अहंकार की टकराहट से उपजा सिया विवाद का अगला दृश्य १ अक्टूबर को दिल्ली में
प्रशासनिक तहखाने में वर्षा पुरानी चर्चा गर्म डायरेक्ट बनाम प्रमोटी आईएएस

अहंकार की टकराहट से उपजा सिया विवाद का अगला दृश्य १ अक्टूबर को दिल्ली में
प्रशासनिक तहखाने में वर्षा पुरानी चर्चा गर्म डायरेक्ट बनाम प्रमोटी आईएएस
राजधानी भोपाल के प्रशासनिक गलियारों से उठी चिंगारी अब सत्ता के गलियारों को पार कर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुँची है। पर्यावरणीय स्वीकृतियों (सिया विवाद) से जुड़ा यह मामला सतही तौर पर फाइलों और मंजूरियों का है, लेकिन इसकी गहराई में झांकें तो जड़ कहीं और दिखाई देती है—डायरेक्ट आईएएसऔर प्रमोटी आईएएस के बीच वर्षों पुराना मनभेद।
दरअसल, नौकरशाही में यह अनकहा किंतु हमेशा महसूस किया जाने वाला मतभेद रहा है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से सीधे चयनित अधिकारी खुद को ‘एलिट क्लासÓ मानते हैं, जबकि राज्य लोक सेवा आयोग (एसपीएससी) से पदोन्नति पाकर आईएएस बनने वाले अफसर अपने संघर्ष और अनुभव को बड़ी पूंजी मानते हैं। यही अहंकार की खींचतान धीरे-धीरे प्रशासनिक राजनीति का स्थायी हिस्सा बन चुकी है।
भोपाल में बैठे बड़े अधिकारियों के बीच यह खाई तब और गहरी हो गई जब एक वरिष्ठ अधिकारी, जिनके साथ पुराने मनमुटाव की कड़वाहट जुड़ी थी, पुन: राजधानी में तैनात हुए। पुराने गिले-शिकवे और अहंकार का टकराव नई परिस्थितियों में फिर सिर उठाने लगा। परिणामस्वरूप, सचिवालय में फाइलों के निपटारे का काम जटिल होता गया, फैसले टलते गए और अंतत: पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुँच गया।
सूत्र बताते हैं कि यह विवाद वास्तविक पर्यावरणीय मुद्दों से कहीं ज्यादा अधिकारियों के आपसी ‘ईगो क्लैशÓ का परिणाम है। सचिवालय में यह धारणा रही कि डायरेक्ट आईएएस चाहते थे कि उनकी सिफारिश पर फाइलों को आसानी से मंजूरी मिल जाए, लेकिन जब प्रक्रिया कठोर हुई और प्रमोटी अधिकारियों ने नियम-कायदे पर जोर दिया तो मनभेद खुलकर सतह पर आ गए। आज स्थिति यह है कि भोपाल का यह प्रशासनिक विवाद केवल फाइलों का अड़ंगा नहीं रहा, बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष पहुंचकर नौकरशाही के भीतर पनपते ‘डायरेक्ट बनाम प्रमोटीÓ की खाई को उजागर कर चुका है। साफ है कि सिया विवाद के पीछे छिपी असल कहानी अहंकार और पुराने मनभेद की है, जिसने प्रशासनिक तंत्र को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है।
पर्यावरण मंत्रालय ने गठित की तथ्य अन्वेषण समिति
मध्यप्रदेश राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा जारी पर्यावरणीय स्वीकृतियों की वैधता को लेकर उठे सवाल अब सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँच गए हैं। इस संदर्भ में दायर रिट याचिका में विजय कुमार दास बनाम भारत संघ एवं अन्य की सुनवाई के दौरान गंभीर अनियमितताओं के आरोपों को देखते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक उच्चस्तरीय तथ्य अन्वेषण समिति का गठन किया है। मंत्रालय द्वारा जारी कार्यालय आदेश में उल्लेख है कि सिया मध्यप्रदेश के अध्यक्ष से प्राप्त पत्रों में कार्यप्रणाली में गड़बडिय़ों और अनियमितताओं की जानकारी दी गई थी। इन्हीं शिकायतों और न्यायालय में लंबित प्रकरण की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए समिति बनाई गई है, जो मामले की विस्तृत जांच कर अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को प्रस्तुत करेगी। समिति की अध्यक्षता अतिरिक्त सचिव डॉ. अमनदीप गर्ग करेंगे। इस सिलसिले में पहली बैठक 01 अक्टूबर, 2025 को नर्मदा हॉल, इंदिरा पर्यावरण भवन, नई दिल्ली में आयोजित होगी। बैठक में शिकायतकर्ता और प्रतिवादी के रूप में कई प्रमुख अधिकारी शामिल होंगे। इनमें शिव नारायण सिंह चौहान (अध्यक्ष, सिया मध्यप्रदेश), डॉ. सुनंदा सिंह रघुवंशी (सदस्य, सिया), आर. उमा महेश्वरी (पूर्व सदस्य सचिव, सिया) और डॉ. नवनीत मोहन कोठारी (पूर्व अपर मुख्य सचिव, पर्यावरण विभाग, मध्यप्रदेश) अथवा उनके प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे। मंत्रालय का मानना है कि समिति की जांच रिपोर्ट आगे की कार्रवाई और सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे प्रकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।







