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आजादी के बाद पहली बार उत्तराखंड के 24 गांवों में नहीं पड़ेंगे वोट

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भारत की आजादी के बाद देश में हुए 16 लोकसभा चुनावों में भागीदारी करने वाले 24 गांवों में इस बार वोट नहीं पड़ेंगे। चुनाव में वोट नहीं पड़ने की वजह से आपको जरूर हैरान करेगी। पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में इन गांवों को निर्जन घोषित किया गया है।

यानी इन गांवों में अब कोई नहीं रहता है। ये गांव अल्मोड़ा, टिहरी, चम्पावत, पौड़ी गढ़वाल, पिथौरागढ़ और चमोली जिले के हैं। पलायन आयोग की दूसरी रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2023 में जारी हुई थी। जिसमें बताया गया था कि 2018 से 2022 तक उत्तराखंड की 6436 ग्राम पंचायतों में अस्थायी पलायन हुआ।

तीन लाख से अधिक लोग रोजगार के लिए अपने गांव छोड़कर बाहर चले गए। हालांकि, इन लोगों का बीच-बीच गांव आना जारी है। वहीं, इस अवधि में राज्य की 2067 ग्राम पंचायतों में स्थायी पलायन भी हुआ। लोग रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की तलाश में अपने गांव से गए और कभी वापस नहीं लौटे।

कई लोग अपनी पुस्तैनी जमीनें बेच गए तो कई लोग भूमि बंजर छोड़कर चले गए। सर्वाधिक 80 ग्राम पंचायतें अल्मोड़ा जिले में स्थायी पलायन से वीरान हो गईं। आयोग की इस रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि 2018 से 2022 तक प्रदेश के 24 गांव/तोक पूर्ण रूप ये आबादी रहित हो गए।

ऐसे में इन खाली गांवों में इस बार लोकसभा चुनाव की रौनक नहीं दिखेगी। खाली गांवों में न तो पोलिंग बूथ बनेंगे और न ही प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए कदम रखना पसंद करेंगे।

शहरों की तरफ बढ़ गए गांवों के 28 हजार वोटर
आयोग के अनुसार प्रदेश में 2018 से 22 तक जिन 2067 ग्राम पंचायतों में स्थायी पलायन हुआ, उनमें रहने 28531 लोग जिला मुख्यालयों या फिर दूसरे जिलों में चले गए। पलायन करने वालों में से सर्वाधिक 35.47 प्रतिशत लोग नजदीकी कस्बों में गए। जबकि 23.61 लोग दूसरे जिलों व 21.08 प्रतिशत लोग राज्य से बाहर चले गए। इसके अलावा 17.86 लोग जिला मुख्यालयों में जाकर रहने लगे।

निर्जन हुए गांवों का ब्योरा
जिला निर्जन गांव
टिहरी गढ़वाल 09
चम्पावत 05
पौड़ी गढ़वाल 03
पिथौरागढ़ 03
अल्मोड़ा 02
चमोली 02

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