जबलपुर, यशभारत। इंदौर निजी मेडिकल कॉलेज में पीजी कोर्स के लिए एडमिशन लेने वाली छात्रा ने 81 लाख रुपए जमा किए। फिर किन्हीं कारणों से सीट छोड़ दी। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने नियमों का हवाला देते हुए छात्रा को तीन साल तक पीजी की काउंसलिंग में बैठने पर रोक लगा दी। छात्रा ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किए हैं। तीन बार हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने जवाब देने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग को समय भी दिया। लेकिन सरकार ने जवाब नहीं दिया। हाई कोर्ट ने सरकार से कड़े लहजे में कहा है कि इस संबंध में नियम जो भी हो, 14 अगस्त 2024 तक इसका जवाब पेश कर दें। वर्ना डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एजुकेशन को खुद हाजिर होना पड़ेगा। मामले की पैरवी अधिवक्ता आदित्य संघी ने की।
छात्रा ने कहा- हर्जाना दिया, फिर क्यों रोकी पढ़ाई?
छात्रा डॉ. रितिका माहेश्वरी ने 2023 में अधिवक्ता आदित्य सांघी के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा विभाग के नियम को चुनौती देने वाली याचिका दायर कर रखी है। छात्रा की ओर से तर्क दिया गया – डठठै पासआउट स्टूडेंट किन्हीं कारणों से बीच में पीजी की पढ़ाई छोड़ दे तो उससे सीट खाली करने के बदले हर्जाना वसूला जाता है। मैंने भी 81 लाख रुपए हर्जाना चुकाया है। अब मुझे फिर से च्ळ करना है, लेकिन एग्जाम क्लीयर करने के बावजूद मेरी काउंसलिंग पर तीन साल का बैन क्यों है? छात्रा का कहना है कि अगस्त में पीजी एग्जाम और उसके बाद काउंसलिंग है, यदि तुरंत एक्शन नहीं हुआ तो 2024 में भी उसे मौका नहीं मिल पाएगा।
एक गलती, दो सजा को लेकर छात्रा का यह है तर्क
इंदौर के आरडी गार्डी मेडिकल कॉलेज में छत्प् कैटेगरी में छात्रा डॉ. रितिका माहेश्वरी ने डठठै के बाद पीजी एग्जाम दिया था। 2022 में पीजी कोर्स में एडमिशन मिल गया। बाद में व्यक्तिगत कारण बताकर डॉ. रितिका ने यह सीट खाली कर दी। सरकार का नियम है कि सरकारी या प्राइवेट कॉलेज में सिलेक्शन के बाद सीट खाली करने पर खर्च स्टूडेंट ही उठाएगा। साथ ही अगले तीन साल तक वह इस एग्जाम की काउंसलिंग में वह बैन रहेगा। बीच में सीट खाली करने पर डॉ. रितिका के परिवार ने 81 लाख रुपए हर्जाने में भर दिए।