
जबलपुर के जुड़वां वैज्ञानिक भाइयों का कमाल: लगातार पाँचवें साल दुनिया के टॉप 2% वैज्ञानिकों की सूची में शामिल
जबलपुर के प्रोफेसर अनिल और सुनील वाजपेयी ने पॉलीमर विज्ञान और कैंसर उपचार शोध से बढ़ाया देश का मान
जबलपुर, मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि यहाँ के जुड़वां भाई, प्रोफेसर अनिल कुमार वाजपेयी और प्रोफेसर सुनील कुमार वाजपेयी, को लगातार पाँचवें साल अमरीका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा जारी की गई दुनिया के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठित सूची में जगह मिली है।
ये दोनों प्रोफेसर भाई अपनी विशेषज्ञता पॉलिमर विज्ञान (Polymer Science) के क्षेत्र में किए गए उत्कृष्ट शोध कार्य और अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित उनके प्रभावशाली कंटेंट के लिए जाने जाते हैं। प्रो. अनिल कुमार वाजपेयी के 300 और प्रो. सुनील कुमार वाजपेयी के 200 से अधिक शोध पत्र पॉलीमर विज्ञान से जुड़े विषयों पर अंतर्राष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं।

कैंसर उपचार में महत्वपूर्ण खोज
प्रोफेसर वाजपेयी भाइयों ने लोडेड नैनो पार्टिकल प्रोटीन पर एक महत्वपूर्ण शोध किया है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर कैंसर के इलाज में दी जाने वाली कीमोथैरेपी या अन्य उपचार कैंसर सेल्स के साथ-साथ शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं (good cells) को भी नष्ट कर देते हैं।
इसके विपरीत, उनके लैब स्टडी में यह पाया गया है कि प्रोटीन नैनो पार्टिकल ड्रग का उपयोग करने पर वह शरीर में सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को ही नष्ट करेगा, जिससे उपचार अधिक लक्षित और प्रभावी हो सकेगा, और स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान कम होगा। यह खोज चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
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पॉलीमर विज्ञान में दशकों का योगदान
प्रोफेसर अनिल और सुनील वाजपेयी ने 2023 में जबलपुर के साइंस कॉलेज से सेवानिवृत्त होने के बावजूद, आज भी कॉलेज लैब में रिसर्च स्कॉलर के तौर पर अपना काम जारी रखा है।
पॉलिमर विज्ञान का क्षेत्र प्लास्टिक और रबर के गुणों और विभिन्न अनुप्रयोगों पर केंद्रित है, जो रसायन विज्ञान, भौतिकी और इंजीनियरिंग को आपस में जोड़ता है। इस विज्ञान का अनुसंधान चिकित्सा, आधुनिक पैकेजिंग, ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी और पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लगातार प्रभावित करता है।

दोनों भाइयों का कहना है कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि अमरीका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ने उनके योगदान को लगातार मान्यता दी है, जिससे उन्हें और अधिक शोध करने की प्रेरणा मिलती है।







