एडमिशन का दौरान अंतिम चरण में मैदान से गायब एनएसयूआई, छात्र हितों पर खामोश

जबलपुर यश भारत। नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत हो रही है और काउंसलिंग का दौर लगभग पूरा हो चुका है । चाहे हम डिग्री कोर्सों की बात करें या फिर इंजीनियरिंग और अन्य प्रोफेशनल कोर्स को देखें तो सभी जगह काउंसलिंग लगभग पूरी हो गई है । जिन छात्रों को जहां एडमिशन लेना था वह वहां ले चुके हैं इस दौरान कहीं तकनीकी स्तर पर तो कहीं महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के स्तर पर छात्रों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा । लेकिन छात्र हित का दाम्भ भरने वाली एनएसयूआई इस पूरी प्रक्रिया से गायब रही कहीं भी छात्रों के हित में छात्रों की राजनीति करने वाला यह संगठन दिखाई नहीं दिया।
यदि हम जबलपुर की ही बात करें तो यहां चार शासकीय विश्वविद्यालय अन्य निजी विश्वविद्यालय के साथ-साथ बड़ी संख्या में महाविद्यालय हैं जहां जबलपुर ही नहीं आसपास के क्षेत्र से भी बच्चे पढ़ने आते हैं। जहां इंजीनियरिंग कॉलेज में सबसे ज्यादा कमीशन और दलालों की व्यवस्था बरकरार है इसके अलावा कई स्तर पर छात्रों को तकनीकी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है ऐसे में पूरी तरह से कॉलेज प्रशासन के भरोसे ही रहते हैं। जबकि देखा जाता था कि इस समय छात्रों की राजनीति करने वाले सबसे ज्यादा सक्रिय होते थे क्योंकि एक ओर काउंसलिंग के दौरान छात्रों को सुविधा मिलती थी वहीं दूसरी ओर छात्र संगठनों को नए सदस्य भी मिलते थे लेकिन इस बार इस पूरे दौड़ में एनएसयूआई गायब रही।
यहां भी हुई सिर्फ खानापूर्ति
एक और जहां एनएसयूआई पूरी तरह से मैदान से गायब दिख रही है वहीं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भी छात्र हितों की राजनीति में खाना पूर्ति करती दिख रही है। हालांकि विद्यार्थी परिषद सत्ता पक्ष से जुड़ा हुआ है ऐसे में उसकी अपनी सीमाएं हैं। वह प्रशासनिक तंत्र से तो सीधे टकरा सकता है। सरकार के खिलाफ सीधे आवाज नहीं उठा सकता ऐसे में जो छात्रों के हित की बात है वह जितनी ताकत से एनएसयूआई उठा सकती थी उतनी ताकत से विद्यार्थी परिषद नहीं उठा सकती। राजनीति की नर्सरी मानी जाने वाली छात्र राजनीति ही कमजोर रहेगी तो फिर भविष्य में यहां से राजनीति के बड़े वृक्ष तैयार होने की उम्मीद ही समाप्त हो जाएगी। साथ ही साथ छात्रों को भी अपनी लड़ाई व्यक्तिगत तौर पर लड़नी होगी ना की कोई संगठन उनके साथ खड़ा दिखेगा।