संडे स्पेशल …1887 में सबसे पहले आई थी रैले सायकिल, चार लाख तक है कीमत, अब शौकिया व बच्चों के लिए खरीदी जाती है

किशोर गौतम
जबलपुर यशभारत। एक समय था जब लोग कई किलोमीटर साइकिल चलाकर अपनी नौकरी एवं धंधे के लिए जाते थे। वह दौर भी काफी सुखद हुआ करता था। एक दूसरे के बाजू से साइकिल चलाकर बातचीत करते हुए किसी चौराहे पर ट्रिन ट्रिन घंटी बजाते हुए अपने-अपने मुकाम को निकल जाया करते थे। किंतु शनै: शनै: यह दौर खत्म होता जा रहा है अब तो साइकिल अपने शौकिया हिसाब से यह बच्चों की जिद रखने के लिए खरीदी जाती है। इस संबंध साइकिल के विक्रेता ने बताया कि ब्रांडेड साइकिलों की कीमत चार लाख तक है। जबकि लोकल साइकिलों की कीमत तीन हजार 3200 रुपए से शुरू है। लेकिन आज के दौर में ब्रांडेड साइकिल की मांग बढ़ रही है। हालांकि इस साइकिल मैं अकेला व्यक्ति चल सकता है जबकि पूर्व की साइकिलों में तीन लोग तक सवार हो जाते थे। साइकिल विक्रेता कमल सुहाने ने बताया कि आज से 10 साल पहले 40 साइकिल प्रतिदिन बिका करते थे लेकिन आज की स्थिति में 8 से 10 साइकिल ही बिक रही हैं। उन्होंने यही बताया कि खुद को स्वस्थ रखने के लिए साइकिल चलाना बहुत जरूरी है। हालांकि इस बिजी लाइफस्टाइल में लोगों द्वारा साइकिल चलाना बहुत कम हो चुका है। वहीं सेहतमंद रहने के लिए साइकिल चलाना बेहतरीन जरिया है।
सबसे पुरानी है रैले सायकिल
साइकिलों मैं सबसे पुरानी साइकिल रैले कंपनी की है। जो 1887 में मार्केट में आई थी। इसके बाद अन्य साइकिलों बाजार में आयी थीं। उस दौर में इसकी बहुत ज्यादा मांग हुआ करती थी धीरे-धीरे बाजार में अब आपने हीरो हरक्यूलिस फायरफॉक्स एवं सनक्रॉस जैसी आधुनिक साइकिल मार्केट में आई।
महानगरों में है चार लाख तक की साइकिल
इस संबंध में साइकिल विक्रेता कमल सुहाने ने बताया कि चार लाख तक की साइकिल पुणे बेंगलुरु मुंबई आदि महानगरों में देखने को मिलती है। जिसका बजन 8 से 10 किलो का होता है।किंतु जबलपुर में एक लाख कीमत की दो साइकिल हैं। इसके साथ ही फायरफॉक्स साइकिल की कीमत 70 से 80 हजार रुपए तक की शहर में मिलती है।
तीन चरणों में सीखी जाती है साइकिल
एक दौर वह भी था जब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से सीट से चलाना मुनासिब नहीं होता था।साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे।और इसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और “ट्रिन ट्रिन” करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ हमें देख सकें की लड़का साईकिल दौड़ा रहा है। इस दौर में अनेक बार घुटने और मुंह छिलवाए है।और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नही होता था गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे। और गिरने से चोट आने पर महीन मिट्टी लपेट लिया करते थे। किंतु अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल मार्केट में आ गयी है।इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी। उस समय साइकिल इन तीन चरणों में चलाई जाती थी। जिसमें पहला चरण कैंची -दूसरा चरण- डंडा
और तीसरा चरण सीट पर बैठकर साइकिल चलाना सीखा करते थे।
साइकलिंग चलाने से मजबूत होती हैं मांसपेशियां: डॉक्टर संजय भारती
इस संबंध में मेडिकल कॉलेज जबलपुर के डॉक्टर संजय भारती श्वसन रोग विशेषज्ञ ने बताया कि सुबह शाम किसी भी समय आप साइकिल चला सकते हैं। इससे जहां फेफड़े अच्छे रहते हैं वहीं हृदय के लिए भी लाभदायक है। एवं शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। साथ ही चिंता और तनाव कम करने में मदद मिलती है।नियमित साइकिलिंग करने वालों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम अन्य लोगों की तुलना में कम होता है और यह दिमाग की शक्ति बढ़ाने और उसे स्वस्थ रखने में भी सहायक है। उन्होंने यह भी बताया कि साइकिलिंग व्यायाम तनाव को कम करने में भी आपके लिए मददगार होती है।