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गलतबयानी की तुलना हेट स्पीच से नहीं… सुप्रीम कोर्ट की दो टूक

नई दिल्ली, ईएमएस। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक नेताओं को उत्तेजक भाषण देने से रोकने के लिए गाइडलाइंस जारी करने की गुहार वाली अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि गलतबयानी या झूठे दावे के मामले से हेट स्पीच की तुलना नहीं की जा सकती है। इनमें अंतर है। अदालत ने याची से कहा कि आपने यह नहीं समझा कि हेट स्पीच क्या है। आप मुद्दे से अलग हो गए हैं। अर्जी में हेट स्पीच के अपराध को गलत तरीके से पेश किया गया है। अगर कोई शिकायत है, तो आप कानून के अनुसार इस मामले को उठा सकते हैं।
च्नफरत फैलाने वाले भाषणों और गलतबयानी में अंतरज्
सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों और गलतबयानी के बीच अंतर होता है। इसके साथ ही इसने जनहित याचिका दायर करने वाली च्हिंदू सेना समितिज् के वकील से कहा कि शीर्ष अदालत इस मामले में नोटिस जारी करने को लेकर इच्छुक नहीं है।
पीठ ने कहा कि हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वर्तमान रिट याचिका पर विचार करने को लेकर इच्छुक नहीं हैं, जो वास्तव में ‘कथित बयानोंÓ को संदर्भित करता है। इसके अलावा, भड़काऊ भाषण और गलतबयानी के बीच अंतर है। अगर याचिकाकर्ता को कोई शिकायत है, तो वे कानून के अनुसार इस मामले को उठा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर क्या कहा
पीठ ने ये भी कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं कर रही है। जनहित याचिका में कोर्ट से भड़काऊ भाषणों को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने, सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालने वाले बयान देने वाले व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई अनिवार्य करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता कुंवर आदित्य सिंह और स्वतंत्र राय ने कहा कि नेताओं की टिप्पणियां अक्सर उकसावे वाली होती हैं, जिससे संभावित रूप से सार्वजनिक अशांति फैल सकती है।
दवा के सभी जोखिम बताना, प्रैक्टिकल नहीं: कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें डॉक्टरों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वे मरीजों को लिखी गई दवा से जुड़े सभी प्रकार के संभावित जोखिमों और दुष्प्रभावों की जानकारी दें। दिल्ली हाई कोर्ट ने यह अर्जी खारिज कर दी थी तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
कोर्ट ने कहा, च्यह व्यावहारिक नहीं है। अगर इसका पालन किया गया तो एक डॉक्टर 10-15 से ज्यादा मरीजों का इलाज नहीं कर सकेगा और कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मामले दर्ज हो सकते हैं।ज् याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि इससे मेडिकल लापरवाही के मामलों से बचने में मदद मिलेगी। बेंच ने कहा कि डॉक्टर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से नाखुश हैं जिसमें मेडिकल पेशे को कंस्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में लाया गया है।

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