संस्कारधानी में दुर्गोत्सव की धूम, लेकिन भक्ति का बदलता स्वरूप भी चर्चा में

जबलपुर, यश भारत। संस्कारधानी जबलपुर इन दिनों नवरात्रि की भक्ति और उत्सव में पूरी तरह डूबी हुई है। देवी मंदिरों और सार्वजनिक दुर्गा पंडालों में भारी भीड़ उमड़ रही है। पंचमी से शुरू हुई दर्शनार्थियों की भीड़ नवमी तक लगातार बढ़ती जा रही है। गरबा-डांडिया के रंग, विद्युत सज्जा की जगमगाहट और भव्य प्रतिमाएं इस पर्व को और भी विशिष्ट बना रही हैं।
लेकिन इस उत्सव की चमक के बीच एक नया और सोचने योग्य बदलाव भी सामने आया है — भक्ति का डिजिटल स्वरूप। अब पंडालों में देवी दर्शन के साथ सेल्फी और रील बनाना एक आम दृश्य बन चुका है। कई समितियों ने बाकायदा सेल्फी प्वाइंट तक बना दिए हैं। हर कोई इन पलों को सोशल मीडिया पर साझा करने में लगा है।
क्या खो रहा है त्योहारों का आत्मिक पक्ष?
नवरात्रि जैसे पर्वों का उद्देश्य आत्मिक शांति, साधना और ईश्वर से जुड़ाव रहा है। पहले जब आरती होती थी, तो हाथ जुड़ते थे, आंखें बंद होती थीं और मन ईश्वर में लीन होता था। अब मोबाइल पहले उठता है, आराधना बाद में होती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि भक्ति अब भीतर की यात्रा नहीं, बाहर का प्रदर्शन बनती जा रही है। पूजा-पाठ आत्मिक साधना की जगह ‘लाइक्स’ और ‘व्यूज’ का माध्यम बनता जा रहा है।
त्योहार जो हमें जोड़ते थे — परिवार, समाज और ईश्वर से — अब कहीं न कहीं व्यक्तिगत ब्रांडिंग और आभासी दुनिया में खोते जा रहे हैं।
अब भी समय है…
यदि हम वास्तव में देवी माँ का आशीर्वाद चाहते हैं, तो जरूरी है कि हम भीतर झाँकें, मन को शांत करें, और भक्ति को प्रदर्शन नहीं, समर्पण बनाएं।
त्योहारों का वास्तविक आनंद वही है, जब हम उन्हें श्रद्धा, सादगी और आत्मिक लगन से मनाते हैं — न कि केवल कैमरे की नजर से।







