जबलपुरभोपालमध्य प्रदेशराज्य

ऐतिहासिक धरोहर : 100 वर्षो से अधिक पुराना है पिता पुत्र का यह अद्भुत मंदिर, हर मनोकामना होती है पूर्ण

नर्मदा नदी के पास स्थित है गोंडकालीन मंदिर, भगवान गणेश और महादेव, दोनों मंदिरों के पट आमने सामने

मंडला| सनातन धर्म में श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। किसी भी शुभ कार्य से पूर्व सबसे पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में भगवान गणेश के प्रति लोगों में श्रृद्धा व आस्था है। वैसे तो पूरे देश में भगवान गणेश के कई मंदिर मौजूद हैं। इन मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठित गणपति अपने भक्तों के विघ्न हरकर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। मंडला जिला मुख्यालय से करीब एक किमी दूर नाव घाट गल्र्स कॉलेज के सामने गौंड कालीन समय की करीब 200 वर्ष पुरानी चार भुजाओं की गणेश प्रतिमा स्थापित है। यहां विघ्रहर्ता गणेश मंदिर है।

IMG 20240908 WA0067

इस मंदिर में गणेश प्रतिमा के अलावा दूसरी कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। जिले में स्थित पुरातन मंदिर की कलाकृतियां एक सी ही है। यहां स्थापित सभी मूर्तियां पत्थर से बनाकर स्थापित की गई है। जिससे मूर्तियां आज भी अपने युग की गाथा सुनाती है। इन्हें बस संरक्षित करने की जरूरत है। जानकारी अनुसार नाव घाट स्थित गणेश मंदिर की देखरेख बाजपेयी परिवार कर रहा है। मंदिर की देखरेख कर रही दुर्गावती बाजपेयी ने बताया कि इस मंदिर की देख रेख, पूजा अर्चना हमारे वंशज करते आ रहे है। यह प्रतिमा गौंडकालीन समय से यहां स्थापित है। बुजूर्ग बताते है कि गणेश प्रतिमा पहले यहां गौंडकालीन राजाओं द्वारा बनाए गए शंकर भगवान के मंदिर के पट के ठीक सामने थी। यह प्रतिमा एक छोटे से चबूतरे पर विराजमान थी। जिसे बाजपेयी परिवार द्वारा करीब 60 वर्ष पहले एक छोटा सा मंदिर बनाकर संरक्षित किया था। यह सिद्ध गणपति मंदिर चारों ओर विख्यात है। इनके दर्शन के लिए लोगों का साल भर आना जाना लगा रहता है। यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना विघ्रहर्ता पूरी करते है। गर्ल्स कॉलेज के प्राचार्य डॉ. शरद नारायण खरे ने बताया कि मंडला जिला प्राचीन में माहिष्मती नगरी के नाम से जाना जाता था। मंडला में पहले कल्चुरी इसके बाद गौंड राजाओं का यहां राज था। मंडला जिला गौंड राजाओं की राजधानी थी। करीब 200 वर्ष पहले गौंड राजाओं के काल में यह गणेश प्रतिमा यहां स्थापित की गई होगी। यह स्थान माँ नर्मदा के किनारे स्थित है। यहीं सूर्य मंदिर भी स्थापित है, जो गौंडकालीन समय का है। यह गणेश मंदिर अपने आप में अलौकिक है। इतने वर्षो में गणेश प्रतिमा को आज तक कोई क्षति नहीं पहुंची है। वर्षो पुराने गणेश मंदिर में भक्त अपने मन की मुरादें लेकर आते हैं और भगवान गणेश अपने भक्तों को निराश नहीं करते। सच्चे मन से भक्तों द्वारा की गई प्रार्थना इनके दरबार से खाली नहीं जाती।

 

गौंडकालीन है मंदिर

शिक्षा विद राजेश क्षत्री का कहना है कि जिले में पुरातत्व धरोहर का भंडार है। बस इन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करने की जरूरत है। जिले का एक मात्र वर्षो पुराना गणेश मंदिर है। इस मंदिर में दूसरी कोई और प्रतिमा स्थापित नहीं है। यह मंदिर किले में स्थापित राजराजेश्वरी मंदिर के समय ही स्थापित की गई होगी। क्योंकि गणेश मंदिर की बनावट भी राजराजेश्वरी मंदिर से हूबहू मिलती है। यह मंदिर गौंडकालीन ही है।

 

आमने सामने है पिता पुत्र के दरबार

जिले में ऐसा मंदिर कहीं और नहीं है। जहां दो मंदिरों के पट ठीक आमने सामने हो। यहां नाव घाट स्थित गणेश मंदिर और भगवान शंकर का मंदिर ठीक आमने सामने है। दोनों मंदिरों के दरवाजे बिल्कुल आमने सामने है। भगवान शंकर के मंदिर में स्थापित शिवलिंग के पास से देखते है तो शिवलिंग और श्रीगणेश बिल्कुल आमने सामने दिखाई देते है। श्रृद्धालु यहां गणेश पूजन के बाद भगवान शंकर का पूजन अभिषेक जरूर करते है। जिले में स्थित इस एक लौते मंदिर को देखने लोग यहां साल भर आते है।

 

ध्यान मुद्रा में है श्री गणेश

बताया गया कि यहां स्थापित श्री गणेश की प्रतिमा ध्यान मुद्रा में है। इन्हें देखकर भक्तों को शांति मिलती है। इनका स्वरूप आलौकिक है। गणेश प्रतिमा को देखकर नहीं लगता है कि यह प्रतिमा इतने वर्षो पुरानी होगी। यहां स्थापित विघ्रहर्ता का स्वरूप इतना सुंदर है कि उनसे भक्तों की नजर ही नहीं हटती है, देखने वाले एक चित होकर देखते ही रहते है। इनकी इस मुद्रा से यहां आने वाले सभी मोहित हो जाते है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon Join Yashbharat App