जबलपुर के इस गांव में बिहार से पहले शराब बंदी शराब पीते पकड़े गए तो 10 हजार लगता है जुर्माना

जबलपुर यश भारत। मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक ऐसा भी आदिवासी गांव है जहां बिहार से पहले शराबबंदी लागू है। इस गांव के लोगों ने ऐसी मिसाल पेश की गांव में कोई भी शराब पीकर या लेकर नहीं आता।
कहते है शराब सामाजिक बुराई है जिसे मिलजुलकर ही खत्म किया जा सकता है। यह स्लोगन अक्सर आपने सुना होगा लेकिन इसका पालन कोई नहीं करता। हर समाज वर्ग के लोग नशे के इस सस्ते और सुलभ साधन से परेशान हैं। फिर भी इससे छुटकारा नहीं पा सकते लेकिन हम आपको बताने जा रहा है। एक ऐसे गांव कहानी जो जबलपुर का एक आदिवासी बाहुल्य गांव इस मामले में अलहदा साबित हो रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गांव में रहने वाले लोगों ने बीते 12 वर्षों से शराब को नजदीक से देखा तक नहीं है। दरअसल 12 वर्ष पूर्व गांव के लोगों ने शराबबंदी का संकल्प लिया और तब से आजतक इस गांव में न तो शराब खरीदी गई, न बेची गई और न ही किसी ने इसे हाथ लगाया, यदि कोई शख्स बाहर से शराब लेकर जाए या पीकर जाए तो समझो उसकी खैर नहीं क्योंकि ग्राम पंचायत द्वारा शराब के उपयोग पर सीधे 10 हजार रूपए का जुर्माना लगाया गया है। यह सब बकायदा प्रस्ताव पारित कर किया गया था यानि इस गांव में अपनी ही एक सरकार चलती है जो लोगों की जिंदगी को शराब जैसी बुराई से बचाकर रखे हुए है। आइए आपको भी मिलवाते हैं। जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर इस गांव से और बताते हैं शराब बंदी की अनोखी कहानी।

बरगी विधानसभा के आदिवासी बाहुल्य ग्राम पंचायत देवरी नवीन के पंचों एवं महिलाओं ने शराब बंदी को लेकर आपसी सौहार्द्र से 12 वर्ष पूर्व एक ऐतिहासिक फैसला लिया था। ग्राम पंचायत द्वारा नशामुक्ति के लिए एक समिति का गठन करते हुए ग्राम पंचायत में शराब बंदी करने का निर्णय लिया गया और इस मामले को लेकर एक संकल्प पारित करते हुए गांव में बैठक कर इसको पूरा किया गया। शराब हर विवाद की जड़ है, शराब से अच्छे-अच्छे घर बर्बाद हुए तो कई परिवार बिखर गए। यह नौबत कभी गांव में न आए इसलिए गांव की पंचायत ने शराब बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने के साथ पीने वाले व्यक्ति पर 10 हजार जुर्माना और गाली-गलौज करने वाले पर 5 हजार जुर्माना लगाने का निर्णय लिया और हैरानी की बात यह है कि खेती और मजदूरी करने वाले आदिवासी परिवारों ने इतनी बड़ी रकम का जुर्माना लगाना स्वीकार भी किया। इसके बाद क्या है जहां चाह है वहां राह है के सिद्धांत पर चलते हुए ग्रामीण आदिवाससी बीते 12 सालों से इस नियम को परंपरा मानकर रहते चले आ रहे हैं।
गांव के मुखिया जय सिंह बरकड़े बताते है कि ग्राम पंचायत देवरी नवीन के साथ तिन्हेटा और बाड़ीबारा गांव में शराब पीने वाले व्यक्ति पर जुर्माने लगाने का नियम है। यह सब वहां की महिलाओं के संकल्प से हुआ है। महिलाएं आगे आकर खुद शराब पीने वाले व्यक्ति का नाम बताती है। इसके साथ ही शराब पीने वाले व्यक्ति से जुर्माने के रूप में जो राशि मिलती है वह गांव के विकास, गरीब बच्चों की शादी और शिक्षा जैसे कार्यों पर खर्च की जाती है।
गांव की महिला पंच झूना बाई मरकाम बताती है की एक दौर था जब ग्राम पंचायत के हर मोहल्ले में जगह-जगह अनाधिकृत रूप से शराब बनाई जा रही थी और खुलेआम उसकी बिक्री होती थी। शराब के कारण ग्राम पंचायत के युवा और बुजुर्ग शराब के आदी हो रहे थे और चारों ओर अशांति फैल रही थी। शराब की बिक्री के कारण गांव में जनमानस और महिलाओं तथा छोटे बच्चों पर विपरीत असर पड़ रहा था। शराब बंदी का निर्णय लेने के बाद शुरूआती सालों में शराबियों को काफी परेशानी भी हुई क्योंकि शराब बेचने और पीने वाले को सबसे पहले समिति के सामने पेश किया जाता था फिर समिति के सदस्य पूरी जानकारी के साथ ग्राम पंचायत में मामले को लाते थे। जहां ग्राम पंचायत द्वारा शराब पीने वालों ओर बेचने वाले दोनों पर जुर्माना लगा देते थे। लेकिन विगत पांच वर्षों से गांव में शराब पीने, बेचने का एक भी मामला सामने नहीं आया और पूरा गांव अब शराब मुक्त हो चुका है।
गांव की पंचायत ने कई नजीर किए पेश :
गांव की सरपंच रामकुमार सैयांम बताते हैं कि गांव के एक युवक द्वारा रोज शराब पीकर अपने घर आते थे। इस बात से परेशान होकर उनकी पत्नी ने ही इसकी शिकायत गांव की पंचायत से की। जिसके बाद गांव की पंचायत ने अपना फैसला सुनाया और युवक पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। ऐसा ही एक मामला और गांव की पंचायत में आया जहां गांव के कुछ लोगों ने शिकायत की गांव एक युवा आए दिन बाहर से शराब लाकर गांव में बेच रहा हैं। फिर क्या गांव के पंचायत ने फैसला सुनाते हुए इन पर भी 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। जिसके बाद पंचायत ने इस जुर्माने की रकम का सदुपयोग पंचायत में होने वाले शुभ कार्यों के लिए बर्तन खरीदे गए। रामकुमार बताते हैं कि ऐसे दर्जनों नजीर सामने आए। जिन्हें जुर्माना लगाकर हिदायत दी गई। जिसका नतीजा यह निकला की दो-तीन सालों से शराबखोरी का एक भी मामला सामने नहीं आया।
शराबबंदी के लिए पूर्व में कलेक्टर, कमिश्नर और मुख्यमंत्री तक इसकी सराहना कर चुके हैं। लेकिन आदिवासी बाहुल्य होने के कारण इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया गया यही वजह है कि मिसाल बनने के बाद भी दूसरे गांव इससे सीख नहीं ले पा रहे हैं। बहरहाल गांव के लोग इस बात से खुश हैं कि उनके गांव में शराब बंद है और उनकी मेहनत की कमाई फिजूल खर्च में बर्बाद नहीं होती।