जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

धान चली जाती थी दक्षिण, उत्तर से आ जाता है चावल बिना मिल चलाए हो रही थी मिलिंग ,सरकार ने मांग लिए बिजली के बिल

WhatsApp Icon
Join Yashbharat App

 

जबलपुर यश भारत। शासकीय धान के कस्टम मिलिंग में धान को दूसरे राज्यों में बेचने और दूसरे राज्यों से चावल लाकर जबलपुर में जमा करने की शिकायत है तो लंबे समय से आ रही थी जिसको देखते हुए नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा बड़ा निर्णय लिया है जिसके चलते इस पूरे खेल में हुए गोलमाल के सामने आने की बात कही जा रही है । यश भारत को मिली जानकारी के अनुसार नागरिक आपूर्ति निगम इस बात का पता लगाना चाह रही है कि एक मेट्रिक टन धान की मिलन होने में कितनी बिजली लगती है जिसके आधार पर वह उक्त मिलर द्वारा की मात्रा और बिजली की खपत की गणना करके इस बात का पता लगा सकती है कि उक्त मिलर द्वारा वास्तव में मिलन की गई है या चावल बाहर से खरीद कर सरकार को दे दिया गया है।
ऐसे होगी जांच
जानकारी के अनुसार नागरिक आपूर्ति निगम के एमडी तरुण पिथोड़े द्वारा पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के एम डी अनय द्विवेदी को एक पत्र लिखा था जिसमें उनके द्वारा राइस मिल मिल में जाकर उनकी कैपेसिटी के अनुसार 1 घंटे में जो मिलिंग होती है उस द्वारा कितनी विद्युत लगती है इसकी गणना करने के लिए कहा गया है जिसको लेकर विद्युत विभाग द्वारा कार्यवाही भी शुरू कर दी गई है और जिले की कुछ राइस मिल पड़ताल भी शुरू हो गई है उक्त जांच होने के बाद राइस मिल संचालकों से 1 से 3 साल तक के बिजली के बिल भी मांगे जा रहे हैं और फिर उसका मिलान उक्त वर्षों में मिलर द्वारा जो चावल जमा किया गया है उससे किया जाएगा।
यहाँ से आता है चावल
इस पूरे मामले में प्रदेश शासन के पास इस बात की जानकारी लंबे समय से पहुंच रही थी कि दूसरे राज्यों से आने वाला चावल शासकीय गोदामों में मिलर के द्वारा जमा किया जा रहा है जिसमें सबसे बड़ी मात्रा उत्तर भारत के राज्यों की है जहां से सस्ती दर में चावल खरीद कर मिलर द्वारा जमा किया जाता है क्योंकि चावल मध्यप्रदेश में टैक्स फ्री गुड्स है जिस कारण इसकी ज्यादा जांच-पड़ताल नहीं होती और मंडी से कागज आसानी से बन जाते हैं जिसके चलते यह पूरा खेल संचालित होता है दूसरे राज्यों से आने वाली चावल के अलावा एक बहुत बड़ी मात्रा पीडीएस के चावल की भी है जो राशन दुकानों से राइस मिलर तक पहुंचा दिया जाता है और राइस मिलर फिर उसे सरकारी गोदाम में जमा कर देता है।

यहाँ चली जाती है धान
जिस तरीके से चावल उत्तर भारत और राशन दुकानों से आता है। उसी तरह सरकारी गोदामों से मिल तक जाने वाली धान को दक्षिण भारत के राज्यों में सप्लाई कर दी जाती है क्योंकि जबलपुर में क्रांति और आई आर धान अधिक मात्रा में होती है। जिस की डिमांड दक्षिण भारत के राज्यों में अधिक है जिसके चलते उसे सीधे हैदराबाद बेंगलुरु आदि की मंडियों में भेज दिया जाता है। इस पूरे मामले में पहले जहां गोदाम से ट्रक लोड होकर सीधे दूसरे राज्य में चले जाते थे लेकिन प्रशासन की सख्ती के चलते अब राइस मिलर पहले धान को मिल ले जाते हैं फिर सरकारी बोरे को बदलते हैं और फिर बाहर भेज देते हैं। चावल के साथ-साथ धान भी टैक्स फ्री गुड होने के चलते इस काम में मिलर को आसानी होती है।

फैक्ट फाइल

किस साल हुई कितनी मिलिंग

2019-20 215000 मेट्रिक टन
2020-21 250000 मेट्रिक टन
2021-22 360000 मेट्रिक टन (अभी तक)

इनका कहना
मुख्यालय द्वारा पूर्व क्षेत्र वितरण कंपनी के एमडी सर को पत्र भेजा गया है। जिसमें राइस मिल की प्रति घंटे कैपेसिटी के हिसाब से विद्युत खपत चेक करी जा रही है। जिसकी जानकारी मुख्यालय भेजी जाएगी और उसके बाद मुख्यालय से आगे की कार्यवाही होगी।

एल एल आहिरवार
रीजनल मैनेजर नागरिक आपूर्ति निगम

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button