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झाड़-फूंक में चली गई कैंसर पीडि़त 28 बच्चों की जान : मेडिकल में बेहतर इलाज के बाद भी परिजनों ने चुना अंधविश्वास का रास्ता

नीरज उपाध्याय  यशभारत

आधुनिकता के इस दौर में आज भी अंधविश्वास हावी है, कैंसर जैसी बड़ी बीमारी को झाड़-फूंक से ठीक होने पर भरोसा किया जा रहा है। लेकिन सच्चाई ये है कि झाड़-फूंक से कभी भी कैंसर को ठीक नहीं किया जा सकता है। जिन लोगों ने डॉक्टर से ज्यादा अंधविश्वास पर भरोसा किया है उनके घरों के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए हैं। यह बातें ऐसी नहीं कही जा रही है और न ही कोई काल्पनिक कहानी का जिक्र किया जा रहा है। बल्कि ये हकीकत है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कैंसर इंस्टीट्यूट में भर्ती होने के बाद झाड़-फूंक का सहारा लेने वाले परिवारों के 28 बच्चों की मौत हो गई। कैंसर से मरने वाले बच्चों की उम्र नवजात से लेकर 19 साल तक की है। सबसे हैरानी की बात तो ये है कि मेडिकल अस्पताल में कैंसर बीमारी से लडऩे के लिए पर्याप्त संसाधन, डॉक्टरों का उचित परामर्श और सारी सुविधाएं होने के बाद भी लोग चिकित्सा पद्वति पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।

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जबलपुर जिले में 10 कैंसर पीडि़त बच्चों की मौत

जबलपुर में महानगर शहरों की तर्ज पर काम हो रहे हैं, इस शहर में प्रदेश की तमाम बडी यूनिर्विर्सटी से लेकर स्कूल-कॉलेज और काफी संख्या में लोग शिक्षित है इसके बाबजूद 10 ऐसे बच्चों की मौत कैंसर से हो गई जिनका इलाज संभव था लेकिन परिजनों की मनमानी और अंधविश्वास में जरूरत से ज्यादा भरोसे करने पर इन बच्चों को बचाया नहीं जा सका। बात अगर कटनी की करें तो यहां 01, मंडला-03, डिंडोरी- 03, रीवा-02, पन्ना-03, छतरपुर 04, सिंगरौली 02 कैंसर पीडि़त बच्चों की मौत हो चुकी है। इन सबके पीछे का कारण झाड़-फूंक निकलकर सामने आया।

138 कैंसर पीडि़त बच्चें मेडिकल में इलाजरत

नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कैंसर इंस्टीट्यूट में वर्तमान में 138 कैंसर पीडि़त बच्चों का बेहतर तरीके से इलाज किया जा रहा है। इसमें सबसे खास बात ये है कि 92 बच्चे ब्लड कैंसर से पीडि़त है जबकि 46 अन्य कैंसर से जूझ रहे हैं। इन बच्चों के सफल इलाज के लिए कैंसर इंस्टीट्यूट का पूरा स्टाफ पूरी मेहनत से काम कर रहा है। कैंसर इंस्टीट्यूट की विभाग प्रमुख डॉक्टर श्वेता पाठक ने बताया कि कैंसर से बच्चों की मौत का प्रतिशत सिर्फ 9.4 है यह आंकडा भी कम हो जाए अगर लोग जागरूक हो जाए। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिन्हें पता भी हो जाता है कि उनके बच्चे को कैंसर है लेकिन फिर भी वो दूसरा इलाज कराते हैं और जब केस ज्यादा बिगड़ जाता है तो वह मेडिकल कालेज अस्पताल लेकर पहुंचते हैं।

 

जागरूक होना बहुत जरूरी है

विभाग प्रमुख डॉक्टर श्वेता पाठक ने लोगों से अपील की है कि वह कल्पनाओं पर जीना छोड़ दें ,किसी पर भी अंधविश्वास होना ठीक नहीं है। लोगों को जागरूक होना जरूरी है। सभी सुविधाएं कैंसर इंस्टीट्यूट होने के बाबजूद लोग इलाज कराने से कतरा रहे हैं। बच्चों की जान के साथ खिलवाड़कर रहे हैं, इंस्टीटयूट में सभी सुविधाएं उपलब्ध है और पूरा स्टाफ दिन-रात मेहनत कर कैंसर पीडि़त बच्चों का इलाज कर रहे हैं।

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