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चौकाने वाला खुलासा: मिट्टी में जिंक की कमी से बौना हो रहा मध्य प्रदेश! 36% लोगों की हाइट रह गई कम – रिसर्च

खुलासा

ग्वालियर: क्या आप यह सुनकर हैरान होंगे कि मध्य प्रदेश में एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व की कमी के कारण लगभग 35 प्रतिशत युवाओं की लंबाई औसत से कम रह गई है? इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल्स और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की एक संयुक्त रिसर्च में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिसर्च के अनुसार, मध्य प्रदेश की लगभग 60 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की मात्रा लगातार घट रही है, जिसका सीधा असर बच्चों और युवाओं की लंबाई और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

मिट्टी में जिंक की कमी का मानव शरीर पर गंभीर असर

इस संयुक्त रिसर्च में पाया गया कि मिट्टी में जिंक की कमी भोजन में जिंक की मात्रा को प्रभावित करती है। जब इंसान कम जिंक वाला भोजन करता है, तो शरीर में मौजूद एंजाइमों का विकास बाधित होता है। इस शोध में शामिल रहे कृषि वैज्ञानिक और वर्तमान में ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में इस रिसर्च के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।

तीन जिलों का चयन कर किया गया गहन अध्ययन

प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला ने बताया कि जब वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल्स भोपाल में कार्यरत थे, तब एम्स के साथ मिलकर ‘मिट्टी में जिंक और अन्य पोषक तत्वों की कमी का मानव स्वास्थ्य पर असर’ विषय पर एक व्यापक शोध किया गया था। इस महत्वपूर्ण अध्ययन में एम्स के डॉक्टर्स, मृदा वैज्ञानिक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट शामिल थे। रिसर्च के लिए मध्य प्रदेश के मंडला, बैतूल और झाबुआ जिलों का चयन किया गया। इन जिलों के अलग-अलग गांवों में कुछ घरों को चुना गया और जनजातीय आबादी पर गहन अध्ययन किया गया। इस दौरान उनकी कृषि भूमि की मिट्टी, मवेशियों के चारे, भोजन सामग्री और मसालों तक के नमूने एकत्रित कर उनका परीक्षण किया गया।

तय मानक से 40 फीसदी कम मिला जिंक इंटेक

रिसर्च में पाया गया कि इन क्षेत्रों के लोगों के भोजन में जिंक की आपूर्ति मानक से काफी कम थी। मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स ने परीक्षण में पाया कि इन लोगों के शरीर में जिंक का इंटेक 35-40% तक कम था। मानव शरीर में रक्त में जिंक का मानक 10 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम और बच्चों में 13 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होना चाहिए, लेकिन इन लोगों में यह स्तर काफी नीचे पाया गया।

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प्रो. अरविंद शुक्ला ने स्पष्ट किया कि शरीर में जिंक की कमी और मिट्टी में जिंक की मात्रा के बीच एक सीधा संबंध पाया गया। मेडिकल साइंस पहले ही यह साबित कर चुका है कि आनुवंशिक कारणों को छोड़कर, यदि किसी बच्चे की लंबाई में कमी आती है तो इसका मुख्य कारण उसके भोजन में पोषक तत्वों की कमी होती है, जिसमें जिंक एक अहम भूमिका निभाता है। डॉ. एएस प्रसाद के पूर्व के शोध में भी यह पाया गया था कि जिंक की कमी बच्चों में लंबाई और वजन बढ़ने में बाधा डालती है। इस रिसर्च में एम्स के डॉ. अभिजीत पाखरे और डॉ. अश्विन कुठनीश समेत कई डॉक्टरों ने मिलकर काम किया।

चौंकाने वाला खुलासा: 36 प्रतिशत लोगों की लंबाई औसत से कम

इस संयुक्त रिसर्च में मिट्टी में जिंक की मात्रा, फसल में जिंक का स्थानांतरण, और उस फसल का सेवन करने वाले मनुष्यों में जिंक की मात्रा के चक्र का अध्ययन किया गया। परिणाम चौंकाने वाले थे – सैंपल के लिए चुने गए 36 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनकी हाइट जिंक की कमी के कारण औसत लंबाई (पुरुषों में 5 फुट 4 इंच और महिलाओं में 5.0 फुट) से कम थी। यह शोध भले ही सीमित क्षेत्र में किया गया था, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि प्रदेश के सभी जिलों में मिट्टी का परीक्षण कराने पर पता चला कि मध्य प्रदेश की 60 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की कमी है। यह कमी फसलों, खासकर दलहन, तिलहन और सब्जियों को बुरी तरह प्रभावित करती है।

प्रदेश की 60 फीसदी से ज्यादा मृदाओं में जिंक की कमी

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मध्य प्रदेश सरकार ने इस रिसर्च के आधार पर प्रदेश के सभी जिलों में मिट्टी का परीक्षण कराया और रिसर्च टीम ने एक विस्तृत एटलस भी तैयार किया। इस एटलस में जिलेवार और तहसीलवार मिट्टी में जिंक की कमी के स्तर को छह भागों में वर्गीकृत करके दर्शाया गया है – अत्यंत कमी, कमी, लिटेंट डेफिशियेंसी (छिपी हुई कमी) और एडिक्यूट लेवल। चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश की केवल 7-8 प्रतिशत मृदाओं में ही जिंक का स्तर अच्छा पाया गया, जबकि 60-70 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की मात्रा बहुत कम है।

मिट्टी में जिंक की पूर्ति से कम हो सकती है गोलियों पर निर्भरता

कुलगुरु अरविंद शुक्ला का मानना है कि यदि किसी तरह मिट्टी में जिंक की मात्रा को बढ़ाया जा सके, तो फसलों में भी जिंक की आपूर्ति बढ़ेगी और भोजन के माध्यम से लोगों में इस पोषक तत्व की कमी को पूरा किया जा सकेगा। वर्तमान में लोगों को जिंक की गोलियां अलग से खानी पड़ती हैं, और मिट्टी में जिंक की पूर्ति से इस पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। हालांकि, इस दिशा में अभी और अधिक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।

यह रिसर्च मध्य प्रदेश के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी न केवल फसल उत्पादन को प्रभावित कर रही है, बल्कि मानव स्वास्थ्य और शारीरिक विकास पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है। इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।

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