
नई दिल्ली, यशभारत। राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने हाल ही में कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर एक संवेदनशील लेकिन जरूरी सवाल उठाया है कि कश्मीरी पंडितों के साथ आखिरी बार गंभीर संवाद कब हुआ? तन्खा का यह बयान उन तमाम दावों और वादों के बीच आया है जहाँ सरकारें बार-बार कश्मीरी पंडितों की घर वापसी और पुनर्वास की बात करती रही हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत अब भी कड़वी बनी हुई है। संवाद एजेंसी पीटीआई से चर्चा में उन्होंने कहा कि विश्व मंच को आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्यवाही से परिचित कराने और उनका समर्थन पाने के लिए के लिए सात सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल भेजे जा रहे हैं। लेकिन उनमें एक भी कश्मीरी पंडित शामिल नहीं है। प्रश्न किया कि क्या वे विलुप्त हो गए हैं अथवा उनका कोई महत्व नहीं है। ऐसा लगता है कि जब कोई फिल्म बनती है या जब चुनाव आते हैं तब उनको याद किया जाता है।
विवेक तन्खा ने कहा कि यह एक अच्छा विचार है कि दुनिया के लिए उम्मीद बनाई जाए, लेकिन क्या हमने उन लोगों से बात की है जो तीन दशकों से अपने ही देश में शरणार्थी जैसे हालात में जी रहे हैं? कश्मीरी पंडितों के साथ आखऱिी बार संवाद कब शुरू हुआ? क्या वे जानते हैं कि हम उनके लिए क्या प्रयास कर रहे हैं?
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक मंचों पर इंसाफ़ और अधिकारों की बातें तभी सार्थक होंगी जब हम अपने ही देश के पीड़ितों को न्याय दिला सकें। यह सिर्फ पॉलिटिकल कंपोजिशन का सवाल नहीं है, बल्कि नैतिक जि़िम्मेदारी का भी है।
राजनीतिक दलों पर निशाना
श्री तन्खा ने अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दलों पर भी सवाल उठाए कि वे कश्मीरी पंडितों की त्रासदी को भावनात्मक मुद्दा बनाकर भुनाते हैं, लेकिन जब बात ठोस योजनाओं और क्रियान्वयन की आती है तो सब कुछ धीमा पड़ जाता है। उन्होंने कहा, च्च्आँखें बंद कर लेने से सच्चाई नही
कश्मीरी पंडित पुनर्वास विधेयक का संदर्भ
गौरतलब है कि विवेक तन्खा 2022 में राज्यसभा में कश्मीरी पंडित पुनर्वास विधेयक भी पेश कर चुके हैं, जिसमें कश्मीरी पंडितों के लिए संवैधानिक सुरक्षा और पुनर्स्थापन की बात की गई थी। लेकिन उस विधेयक पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।