माता महाकाली के प्रति अगाध आस्था, यहां 2038 तक की बुकिंग
जबलपुर. दुर्गा उत्सव पर संस्कारधानी में स्थापित होने वाली प्रतिमाओं में माता महाकाली के प्रति अगाध आस्था नजर आती है। शहर में स्थापित की जाने वाली देवी प्रतिमाओं में एक चौथाई माता महाकाली की होती हैं। आस्था का आलम यह है कि रांझी में मन्नत वाली महाकाली की प्रतिमा स्थापित करने का खर्च वहन करने के लिए वर्ष 2038 और गढ़ाफाटक वाली जबलपुर की महामाई के लिए वर्ष 2030 तक बुकिंग हो चुकी है।
यहां भी होती है स्थापना
दीक्षितपुरा और पड़ाव क्षेत्र में स्थापित अधिकांश प्रतिमाएं माता महाकाली की होती हैं। सदर, गोरखपुर, गढ़ा, अधारताल में भी बढ़ी संख्या में महाकाली की प्रतिमाएं स्थापित होती है। विसर्जन के लिए जुलूस निकलता है।
25 वर्षों से स्थापना
रांझी की मन्नत वाली महाकाली समिति के दिलीप सिंह सग्गू ने बताया कि क्षेत्र में 25 वर्षों से माता की विशालकाय प्रतिमा स्थापित की जा रही है। प्रतिमा स्थापना के लिए 2038 तक बुकिंग हो चुकी है। वर्ष 2056 तक प्रतिमा स्थापना के लिए वेटिंग चल रही है। मां को प्रतिवर्ष स्वर्ण आभूषण और चांदी के आभूषण चढ़ाए जाते हैं, जिन्हें नवमी के भंडारे के बाद गरीब बच्चियों को दे दिया जाता है।
विसर्जन जुलूस में उमड़ता है जनसैलाब
महाकाली की सभी प्रतिमाओं के विसर्जन जुलूस में गौरीघाट तक जनसैलाब उमड़ता है। श्रद्धालु जुलूस मार्ग की सफाई और धुलाई करते हैं। लाखों की तादाद में नारियल फूटते है।
15 साल बाद पुत्र होने पर स्थापित की प्रतिमा
इस का सिलसिला 1997 में शुरू हुआ था जब बच्चों ने मिलकर मां महाकाली की प्रतिमा बनाई थी। एक महिला की मन्नत पूरी होने पर उन्होंने प्रतिमा स्थापित कराई। इस साल पुणे में कार्यरत कमलजीत कौर प्रतिमा की स्थापना का खर्च वहन कर रही हैं। कमलजीत ने बताया कि माता के आशीर्वाद से उन्हें 15 वर्ष बाद पुत्र हुआ।
जबलपुर की महामाई 2030 तक कतार
जबलपुर की महामाई के नाम से प्रसिद्ध गढ़ाफाटक, जबलपुर कालीधाम की महाकाली 122 वर्ष का इतिहास समेटे है। महामाई बड़ी महाकाली न केवल जबलपुर बल्कि आसपास के जिलों, कई प्रदेशों और विदेशों में भी आस्था का प्रतीक हैं। कोई मनोकामना पूरी होने पर नौ दिन माता की अखंड ज्योत जलवाता है तो कोई प्रतिमा की न्यौछावर के लिए अपनी बुकिंग करा लेता है। समिति के सदस्यों ने बताया कि वर्ष 2030 तक के लिए प्रतिमा की न्यौछावर बुक हो चुकी है। वर्ष 1899 में रामनाथ यादव, हुब्बीलाल राठौर, बाबूलाल गुप्ता, सुदामा गुरु, ओंकार प्रसाद साहू, चंद्रभान यादव, मुन्नीलाल मेवादी, श्यामलाल दारोगा, रामसेवक यादव और रामनारायण केसरी ने इसकी शुरुआत की थी। सबसे पहली प्रतिमा चरहाई में रखी गई। इसके बाद एक साल प्रतिमा रामनाथ यादव के निवास स्थान पर रखी गई। इसके बाद उनके घर के ही सामने माताजी का स्थान निर्धारित हो गया।