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लालच की खुराक ने बुझा दिए चिराग 

भोपाल  यशभारत

लालच की खुराक ने बुझा दिए चिराग 

भोपाल  यशभारत दवाओं में कमीशन का खेल किसी से छुपा नहीं है रोकथाम के लिए जब तब प्रयास भी होते रहते हैं, लेकिन इस गंदे खेल में मासूमों की जान के साथ हुआ खिलवाड़ तो मानवता को ही शर्मसार करने वाला है। इस पूरे मामले में जो प्रत्यक्ष दोषी हैं उन्हें तो सजा मिलेगी ही लेकिन उस सिस्टम का क्या जो इन्हें यह अमानवीय नंगा खेल खेलने की इजाजत देता है और बचाव के रास्ते बताता है। डॉक्टर, डिस्ट्रीब्यूटर के साथ-साथ उन अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय होना चाहिए जिनके संरक्षण में यह गंदा खेल चल रहा है। कई घरों की किलकारी अब चीख-पुकार में बदल गई है जहां कुछ दिनों बाद एक अजीब सा सन्नाटा पसर जाएगा लेकिन सवाल वही उठता है कि इस पूरे कमीशन के खेल में डॉक्टर तो आखिरी कड़ी है शुरुआती कडिय़ों पर भी ऐसा बज्रघात होना चाहिए कि पूरा सिस्टम ही दुरुस्त हो जाए।
बच्चों के लिए हो कड़े प्रावधान  
एक तरफ जहां कुछ डॉक्टर बच्चों को कफ सिरप देते हैं वहीं दूसरी तरफ 2 साल से छोटे बच्चों में सर्दी और खांसी के सिरप नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए जब तक कि बेहद जरूरी न हो। वहीं डेक्सट्रोमेथर्फन और कोडीन वाले कफ सिरप 5 साल से कम उम्र के बच्चों में प्रतिबंधित होना चाहिए। साथ ही कफ सिरप की गुणवत्ता जांच और सेफ्टी प्रो$फाइल चेक करने के बाद ही ये बाजार में विक्रय के लिए उपलब्ध होना चाहिए। बिना डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के दवा के बेचने पर प्रतिबंध जरूरी है, जिससे इन दवाओं का गलत इस्तेमाल रोका जा सके। जिससे छिंदवाड़ा जैसी दुखद घटना दोबारा ना हो।
अलग-अलग मानक क्यों
वैसे तो भारत के फार्मा क्षेत्र में पूरे विश्व में डंका बजता है कई देशों में भारत की दवाएं बेची जाती हैं जो अपनी क्वालिटी और कीमत के कारण सबसे ज्यादा मांग में रहती हैं। लेकिन वही क्वालिटी और वही कीमत भारत में कुछ और है जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों में क्वालिटी के साथ समझौता नहीं किया जाता। कुछ ऐसी दवाइयां है जिसमें कफ सिरप भी शामिल है जो कई देशों में वैन है लेकिन भारत में खुलकर बिक रहीं हैं इस बात की जानकारी उन कंपनियों को भी है कि उन्हें किन कारणों से बैन किया गया है उसके बाद भी भारत ने अपना बाजार उनके लिए खोल के रखा गया है एक तरफ तो जहां कंपनियां नैतिकता को दाव पर रखकर मुनाफे को प्राथमिकता दे रही हैं वहीं सरकार भी गांधारी की तरह आंख में पट्टी बांधकर बैठी हुई है ऐसे में सवाल उठेगा ही की अलग-अलग देशों के लिए आखिर अलग-अलग मानक क्यों बनाए गए हैं जबकि जान तो सभी में है।
तय होना चाहिए जिम्मेदारी
इस पूरे मामले में एक सवाल तो यह भी उठना है कि जब उक्त कफ सिरप में निर्धारित मात्रा से अधिक हानिकारक कंटेंट था तो फिर उसे पर स्पष्ट लिखा होना चाहिए था कि यह किस उम्र तक के लोगों के लिए है जबकि यह दवाई दूसरे राज्यों में प्रतिबंधित है तो फिर मध्य प्रदेश में इसे बेचने के लिए जिन लोगों के द्वारा अनुमति प्रदान की गई उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। क्योंकि प्रिस्क्रिप्शन लिखने से ज्यादा वे लोग जिम्मेदार हैं जो यह दवाई बना रहे हैं और जो लोग यह दवाई बेच रहे थे। साथ ही साथ उस विभाग की अधिकारी भी जिम्मेदार हैं जिनके संरक्षण में यह दवाई बेची जा रही है। इस पूरे मामले में छिंदवाड़ा के तत्कालीन कलेक्टर शैलेंद्र सिंह द्वारा पूरा मामला सामने आने के बाद तत्काल प्रभाव से उक्त दवा पर रोक लगा दी गई थी जबकि मामले की जांच भी नहीं हुई थी लेकिन इस प्रभावी निर्णय के चलते कई और मासूम की जान बच गई और फिर बाद में उनका निर्णय सही साबित हुआ। इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह बात भी उठने लगी है कि  प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरो के द्वारा जो दबाए मरीज को लिखी जाती हैं उनके मानक भी निर्धारित होने चाहिए। जिस तरह से सरकारी अस्पतालों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद दवाओं को शासकीय सूची में शामिल किया जाता है इस तरह से प्राइवेट प्रैक्टिशनर्स के प्रिस्क्रिप्शन के लिए भी मानक होने चाहिए।

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