प्यासों को पानी मिले न मिले, कब्रिस्तान के मुर्दों को नहीं होना चाहिए तकलीफ

मुस्लिम समाज के लोगों ने एसपी को सौंपा प्रस्तावित पानी की टंकी के खिलाफ ज्ञापन
जबलपुर, यशभारत। कहते हैं इस्लाम में प्यासे को पानी पिलाने को फर्ज से नवाजा गया है। कर्बला में शहादत देने वाले इमाम हुसैन और उनके 72 जांनिसार साथियों की याद में इस्लाम धर्म के लोग मुहर्रम के महीने में प्यासों को शरबत तकसीम करते हैं। इसके उलट जबलपुर के मुस्लिम बहुल इलाके में प्रस्तावित पानी की टंकी, जिसकी लंबे समय तक मांग मुस्लिम जनप्रतिनिधियों ने ही उठाई थी। उसका विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि यह वक्फ की संपत्ति पर अतिक्रमण कहलाएगा और इससे कब्रिस्तान के मुर्दों को तकलीफ होगी। अपनी इस मांग को लेकर विभिन्न दलों की सदस्यता लेने वाले जनप्रतिनिधि रईस वली के नेतृत्व में एसपी दफ्तर में एसपी को ज्ञापन भी सौंपा गया।
इन्होंने उठाई है मांग
दरअसल ठक्कर ग्राम के पार्षद और पूर्व एमआईसी सदस्य गुलाम हुसैन ने ही क्षेत्र में पानी की समस्या को लेकर मंडी मदार टेकरी जो कि ऊंचाई वाला क्षेत्र है, में एक 900 किलोलीटर के ओवरहैड टैंक के निर्माण के लिए नगर निगम आयुक्त को पत्र सौंपा था। जिसके लिए निगमायुक्त ने मप्र वक्फ बोर्ड से कब्रिस्तान के अंदर टंकी के निर्माण की अनुमति चाही गई। यह जानकारी जब समाज का कथित रूप से नेतृत्व करने वाले रईस वली को लगी तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए टंकी निर्माण को अनुमति न देने की गुजारिश की है। अपने पत्र में रईस वली ने साफ इंगित किया है कि वक्फ को उसकी नवैयत बदलना जायज नहीं, कब्रिस्तान में वह बात जायज नहीं जो उसके वक्फ की गर्ज से खिलाफ हो या मुर्दों को तकलीफ हो।
इधर इस मामले में जब पूर्व एमआईसी सदस्य और कांग्रेस पार्षद गुलाम हुसैन से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो अनेक प्रयासों के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया। मुस्लिम समाज की ओर से कब्रिस्तान में पानी की टंकी बनाए जाने का विरोध करने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर जिंदा लोगों की प्यास को बुझाना ज्यादा जरूरी है या फिर मुर्दों का सुकून?