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डोरीलाल की चिन्ता :- भक्त बड़ा या भगवान

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डोरीलाल का सवाल है भक्त बड़ा या भगवान। भगवान तो सर्वशक्तिमान होता है। वो सबकी रक्षा करता है। जो गुहार लगाता है प्रभु बचाओ तो प्रभु अपना मुकुट लगाए स्वर्णाभूषण पहने दाहिने हाथ का पंजा फैलाए स्मित सी मुस्कान लिए प्रकट हो जाते हैं। भक्त की समस्या पूछते हैं और कहते हैं तथास्तु तेरा कल्याण हो। और उसका कल्याण हो जाता है। प्रभु के द्वारा भक्त को बचाने के अन्य तरीके भी हैं जिसमें गीत खत्म होते ही प्रभु के हाथ से फूल डायरेक्ट भक्त के हाथ में गिरता है और यह तय हो जाता है कि प्रभु ने मामला संज्ञान में ले लिया है और अब दुश्मन की खैर नहीं। गाना क्लाईमेक्स में पंहुच जाता है। घंटे घड़ियाल बज उठते हैं। मंदिर के बाहर बैठी बूढ़ी माई जो अंधी होती है उसे अचानक प्रभु दिखाई देने लगते हैं और भक्त आकर माईं माईं कहकर लिपट जाता है। इस तरह भक्त की समस्याओं का अंत होता है, भक्त के दुश्मन का नाश होता है। और सभी लोग प्रभु के चरणों में नमन कर अपनी अपनी बस या ट्रेन पकड़कर रवाना हो जाते हैं।

मगर डोरीलाल के सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिला है कि भक्त बड़ा या भगवान। भगवान भक्त का कल्याण करते हैं या भक्त भगवान की रक्षा करते हैं। इस सवाल का जवाब इसलिए खोजना जरूरी है क्योंकि देश में बयार ऐसी बह रही है कि भक्त भगवान की रक्षा कर रहे हैं। भगवान खतरे में हैं। डोरीलाल को समझ में नहीं आ रहा है कि भगवान कैसे खतरे में हैं। मगर इतना शोर है कि सब मान बैठे हैं कि उनके आराध्य खतरे में हैं और अब कलजुग में एक ऐसे दिव्य पुरूष का उदय हो चुका है जो भगवान को इस खतरे से उबार लेगा और भगवान पर जो खतरा आ पड़ा है वो हमेशा के लिए टल जाएगा। दिव्य पुरूष के पास पूरी सेना है जो भगवान की रक्षा में चौबीस घंटे मुस्तैद है। वैसे इसके पहले भी एक दिव्य पुरूष हुए हैं। उन्हीं से देश भर में फैले भक्तों को पहली बार पता चला था कि भगवान पर विपत्ति भारी है। भक्तों को बताया गया कि समय आ गया है कि चलो और भगवान को बचाओ। पक्के मकान से भगवान टेंट में रहने को मजबूर हो गये। इस ईश्वर रक्षा युद्ध भें भगवान के बनाये सैकड़ों इंसानों ने अपनी जानोमाल से हाथ धोया। मगर जैसा कि डोरीलाल ने पहले कहा है कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है। तो ईश्वर ने न्याय कर दिया और प्रधानमंत्री बनने की बारी आई तो कोई और बन गया। दिव्यपुरूष बहुत रोये धोये, बोले सारी आग मैंने लगाई, सारी तबाही मैंने मचाई और जब फल खाने की बारी आई तो ये अटल जी आ गए। अब मुझे उपप्रधानमंत्री तो बनाओ कम से कम। फिर ऐसे दिन फिरे कि अब घर में बैठेे हैं। दो दो बार राष्ट्रपति की पोस्ट खाली हुई मगर पूछा तक नहीं। अब मार्गदर्शक बने हुए हैं। उसमें भी तीन हिस्सेदार हैं। पूरा मंडल है। गुरू गुड़ रह गए चेला शक्कर हो गए।

हमको तुम्हारे इश्क ने क्या क्या बना दिया। जब कुछ न बन सके तो तमाशा बना दिया।

दिव्य पुरूष की चाल में दिव्यता है। वस्त्रों में दिव्यता है। तरह तरह के वस्त्र हैं। तरह तरह की अदाएं हैं। तरह तरह की हेयर स्टाइल है। तरह तरह के मेकअप हैं। चश्मे हैं। घड़ियां हैं। हवाई जहाज हैं। वन्देभारत अमृत भारत और बुलेट ट्रेन हैं। तीर्थयात्राएं हैं। स्वयं के विमान हैं। तीन ट्रिलियन की इकानामी है। पांच की होना है। सन् 2047 और सन् 3047 की योजनाएं हैं। एक हजार साल की बात चल रही है। फेंको तो ऐसी फेंकोे कि चांद के पार निकल जाए। जब असत्य संभाषण ही करना हो तो विराट असत्य संभाषण किया जाए अर्थात जब झूठ ही बोलना हो तो हिमालय से बड़ा झूठ बोलो।

जिस देश में पचासी करोड़ लोग यानी 60 प्रतिशत लोग मुफ्त अनाज पर आश्रित हों उस दिव्य देश में हजारों करोड़ रूपयों से भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। भव्य शिलान्यास हो चुका है। भव्य निर्माण जारी है। भव्य प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। कुछ ही दिन शेष हैं। फिर वही प्रश्न है। भक्त बड़ा या भगवान। कौन किसकी प्राण प्रतिष्ठा कर सकता है। जब प्राणी जन्म लेता है तो कौन उसके शरीर में प्राण डालता है। ईश्वर डालता है प्रभु। अब भगवान की मूर्ति स्थापित हो रही है। तो कौन उस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठित करेगा। जो भगवान से बड़ा हो। तो क्या ऐसा व्यक्ति मिल गया है। हां प्रभु। मिल गया है। उसी ने शिलान्यास का पूजन किया था। प्रभु। वहीं प्राण प्रतिष्ठा करेगा। प्रभु। सभी देवी देवता आकाश में अपने अपने यानों में बैठे ये दिव्य दृश्य देखेंगे। एक दूसरे की ओर देखकर मंद मंद मुस्काएंगे और पुष्प और सुंगधित जल की वर्षा होगी। आकाश में बैठे बैठे ये सभी देवी देवता उस दिव्य पुरूष से ईर्ष्या करेंगे कि देखो जम्बूद्वीप में रहने वाला यह दिव्यपुरूष कितना शक्तिशाली है। कितना वैभवशाली है। इसके वस्त्र देखो देदीप्यमान मुखमंडल देखो। देखो पीत व़स्त्रधारी सभी पंडित आचार्य गण प्रभु की मूर्ति से बहुत दूर खड़े हो गये हैं। अब दिव्य पुरूष और दिव्य मूर्ति के मध्य और कोई नहीं है। अहो भाग्यम अहो भाग्यम।

सुनियोजित सुसंगठित विराट प्रचार अभियान अब अपने चरम पर पंहुचने को है। गांव गांव शहर शहर गली गली कार्यकर्ता फैल गये हैं। हर प्रदेश में हजारों करोड़ के मंदिर बने हैं। चुनाव में ये फार्मूला अचूक काम करता है। आजमाया हुआ है। इसे लोकसभा की वोटिंग के दिन तक खींचना है। सभी अपने अपने काम पर लगे गये हैं। प्रचार तंत्र अपना सारा कौशल दिखा रहा है। हर पाइंट पर मार्किंग की जा रही है। चप्पे चप्पे पर नजर है। ऐलान हो चुका है। अगले चुनाव का परिणाम आ चुका है। चार सौ सीट जीतेंगे।

राम जी करेंगे बेड़ा पार।

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