डोरीलाल की चिन्ता : लोकतंत्र ताश की गडडी है फेंटते रहिए और इक्का निकालते रहिए
भारतवर्ष में एक राज्य है मणिपुर। डोरीलाल को यही मालूम था कि इस राज्य में भी अन्य राज्यों की तरह जो मानव प्रजाति रहती है वह भारतीय है। मगर पता चला कि वहां ईसाई और हिन्दू रहते हैं। आदिवासी और मैतेई रहते हैं। अब भारत में नस्लों और जातियों का निवास हो गया है। अब धर्म और जाति के आधार पर मोहल्ले और बस्तियां बस गई हैं। नेता और अफसर भी अब नस्लों और जातियों में बंट गये हैं। राजनैतिक दल भी अब किसी नस्ल या जाति के होकर रह गए। अब एक ऐसे देस या रास्ट्र पर हम गर्व कर रहे हैं जिसमें अपने को कोई भारतीय कहने को तैयार नहीं है।
मणिपुर में घाटी और जंगलों में रहने वाली नस्लों में युद्ध छिड़ गया है। घाटी में रहने वाले बहुमत में हैं और मैतेई हिन्दू बताए जाते हैं। जंगलों में रहने वाले कूकी और नागा आदिवासी हैं और ईसाई बताए जाते हैं। इसलिए इनके बीच चलने वाला युद्ध धर्मयुद्ध कहा जा सकता है। मणिपुर में आग काफी धैर्य से सुलगाई जा रही थी। फिर हाईकोर्ट के एक फैसले के बहाने मंजिल पा ली गई। युद्ध शुरू हो गया। मारो मारो पीटो पीटो घर जलाओ पूजा घर जलाओ। गोली चलाओ। आग लगाओ। पुलिस और सशस्त्र बलों के हजारों आधुनिक राइफलें शस्त्र गोलाबारूद लूट लिए गए या शायद लुटवा दिए गए। इसे एक प्रोजेक्ट का सफलतापूर्वक पूरा होना कहा जा सकता है।
मणिपुर अच्छी तरह से दो भागों में बांटा जा चुका है। जो संख्या में ज्यादा हैं वो सत्ता में रहेंगे। जो ज्यादा हैं वो अपनी जाति धर्म के आधार पर वोट देंगे। तो विधान सभा संसद में वे ही चुने जाएंगे। इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए ।मदर आफ डेमोक्रेसी।पचास साठ हजार से ज्यादा मणिपुरी ( वैसे अब वहां केवल कूकी, नागा और मैतेई रहते हैं मणिपुरी कौन है) शरणार्थी शिविरों में हैं। जो जहां बहुमत में है अल्पमत को निपटाने में लगा है। जानने की बात ये है कि मणिपुर राज्य में एक मुख्यमंत्री भी है जो डबल इंजन का हिस्सा है। मणिपुर की राज्यपाल अपनी लाचारी खुलकर बोल रही हैं। यह विडंबना है कि मणिपुर में युद्धरत दोनों पक्ष के एमएमलए, मंत्री, राज्य सरकार, राज्यपाल और केन्द्र सरकार एक ही दल के हैं।
पूरा देश उद्वेलित है एक वीडियो देखकर जिसमें दो महिलाओं लड़कियों को नोचा जा रहा है एक भीड़ द्वारा। जो कुछ वीडियो में दिख रहा है वो नीचता और वहशीपने की पराकाष्ठा है। ये भीड़ न तो किसी दूसरे ग्रह से आए लोगों की हैं और न ही ये कोई नादान लोग हैं। जैसे विषकन्या हुआ करती थीं वैसे ही ये विषपुरूष हैं। विष से भरे जहरीले लोग।
ये घटना या घटनाएं लंबे समय से बोई जा रही फसल है जो अब पक रही है। फसल काटी जा रही है। फसल नहीं अब नस्लें काटी जा रही हैं। जो लोग ये फसल काटने का काम कर रहे हैं वो अपने महलों में हथियारबंद सैनिकों के बीच सुरक्षित हैं। आम लोग मारे काटे जा रहे हैं। बुजुर्ग पुरूष और बच्चे केवल मारे जाते हैं लेकिन हम जिसे मातृशक्ति कहते हैं पूजा करते हैं उसके साथ क्या क्या करते हैं । उसके कपड़े नोच लेते हैं। उसका जुलूस निकालते हैं। उसके साथ मारपीट करते हैं। उसके शरीर से खेलते हैं। उसे स्त्री होने की जो जो सजा दी जा सकती है वो देते हैं। घृणा की इंतिहा ये है कि बलात्कारियों के समर्थन में दूसरे पक्ष की महिलाएं जुलूस निकाल रही हैं। ऐसा कठुआ में भी हो चुका है।
और फिर उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया है जिसने घटना का वीडियो बनाया था। जिन लोगों ने जुर्म किया उन्हें ढूंढा जा रहा है। पर जिसने जुर्म होते देखा वो गवाह जेल में पंहुच चुका है। यदि ये वीडियो न प्रसारित होता तो कितनी शांति रहती देश में। किसी को पता ही नहीं चलता कि मणिपुर में क्या चल रहा है।
संसद चल नहीं रही। बड़ा टेक्निकल पेंच फंसा हुआ है। इस जघन्य घटना पर तो पूरी संसद को एक स्वर से विलाप करना चाहिए। आजादी के इतने सालों बाद हमारे देश में ये हो रहा है। पूरी संसद को, पूरी सरकार को शर्मिंदा होना चाहिए। जनता ने आपको सत्ता सौंपी, सेना दी, पुलिस दी, कानून दिया, अफसर दिए और आपने हमें ये दिया ?
व्हाट्सएप आदि में आई टी सैल और ट्रोल आर्मी अपने काम में लगी हुई है। घटना को झूठा और पीड़ितों को विदेशी आतंकवादी सिद्ध किया जा रहा है। बाकी भारत वर्ष की जनता और अखबारों टी वी चैनलों की चिंता मत करिए। वो कांग्रेस बीजेपी, एनडीए.इंडिया खेलते रहेंगे। उनके लिए लोकतंत्र ताश की गडडी है जिसे फेंटते रहिए और इक्का निकालते रहिए।
बस एक बार सोचिए मणिपुर की जगह वो आपका शहर या गांव या मोहल्ला होता तो भी आप ऐसे ही रहते । जहर की फसल पूरे देश में लगाई गई है। पूरे देश में पैदावार हो रही है। किसी दिन सबका नंबर आएगा। इंतजार करिए।