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ग्वालियर हाईकोर्ट में अम्बेडकर प्रतिमा पर घमासान: चीफ जस्टिस का अल्टीमेटम, कल निर्णायक बैठक संभव

जबलपुर/ग्वालियर

जबलपुर/ग्वालियर: ग्वालियर हाईकोर्ट परिसर में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा लगाने को लेकर वकीलों के दो गुटों के बीच जारी तनातनी अब चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ तक पहुंच गई है। इस जटिल मुद्दे को सुलझाने के लिए चीफ जस्टिस ने दोनों पक्षों को तलब किया, लेकिन सोमवार को जबलपुर में बुलाई गई महत्वपूर्ण बैठक विरोधी गुट के वकीलों की गैरमौजूदगी के चलते बेनतीजा रही। अब मंगलवार को इस मामले में निर्णायक मोड़ आने की संभावना है।

प्रतिमा स्थापना पर रार:

दरअसल, ग्वालियर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन परिसर में किसी भी नई मूर्ति की स्थापना का पुरजोर विरोध कर रही है। एसोसिएशन का तर्क है कि हाईकोर्ट की सात सदस्यीय बिल्डिंग कमेटी पहले ही परिसर में अम्बेडकर प्रतिमा लगाने की अनुमति खारिज कर चुकी है। इसके विपरीत, डॉ. अम्बेडकर के अनुयायी वकीलों का एक समूह दो दिन पूर्व प्रतिमा लेकर हाईकोर्ट पहुंच गया, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।

चीफ जस्टिस का हस्तक्षेप और बैठक में खलल:

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों पक्षों के वकीलों को सोमवार को जबलपुर हाईकोर्ट में एक साथ बैठकर समाधान निकालने का निर्देश दिया था। प्रतिमा समर्थित वकील तो समय पर जबलपुर पहुंच गए, लेकिन बार एसोसिएशन से जुड़े वकीलों ने बैठक में शिरकत नहीं की। इस बहिष्कार से नाराज समर्थक वकीलों ने विरोधी गुट पर जानबूझकर मामले को लटकाने का आरोप लगाया है।

मंगलवार को निर्णायक मोड़?

अब सबकी निगाहें मंगलवार पर टिकी हैं, जब चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ के दोनों पक्षों के साथ फिर से बैठक करने की संभावना है। यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीफ जस्टिस स्वयं 20 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और वे इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी विदाई से पहले कोई सर्वमान्य हल निकालने का प्रयास करेंगे।

समर्थकों का भावनात्मक तर्क:

प्रतिमा स्थापित करने की वकालत कर रहे वकीलों का कहना है कि डॉ. अम्बेडकर, जो भारत रत्न से सम्मानित हैं और भारतीय संविधान के निर्माता हैं, उनकी प्रतिमा हाईकोर्ट परिसर में स्थापित होने से आम लोगों को न्यायपालिका और संविधान के प्रति प्रेरणा मिलेगी।

विरोधियों की कानूनी अड़चन:

वहीं, ग्वालियर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट अनिल मिश्रा ने कानूनी पहलुओं का हवाला देते हुए प्रतिमा स्थापना का विरोध किया है। उनका कहना है कि हाईकोर्ट परिसर में किसी भी मूर्ति की स्थापना के लिए बिल्डिंग कमेटी की औपचारिक अनुमति अनिवार्य है, जो इस मामले में नहीं ली गई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ असामाजिक तत्व अवैध धन के माध्यम से हाईकोर्ट परिसर में प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में इस जटिल और भावनात्मक मुद्दे पर क्या समाधान निकालते हैं। मंगलवार की बैठक इस पूरे विवाद को एक नई दिशा दे सकती है।

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