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पितरों का पुनर्जन्म होने के बाद किया गया तर्पण और श्राद्ध उन तक कैसे पहुंचता है?

पितरों का पुनर्जन्म होने के बाद किया गया तर्पण और श्राद्ध उन तक कैसे पहुंचता है?
प्रेमानंद महाराज ने यूं दूर किया संशय

यशभारत: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर अमावस्या तिथि तक पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि इस दौरान पितर पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपनी पीढ़ियों को आशीर्वाद देते हैं। इसके साथ ही उनकी पीढ़ी उनका श्राद्ध और तर्पण करके उनको मोक्ष की प्राप्ति कराती है। अधिकतर लोगों के मन में ये सवाल उठता है कि अगर उनके  मृत परिजन का पुनर्जन्म हो गया होगा, तो हमारे द्वारा किए जा रहे तर्पण और श्राद्ध उन तक कैसे पहुंचता है। ऐसा ही एक सवाल प्रेमानंद महाराज से एकांतिक वार्तालाप में एक व्यक्ति ने पूछा। आइए जानते हैं प्रेमानंद महाराज जी ने क्या दिया उत्तर…

प्रेमानंद महाराज जी का एक वीडियो सामने आया है जिसमें उनसे एक व्यक्ति पूछता है कि  हम मृतक की प्रार्थना और पूजा करते हैं। यदि मृतक का पुनर्जन्म होता है, तो हमारे द्वारा किया गया तर्पण और श्राद्ध उन तक कैसे पहुंचेगा। इस सवाल का जवाब देते हुए महाराज कहते हैं कि उनके पास आपका पूर्ण श्राद्ध पहुंचेगा। मृतक एक शुद्ध प्राणी है। आपने जो कुछ भी किया है वह जहां भी होगा। जिस योनि में होगा। वहां पर आपका तर्पण, श्राद्ध पहुंचेगा। जैसे अगर वह गली के कुत्ता होगा, तो हो सकता है कि वह आपके द्वारा किए गए श्राद्ध तर्पण से वह घर का कुत्ता बन जाएगा। वह कार में घूमेगा। उसे अच्छी व्यवस्था मिलेगी, क्योंकि आपने उसे यहां से आशीर्वाद दिया है। वह आशीर्वाद लेगा और उसे समृद्ध बनाएगा। अगर कोई मनुष्य है, तो वह जाएगा और उसे समृद्ध बनाएगा। वह व्यर्थ नहीं जाता। जिस आत्मा के लिए हमने कोई निर्णय लिया है, वह आत्मा ब्रह्मांड में जाकर उसे प्राप्त करेगी।

परिजन की मृत्यु के बाद श्राद्ध करना आवश्यक है?
प्रेमानंद महाराज जी से एक व्यक्ति ने पूछा कि भगवान कर्मों के हिसाब से सभी मनुष्यों की गति देते हैं और मृत्युलोक के बाद परिजनों के पीछे छूटे परिवार जनों से कोई संबंध नहीं रह जाता। तो फिर हमें पितृ दोष या पितृ आत्माओं द्वारा उत्पन्न होने वाली बाधाओं के बारे में क्यों सजग कराया जाता है?
महाराज जी ने कहा – यह जीवित की बात है। यह हमारी भावना की शुद्धि के लिए है। जैसे हमारे पिता पधार गए और उनकी संपत्ति का हम उपभोग कर रहे हैं। उन्होंने हमारा पालन-पोषण किया। उनका हमसे संबंध नहीं, लेकिन हम जीवित होकर उनका संबंध मान रहे हैं। अब जब हम उनको सुकृत दान करेंगे, भजन का दान, पुण्य का, पिंड का , तो जिस योनि में होंगे उनको प्राप्त होगा और उनकी उन्नति होगी। अगर वे किसी कर्म के दंड विभाग में हैं, नरक आदि में, तो आप यहां भजन करके उनका उत्थान कर सकते हैं। उनका मंगल हो जाएगा। वे आपका संबंध नहीं मान रहे, लेकिन आपका संबंध है। आप जीवित हैं।जैसे आपका स्थूल शरीर सैया में पड़ा है और आप स्वप्न देख रहे हैं तो स्थूल शरीर से कोई मतलब नहीं होता, लेकिन जागने वाले को स्थूल से मतलब होता है। ऐसे ही जब शरीर छूटता है तो स्थूल जगत का संबंध विस्मृत हो जाता है, लेकिन आप जागृत हैं। आप उनका कल्याण कर सकते हैं क्योंकि वह आपका पिता रहा है। उसको उस समय ज्ञान नहीं है, लेकिन आपको पता है। आप उसका मंगल कर सकते हैं भजन, तीर्थाटन, पिंडदान आदि के द्वारा। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो यह कर्तव्यहीनता होगी, क्योंकि आपका कर्तव्य है। उन्होंने आपके लिए जो किया अब उनका कर्तव्य खत्म हो गया, पर अब आपका कर्तव्य उनके प्रति है। उनका मंगल होना चाहिए।

यदि पिता की संपत्ति नहीं है तो भी हम अपनी कमाई से उनके लिए दान करें और वह दान उनको समर्पित करें तो उनकी उन्नति हो जाएगी। मान लो किसी मनुष्य शरीर में गए हैं और जो दंड मिलने थे, प्रारब्ध रचा था, पर आपने भजन बल दे दिया तो सब रुक जाएगा और उनका जीवन मंगलमय हो जाएगा। इसलिए प्रथा बनाई गई कि उनका अधूरा कार्य आप पूरा कर सकते हैं और उन्हें भगवत प्राप्ति करा सकते हैं। जब कोई साधक भजन करके भगवत प्राप्त होता है और संकल्प करता है तो कहा गया है कि उसकी 21 पीढ़ियां तर जाती हैं – 14 आगे और 7 पीछे। पिता को तो परम पद मिल ही जाएगा।

जब कोई भगवान का भक्त किसी कुल में जन्म लेता है तो उसके पितरों का भी परम मंगल होता है और वह कुल धन्य कहलाता है। चाहे पितर नरक में हों या स्वर्ग में – दोनों ही बंधनयुक्त हैं। लेकिन भजन का बल उन्हें परम पद दिला सकता है। पुत्र अपने पिता, माता ही नहीं बल्कि पितामह आदि को भी परम पद प्रदान कर सकता है। इसीलिए पितृ श्राद्ध, दान, भागवत पाठ, कीर्तन, जप आदि करवाए जाते हैं। जीवात्मा को पता नहीं होता, पर आपके पुण्य से उसके दंड विधान क्षमा हो जाते हैं और उसकी उन्नति हो जाती है। इसलिए कहा गया है कि जहां संतान होती है – चाहे पुत्र हो या पुत्री – पिता प्रसन्न होते हैं कि अब हमारी दुर्गति नहीं होगी। अगर संतान भजन करेगी तो हमारा मंगल होगा। यदि संतान भजन-साधन में चूक जाए तो उसका होना और न होना बराबर है।

सितंबर माह के चौथे सप्ताह शारदीय नवरात्रि के साथ आरंभ हो रहा है। इसके साथ ही इस सप्ताह महालक्ष्मी, सूर्य ग्रहण से लेकर समसप्तक, षडाष्टक, गजलक्ष्मी, नवपंचम, महालक्ष्मी जैसे राजयोगों का निर्माण हो रहा है। ऐसे में कुछ राशि के जातकों को इस सप्ताह विशेष लाभ मिल सकता है।

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