
यश भारत संपादकीय- पाक-सऊदी अरब संधि या दुरभि संधि
17 सितंबर 2025 को पकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए रणनीतिक पारस्परिक रक्षा सम्झौते ने क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर कई सवाल खड़े किए हैं। इस संधि को पाकिस्तान में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है, परंतु विशेषज्ञ कुछ सवालों के उत्तर तलाशे हैं।
क्या सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने यह संधि जल्दबाजी में की है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता जल्दबाजी में नहीं, बल्कि लंबे समय से चली आ रही चर्चाओं का परिणाम है। सऊदी अस्य और पकिस्तान के बीच दशकों से सैन्य और अर्थिक सहयोग रहा है, जिसमें पाकिस्तान ने सऊदी सैनिकों को प्रशिक्षण दिया और संयुक्त सैन्य अभ्यास किए हैं। एक सऊदी अधिकारी ने टॉयटर्स को बताया कि यह समझौता ‘वर्षों की चर्चाओं का परिप्पडम है और इसे किसी विशिष्ट घटाना या देश के खिलाफ प्रतिक्रिय के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हाल के क्षेत्रीय तनाव, जैसे 9 सितंबर 2025 को कतर में इजरायल के हमले और ईरान के परमाणु कार्यक्रम से सऊदी अरब की चिंताओं ने इस समझौते को औपचारिक रूप देने में तेजी लाई हो सकती है। हालांकि, सऊदी अरब की रणनीति में यह कदम उनकी वीर्घकालिक सुरक्षा नीति का हिस्सा प्रतीत होता है, न कि जल्दबाजी का नतीजा।
यद्यपि पाकिस्तान के पीएमओ से जारी बयान से लगता है कि इस्लामी एकजुटता और भाईचारे के प्रतीक के रूप में पोट्रेट कर रहा है। संयुक्त बयान में भी कहा गया है कि यह सम्झौता ‘अठ दशक पुराने रिशतों, भाईचारे, इस्लामी एकता और साझा रणनीतिक हितों पर आधरित है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा असिफ ने भी इसे नाटो जैसे रक्षात्मक गठबंधन के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि अन्य अरब देशों के लिए भी इसमें शामिल होने के दरवाजे खुले है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह सम्झौता मुख्य रूप से रणनीतिक और भू राजनीतिक हितों से प्रेरित है, नकि केवल वार्मिक एकता से। सऊदी अरब की सर्वोच्च समस्या के केंद्र में ईरान और इजरायल है। पकिस्तान परमाणु शक्ति युक्त है यही कारण है कि सऊदी अरब पाकिस्तान से यह संधि करना चाहता रहा है। सीधे तौर पर मुस्लिम भाई चारा इस वृश्य में प्रभावी नहीं है बल्कि सऊदी अरब की सुरक्षा जस्प्रतों और पकिस्तान सैनिक क्षमता सऊदी अरब के लिए आकर्षण का बिंदु बनी हुई है। विश्व को यह समझ लेना चाहिए कि युद्ध जरूरी है या रोटी ? इसी क्रम में सऊदी अरब अच्छी तरह जानता है कि कृषि आधारित जरूर को पूरा करने खाद्य सुरक्षा सप्लाई चैन सेंटेन करने में पाकिस्तान की अपेक्षा भारत कहीं अधिक विश्वसनीय है।
पकिसान भारत के सापेक्ष कृषि गेहूं, चावल, गन्ना और कपास जैसे उत्पाद थ सुरक्षा और अनाज उत्पादन क्षमता सीमित है। विशेष रूप से मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों की बड़े पैमाने की मांग को पूरा करने के लिए। हाल के वर्षों में, पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन, बाद, और अर्थिक संकटों के कारण खाद्य उत्पादन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। यद्यपि इसका प्रभाव भारत में भी रहा है परंतु भारत की अतमनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा की मपदंड बेहतर होने से भारत को क्यनीय स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा। सऊदी अरब, जो अपनी खाद्य आपूर्ति के लिए आयत पर निर्भर है, मुख्य रूप से भरत, ऑस्ट्रेलिया, और यूरोपीय देशों जैसे बड़े उत्पादकों से अवाज आयात करता है। भारत 2024 में सऊदी अरब का एक प्रमुख खथ आपूर्तिकर्ता रहा है, विशेष रूप से चावाल और अन्य खाद्य पार्थों के लिए। विशेषज्ञ मानते है कि पाकिस्तान उनके लिए एक बेहतर विकल्प नहीं है। विशेषवा यह मनते हैं कि सऊदी अरब की समक्ष अगर वो ऑन रक्षा कवच और आम आम नगरिकों की खाद्यान की जरुरत।
ऐसी स्थिति में प्रगतिष्हील प्रिंस मोहम्मद बिन सुल्तान दोनों सुद्दों पर संतुलन बनाने की कोहिश करेंगे। सऊदी अरब अपनी खाद्य आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। भारत से चावल और अन्य साथ पार्थों की आपूर्ति रुकने से रुरुवी बाजार में खाद्य कीमतों में वृद्धि होगी। जिससे जनता पर आर्थिक बेड़ा बढ़ेगा। हालांकि, सऊदी अरब अन्य देशों (जैसे ऑस्ट्रेलिया, यूक्रेन, या दक्षिण अमेरिकी देशों) से अपूर्ति बढ़ाकर इस कमी को पूरा करने के प्रवास करेगा किंतु यह सौवा सऊदी अरब के लिए महंगा साबित होगा। विश्लेषक मानते हैं कि भारत से स्टील या अन्य औद्योगिक सामग्रियों की अपूर्ति में रुकावट सऊदी अरब के बुनियादी ढांचे और औद्योगिक परियोजनाओं को प्रभावित हो सकती है।
एम बी एस असो ‘विजन 2030’ प्रगति को प्रभावित नहीं करना चाहेंगे क्योंकि, उनके विजन की पूर्णता के लिए भारत जैसे देशों के निवेश और तकनीकी सहयोग महत्वपूर्ण है। भारत और सऊदी अरब के बीच मजबूत अर्थिक संबंध है, जिसमें 2024 में 52 अरब डॉलर से अधिक का ट्रिपक्षीय व्यापफर रहा है। सऊदी विजन 2030 तक दोनों देशों का व्यापार 100 अरब डॉलर का लक्ष्य है। विशलेषया मानते है कि भारत का भू राजनैतिक चिंतन, गंभीरता और दूरवर्शिता आधारित है। भारतीय प्रजातत्रिक व्यवस्था में राष्ट्र की सुरक्षा और जनता की चिंता करता तो समाहित है। यही कारण है कि, भारत ने इस समझौते पर सुलझी हुई प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि वह इसके प्रभावों का अध्ययन करेगा। भारत सही समय पर सही निर्णय लेगा, इस बात का भरोसा सभी को करना ही चाहिए।







