मध्यप्रदेश में बिजली का ‘झटका’: महंगी दरें और बदहाल व्यवस्था
आम आदमी की जेब पर बढ़ा बोझ

जबलपुर, मध्यप्रदेश: एक ओर जहाँ देश के कई राज्य अपने नागरिकों को सस्ती और सुगम बिजली मुहैया कराने की दिशा में सक्रिय हैं, वहीं मध्यप्रदेश में बिजली की लगातार बढ़ती कीमतें और आपूर्ति व्यवस्था की लचर स्थिति आम जनता के लिए चिंता का सबब बन गई है। पड़ोसी राज्यों की तुलना में अधिक दरें और बिजली विभाग के कमजोर प्रदर्शन ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है, जिससे आम आदमी की आर्थिक स्थिति पर सीधा असर पड़ रहा है।
प्राप्त जानकारी और तुलनात्मक विश्लेषण के अनुसार, मध्यप्रदेश में बिजली की दरें घरेलू और गैर-घरेलू दोनों तरह के उपभोक्ताओं के लिए पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़ और गुजरात से कई मायनों में अधिक हैं। जहाँ छत्तीसगढ़ और गुजरात के नागरिक कम दरों पर बिजली का लाभ उठा रहे हैं, वहीं मध्यप्रदेश के उपभोक्ताओं को बिजली बिलों पर अपनी मासिक आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है। यह स्थिति विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है।
पड़ोसी राज्यों से तुलना: कहाँ महंगा, कहाँ सस्ता?
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, विभिन्न खपत स्लैब में मध्यप्रदेश की बिजली दरें तुलनात्मक रूप से अधिक हैं:
उपभोक्ता श्रेणी | मासिक खपत | मध्यप्रदेश (लगभग दर) | छत्तीसगढ़ (लगभग दर) | गुजरात (लगभग दर) |
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घरेलू | 200 यूनिट | ₹ 1495 | ₹ 900 | ₹ 785 |
घरेलू | 300 यूनिट | ₹ 2342 | ₹ 1450 | ₹ 1253 |
गैर-घरेलू | 200 यूनिट | ₹ 2320 | ₹ 1560 | ₹ 1120 |
उच्च दाब (लगभग) | 20 किलोवाट/2000 यूनिट | ₹ 20010 | ₹ 16000 | ₹ 11000 |
उच्च दाब | 100 किलोवाट/10000 यूनिट | ₹ 14900 | ₹ 11100 | ₹ 5500 |
उच्च दाब | 33 किलोवाट/10000 यूनिट | ₹ 13730 | ₹ 10700 | ₹ 5300 |
यह आंकड़ा संबंधित राज्यों के टैरिफ आदेशों के अनुसार है। इसमें नियत प्रभार (fixed charges) और ऊर्जा प्रभार (energy charges) शामिल हैं, लेकिन इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी या अन्य प्रभार शामिल नहीं हैं।
यह तुलना स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मध्यप्रदेश में उपभोक्ताओं को समान मात्रा में बिजली के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
कमजोर व्यवस्था, भारी बिल: दोहरी मार
बिजली की बढ़ती दरों के साथ-साथ, बिजली विभाग के कामकाज पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। नागरिकों का आरोप है कि पिछले पाँच वर्षों से बिजली आपूर्ति में लगातार व्यवधान आ रहा है। बार-बार बिजली गुल होना, वोल्टेज का अस्थिर रहना और शिकायतों के संतोषजनक ढंग से निपटारे का अभाव आम बात हो गई है। ऐसे में, जब उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवा नहीं मिल रही है, बिजली के बढ़ते बिल उनकी परेशानी को और बढ़ा देते हैं। यह ‘महंगी बिजली और कमजोर व्यवस्था’ की दोहरी मार आम आदमी की कमर तोड़ रही है।
भविष्य में और बढ़ सकता है भार!
चिंता की लकीरें तब और गहरी हो गईं जब यह बात सामने आई कि बिजली प्रबंधन की अक्षमता या अन्य कारणों से कंपनी को बाहर से महंगी बिजली खरीदनी पड़ी है। इसके परिणामस्वरूप, लगभग ₹424.15 करोड़ की अतिरिक्त राजस्व आवश्यकता उत्पन्न हुई है। यदि इस भार को उपभोक्ताओं पर स्थानांतरित किया जाता है, तो यह तय है कि भविष्य में बिजली की दरें और बढ़ेंगी, जिसका सीधा और नकारात्मक प्रभाव प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा।
नागरिकों की आवाज़: जवाबदेही की मांग
इस गंभीर स्थिति पर, शहर के जागरूक नागरिक राजेंद्र अग्रवाल ने मुख्यमंत्री माननीय मोहन यादव जी और ऊर्जा मंत्री माननीय प्रद्युमन सिंह तोमर जी को पत्र लिखकर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने पूर्व में बिजली दरों पर दी गई अपनी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि जब बिजली विभाग का प्रदर्शन लगातार खराब रहा है और जनता पहले से ही महंगी बिजली का बोझ उठा रही है, ऐसे में विभाग के वर्तमान संचालक को सेवा विस्तार देना उचित नहीं है। उनका तर्क है कि खराब प्रदर्शन के लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए और सेवा में सुधार प्राथमिकता होनी चाहिए, खासकर तब जब भविष्य में दरें बढ़ने की आशंका हो।