।

 

हाई कोर्ट ने कलेक्टर पन्ना द्वारा चुनाव याचिका जैसे गंभीर मामले में नियम विरुद्ध तरीके से निर्णय लेने के रवैये पर नाराजगी जताई। इसी के साथ कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न भविष्य में उन्हें चुनाव से जुड़े इस तरह के गंभीर प्रकरणों की सुनवाई से अलग रखा जाए। क्यों न ऐसी अनुशंसा भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को भी प्रेषित की जाए। कलेक्टर इस सिलसिले में व्यक्तिगत रूप से स्पष्टीकरण पेश करें। इसके लिए वे आगामी 17 अगस्त को कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से हाजिर हों। आगामी आदेश तक कलेक्टर द्वारा चुनाव याचिका पर दिए फैसले पर रोक लगाई जाती है।

वरिष्ठ अधिवक्ता शशांक शेखर ने दलील दी कि कलेक्टर का फैसला नैसर्गिक न्याय के सर्वथा खिलाफ है। आरोप लगाया कि कलेक्टर ने स्वतंत्र रूप से काम नहीं करते हुए सत्ताधारी राजनीतिक दल के एजेंट के रूप में कार्य किया है, इसलिए उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारी के पद से हटा दिया जाना चाहिए।

जिला निर्वाचन अधिकारी के पद से हटा दिया जाना चाहिए

 

पन्ना जिले के गुन्नौर जनपद पंचायत से विजयी सदस्य परमानंद शर्मा ने याचिका दायर कर बताया कि 27 जुलाई को उन्हें उपाध्यक्ष पद पर विजयी घोषित किया गया और प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। कुल 25 में से शर्मा को 13 और राम शिरोमणि मिश्रा को 12 वोट मिले थे।

 

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज शर्मा, समदर्शी तिवारी, काजी फखरुद्दीन व कमलनाथ नायक ने कोर्ट को बताया कि 27 जुलाई को ही राम शिरोमणि ने कलेक्टर के समक्ष चुनाव याचिका प्रस्तुत की और याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना उसी दिन निराकरण भी कर दिया। कलेक्टर ने आदेश दिया कि एक वोट विवादित था, इसलिए 28 जुलाई को लाट के माध्यम से पुन: उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव होगा।

 

 

अधिवक्ताओं ने दलील दी कि कलेक्टर का फैसला नैसर्गिक न्याय के सर्वथा खिलाफ है। आरोप लगाया कि कलेक्टर ने स्वतंत्र रूप से काम नहीं करते हुए सत्ताधारी राजनीतिक दल के एजेंट के रूप में कार्य किया है, इसलिए उन्हें जिला निर्वाचन अधिकारी के पद से हटा दिया जाना चाहिए।

 

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि यह मामला गंभीर है, इसलिए कलेक्टर को व्यक्तिगत रूप से पक्षकार बनाया जाए और नोटिस भेजा जाए। कैवियटकर्ता राम शिरोमणि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ व राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ ने पक्ष रखा।

 

 

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